पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तीसरा अध्याय कांग्रेस समाजवादी कान्फरेन्स' हमारे सूबेमे प्रगतिशील शक्तियाँ काफी मजबूत रही है । यह सूवा साम्राज्योका लीलास्थल रहा है, अतः हमारे यहाँ बड़े-बड़े शहर बन गये और शहरके रहनेवालोका हमारे राष्ट्रीय जीवनमे अत्यधिक प्रभाव रहा है । शहरके रहनेवाले गाँववालोसे ज्यादा प्रगतिशील होते है । इसी कारण हमारे सूबेकी काग्रेस भी और सूबोसे ज्यादा प्रगतिशील रही है । तब अगर काग्रेस-समाजवादी पार्टीका हमारे सूवेमें जोर है तो आश्चर्य ही क्या ? अगर हम ठिकानेसे काम करे तो हमारा ख्याल है कि इस सूबेकी काग्रेसमे हम बहुमत अपनी तरफ कर सकते है । वरावर तो हम अब भी है । हमारी शक्ति विखरी हुई है। हम अच्छी तरह संगठित नही है, नही तो यह सूवा प्रगतिशील शक्तियोका नेतृत्व कर सकता और राष्ट्रीय आन्दोलनको आगे बढानेमे सव सूबोसे ज्यादा हिस्सा लेता। इसका सबूत तो यही है कि इन दो-तीन महीनोमे ही पार्टीके करीव-करीब एक हजार सदस्य बन गये । यह कान्फ्रेन्स इसीलिए की गयी कि हम सवको यह बता दे कि काग्रेस समाजवादी पार्टीके सगठनका कार्य अव जोरोसे मुस्तैदीसे हो रहा है और फिर हम बहुत दिनोसे मिले भी नही थे तथा मिलकर अपने प्रान्त और देशको समस्याअोपर विचार भी नही किया था। समाजवादी नेतृत्वको आवश्यकता हम समाजवादियोको लेनिनकी यह वात वरावर याद रखनी चाहिये कि सामाजिक स्वतन्त्रताके लिए राजनीतिक स्वतन्त्रताकी लड़ाई वहुत जरूरी है । सामाजिक स्वतन्त्रता- की लड़ाई ( Social struggle ) चलानेके लिए यह जरूरी है कि राजनीतिक स्वतन्त्रताकी लड़ाई ( Democratic struggle ) मे पूरा-पूरा हिस्सा लिया जाय और उसे सफल करनेकी कोशिश की जाय । समाजवादी अगर राजनीतिक लडाईमे पूरा-पूरा भाग नही लेते तो सामाजिक स्वतन्त्रताके लिए लड़नेकी नौबत ही नही आयेगी। काग्रेस समाजवादी पार्टीका जन्म, जैसा कि उसका नाम ही बताता है, इसलिए हुआ था कि इन दोनो तरहकी लड़ाइयोको मिला देनेकी जरूरत थी। समाजवादियोको राष्ट्रीय आन्दोलनमे काग्रेसमे हिस्सा लेनेके लिए राजी करना था और राष्ट्रीय आन्दोलनमें समाजवादी शक्तियोका प्रभुत्व कायम करना था; एक क्रान्तिकारी नेतृत्व कायम करना था। १. २ और ३ अप्रैल सन् १९३८ को लखनऊमे प्रान्तीय कांग्रेस समाजवादी कान्फरेन्समे सभापतिकी हैसियतसे दिया गया भाषण ।