पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१६१

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१४८ राष्ट्रीयता और समाजवाद क्रान्ति थी, सामाजिक क्रान्ति नहीं। उसके साथ जनताके सामाजिक संघर्ष नही चल पड़े, अन्यथा आज देशकी शक्ति ही दूसरी होती। सन् ४२ की क्रान्तिके वाद अंग्रेज समझ गये कि बिना फौजकी सहायताके जागृत हिन्दुस्तानपर शासन करना कठिन है; परन्तु सन् ४६ के नौ-सैनिक विद्रोहने बताया कि फौज-पुलिस भी उनके खिलाफ होती जा रही है । द्वितीय महायुद्धसे ब्रिटेन कमजोर होकर निकला, इसलिए उसके सामने हिन्दु स्तानको आजादी देनेके सिवाय दूसरा चारा न रहा । अंग्रेजोंकी चाल सफल लेकिन अंग्रेज वडी चालाक कौम है, उसने बाहर निकलते-निकलते भी देशका बँटवारा करके उसे कमजोर कर दिया । पाकिस्तान बनानेमे उसकी ममा यही थी कि दोनो देश हमारी सहायताके मुंहताज रहेगे और खुशी-खुशी कामनवेल्थमे आ जायेंगे । ब्रिटिश सरकारकी चाल सफल हुई। हिन्दुस्तानकी सत्तारुढ पार्टी कांग्रेसने कामनवेल्थमे रहनेका फैसला कर दिया है । लेकिन यह निर्णय उसके अवतकके किये वादोंके खिलाफ है। सन् १९०६ मे इसी प्रश्नको लेकर कांग्रेसमे दो पार्टियाँ हुई। कलकत्ता-काग्रेसमे दादाभाई नौरोजीने स्वराज्यकी मांग रखी। सन् १९०७ मे यह मतभेद अधिक उग्र हो उठा और सूरत-काग्रेसमे नरम और गरम दल अलग-अलग हो गये । ६ वर्पतक वे अलग रहे । फिर इसी लखनऊमे सन् १९१६ मे काग्रेसमें एकता स्थापित हुई । सन् १९२७ मे मद्रासमे जवाहरलालजीने मुकम्मिल आजादीका सवाल उठाया और 'इण्डिपेण्डेन्स आफ इण्डिया लीग' बनायी जिसमे सुभाषबाबू भी शामिल हुए । सन् २८ तक यह लीग चलती रही । उस वर्षकी कांग्रेसमे बड़ी गरम तकरीरें हुईं। तय हुआ कि ब्रिटिश सरकारको एक सालकी अन्तिम चेतावनी (अल्टीमेटम) दी जाय । अगर इस अवधिमें वह औपनिवेशिक स्वराज्य (डोमिनियन स्टेटस) दे देती है, तव तो हिन्दुस्तान कामनवेल्थमे रहेगा अन्यथा नही । सन् १९२६ में लाहौर अधिवेशनमें काग्रेसने अपना ध्येय वदला । पूर्ण स्वतन्त्रताका लक्ष्य उसने स्वीकार किया; मतलब कि उसने माना कि ब्रिटिश साम्राज्य या कामनवेल्थसे उसका कोई रिश्ता नहीं रहेगा।" प्रास्ट्रेलिया, कनाडा आदि देश पड़ोसीके नाते अमेरिकाकी ओर ही ज्यादा झुके रहते हैं, लेकिन एक धर्म, एक नस्ल, एक जवान होनेके कारण वे कामनवेल्थमे भी शिरकत किये हुए है । पर हिन्दुस्तान किस दृष्टि से, किस लाभके लिए कामनवेल्थमे रहे ? पण्डित जवाहरलाल नेहरूने बताया कि कुछ क्षणिक लाभ है हमे, पर इसके लिए हम विदेशियोके खानदानके मेम्बर क्यो बने ? अंग्रेजोके साथ आप शौकसे दोस्ती रखिये, क्योकि आजकल ब्रिटेनमे मजदूर सरकार है। उसकी गृहनीति अच्छी है, परन्तु उसकी विदेश नीति गलत है। ब्रिटिश सरकार सरमायेदारीकी पुरानी परम्पराअोसे घिरी हुई है । वह उन ताकतोको उभारती है जो प्रगतिशील नही है और अब तो उसने