पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१६२

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लखनऊमे ६ अगस्तको भाषण-कामनवेल्यविरोधी १४६ अमेरिकाके साथ मिलकर एक गुट बना लिया है । अमेरिका आज दुनियाकी सबसे खतरनाक ताकत है । सियासी मंशाको पूरा करनेके लिए वह मुल्कोको कर्ज देता है । इंगलैण्ड खुद मुंहताज है कुछ लोग कहते है कि हम कामनवेल्थमे रहेंगे तो हमें प्रौद्योगिक निर्माणके लिए मशीने मिलेगी, लेकिन इंगलैण्ड आज इस स्थितिमे है ही नहीं कि वह हमे मशीनें दे सके । अमेरिकासे मशीने मँगानेमे डालरका झगड़ा है। हमारी काग्रेस सरकारे बजट सेशनके शुरूमें बड़ी लुभावनी योजनाएँ रखती है, लेकिन सालके अन्तमे कहती है कि डालर न मिल पानेके कारण मशीने नही आ सकी । पौण्डपावना भी नहीं मिल पा रहा है । हम अलग रहते तो ब्रिटेनपर कुछ दबाव भी डाल सकते थे। रूस शत्रु बन गया जब यह क्षणिक लाभ भी हमे नहीं मिलता, तव आखिर कौनसा फायदा है जिसके ‘लिए हम कामनवेल्यमे रहें ? नुकसान जरूर है । जबसे हमने कामनवेल्थकी साझेदारी मंजूर की है तवसे रूस खामखाह हमारा विरोधी हो गया है । हमारे पड़ोसी एशियाई देशोमें भी समाजवादकी ताकतें उभड़ रही है, उनकी भी इच्छा है कि हिन्दुस्तान कामनवेल्थ- में न रहे । कामनवेल्थमे जितने मुल्क है, खुलेतौरसे या छिपे-छिपे ऐंग्लो-अमेरिकी गुटमें आ गये हैं । ऐसी हालतमे हम कितना ही तटस्थताका ढोल पीटें, कोई हमपर विश्वास करनेवाला नही । सब यही कहेंगे कि अगर आप आज इस गुटके साथ नही है तो जव मौका पड़ेगा तब उसके साथ हो जायेंगे । अव हमारा मुल्क आजाद है, इसलिए दुनियाके सभी मुल्क हमसे दोस्ती करना चाहते है, लेकिन अगर हम किसी एक गुटके होकर रह गये तव हमसे दूसरे गुटके देश दोस्ती कैसे करेगे ? कामनवेल्थकी अर्थनीति कामनवेल्थ आखिर है क्या ? उसके पीछे वर्षाका इतिहास है, वैदेशिक नीति है, एक आर्थिक व्यवस्था है जो पूंजीवादी है । फिर उससे हमारा मेल कैसे हो सकता है ? सरमायेदारोका कोई मुल्क नहीं, वे अपने स्वार्थके लिए अपने मुल्कको कुर्वान कर सकते है । च्यागकाईशेकने उन कारणोको दूर न किया जिनके कारण कम्युनिस्ट आगे बढ़े, उल्टे वह पूंजीवादी अमेरिकाकी गुलामी करता रहा । जवतक सरमायेदारीका सिलसिला रहेगा तबतक दुनिया पनप नही सकती, उसमे अमन नही रह सकता । सरमायेदारोकी निगाह दुनियाकी दौलत हड़पनेपर रहती है, इसीलिए जंग होती है, राष्ट्रप्रेम उभारा जाता है और सरमायेदार युद्ध करा देते है । हम हरेक कौमसे दोस्ती करनेको तैयार है । हमारा ब्रिटेनसे व्यापारिक, आर्थिक, सांस्कृतिक समझौता हो सकता है, परन्तु हम किसी कुनवेमे नही दाखिल होगे । अगर होगे तो एशियाके आजादी-पसन्द देशोके कुनवेमे-तरक्की-पसन्द कुनवेमे शामिल होगे।