पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१७९

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राष्ट्रीयता और समाजवाद यथार्थवादी दृष्टिकोणको आवश्यकता समयका व्यवहार अत्यन्त निष्ठुर भी हो सकता है । हमारी साधना सुलभ नहीं होगी। कमसे कम इस आधारपर कोई बड़ा काम उठा लेना जोखिम उठाना होगा । हमको नाप तौलकर वस्तुनिष्ठ क्रान्तिकारीकी तरह आचरण करना चाहिये । अपनी शक्तिका मुवालगेके साथ अन्दाज लगाना और विरोधी शक्तिका काम, वस्तुनिष्ठा नही कहलायी जा सकती। इसकी कमी हम कम्युनिस्ट भाइयोंमें पाते है । कांग्रेस एक महती शक्ति है । उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। 'नीचेसे' संयुक्त मोर्चेकी नीतिपर चलकर हम इस शक्ति-भण्डारका समुचित लाभ नहीं उठा सकते । हम आकाशके तारे न गिर्ने और ज्योतिपसे काम न लें, किन्तु वस्तुस्थितिको पहचाने और उसके अनुसार अपना कार्यक्रम बनावें। समाजवादीके तरीके भले ही दूसरे हों, किन्तु राष्ट्रवादियोंके अपर्याप्त तरीकोंका भी उसे समर्थन करना चाहिये, जब साम्राज्यविरोधी युद्ध सामने हो । ऐसे मौकेपर कांग्रेसके नेताओंकी पोल खोलनेका व्यापार खतरनाक है। इससे युद्धकी तैयारी नहीं होती बल्कि उसको काफी धक्का पहुँचता है । यह तो हमारे अनुभवकी बात है । दूर जानेकी जरूरत नहीं है। यह कहकर हमारे नेता लड़ेंगे नही, लड़ें भी तो. समझौता कर लेंगे, हमने जनतामें निरुत्साह पैदा कर दिया है। इस निरुत्साहको दूर करनेमें कठिनाई हो रही है। क्या यह पोल खोलनेकी नीति इस समय घातक नही सिद्ध हो रही है ? क्या यदि यह कहा जाय कि यह नीति सघर्पकी नीति नहीं है तो क्या कोई बड़ा अन्याय किया जाता है ? किन्तु हमारा अभिप्राय यह कदापि नहीं है कि गांधीवादी नेतृत्वकी कोई आलोचना की ही न जाय, अपना कार्यक्रम रखा ही न जाय और स्वतन्त्र रूपसे जारी रखे गये अपने कार्योको छोड़ दिया जाय । मौकेको देखते हुए ये सभी आवश्यक है, किन्तु इनका प्रमुख उद्देश्य गांधीवादी नेतायोकी पोल खोलकर उनका अमर जनतापरसे हटाने और जनताको निम्त्साहित करनेके स्थानपर जनतामें अपने विचारों और कार्यशैलीका प्रचार वढ़ाना और और युद्धकी और उन्हें ले जाना होना चाहिये । हमारी आलोचना मोकेको देखते हुए और सयमके साथ होनी चाहिये । हमें यह न भूलना चाहिये कि अाजकी हालतमें, जब कि राष्ट्रीय संयुक्त मोर्चेके भीतर समाजवादी अल्प संख्यामें है, अगर हम तुरन्त देशव्यापी संग्राम छेड़ना चाहते है तो राष्ट्रीय आन्दोलनके लिए संयुक्त नेतृत्व अनिवार्य है, अपरिहार्य है । हाँ, यदि गाधीवादी नेतृत्व लड़नेसे ही इन्कार कर दे और साम्राज्यशाहीके साथ समझौता करनेको तैयार हो जाय तब अवश्य स्थिति दूसरी होगी। उस समय हम अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार, अपने पृथक् कार्यक्रमके अनुसार जनताको लेकर आगे बढ़नेके लिए स्वतन्त्र होंगे। अाज जरूरत इस बातकी है कि रामगढ़ कांग्रेसने लड़ाईके लिए जो कार्यक्रम हमारे मामने रखा है और कांग्रेस समाजवादी पार्टीने रामगढ़ कांग्रेसके लिए जो कार्यक्रम तैयार किया था इन दोनोंके आधारपर हम जनताको बड़ेसे बड़े पैमानेपर