पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१८१

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१६८ राष्ट्रीयता और समाजवाद कम्युनिस्ट नीतिमें परिवर्तन यहांको कम्युनिस्ट पार्टी ब्रिटेनकी पार्टीसे सम्बद्ध है और समय-समयपर वहाँसे आदेश मिलते रहते है जिनको माननेके लिए वह वाध्य है । ब्रिटेनकी पार्टीके मन्त्री हैरी- पालिटने जुलाई सन् १९४१ मे अपनी पार्टीके नाम एक अपील प्रकाशित की जिसमे उन्होने युद्ध के स्वरूपके बदल जानेके कारण पार्टीकी नीतिके बदलनेकी आवश्यकता वतलायी। यह अपील भारतमे नवम्बरमे पहुंची । इस पत्नको पढकर यहाँकी कम्युनिस्ट पार्टीको भी अपनी नीति बदलनी पड़ी। अब उनको यह कहना पड़ा कि हम गलतीपर थे और हैरी पालिट सही थे । ये अपनेको यह कहकर कोसने लगे कि हम उन सिद्धान्तो और अनुमानोसे गुमराह हो गये थे जो राष्ट्रवादकी उपज है और हमने मान लेनिनकी मजदूर जमातकी अन्तर्राष्ट्रीयताको भुला दिया । यदि हैरी पालिटका यह पन इनके हाथ न लगा होता तो यह युद्ध अव भी साम्राज्यवादी युद्ध रहता । पालिटके पत्र में कोई ऐसे नये तर्क नहीं दिये गये है जो उसके बिना नही सोचे जा सकते । पत्रकी मुख्य बात यही है कि युद्धमें सोवियत-यूनियनके आ जानेसे एक मौलिक परिवर्तन हो गया है और लोकतन्त्रवादी और प्रगतिशील जनताके सामने हिटलरकी हारके लिए युद्ध करना एक महत्त्वका सवाल हो गया है । पत्रमे यह भी स्पष्ट किया गया है कि चचिलकी गवर्नमेण्ट भी इस बुनियादी तबदीलीको मानती है । पार्टीने इसीके अनुकूल अपनी नयी नीति निर्धारित की है । पार्टीको अपने ऊपर और जनतापर विश्वास करना चाहिये कि जनता गवर्नमेण्टको हिटलरसे मेल करनेसे रोकेगी और इस सम्बन्धमे उसको किसी प्रकारका अनुमान न लगाना चाहिये । हमारे दोस्तोने यह न सोचा कि यदि उपनिवेशमे रहनेके कारण वह राष्ट्रवादसे प्रभावित हो सकते थे तो इगलैण्डमे रहनेके कारण हैरी पालिट तथाकथित राष्ट्र-रक्षा ( national defencism ) से प्रभावित हो सकते थे। हैरी पालिट शुरूसे ही हिटलरके विरोध करनेके पदामे थे। उन्होने जर्मनी-रूसका समझौता नापसन्द किया था और उसके बादकी कम्युनिस्ट पार्टीकी नीतिसे वह सहमत नही थे । इसी कारण वह मन्त्री-पदसे कुछ समयके लिए अलग हो गये थे । जव जर्मनीने रूसपर आक्रमण किया तब उनको जन-सयुक्त मोर्चाकी पुरानी नीतिको वर्तनेका अवसर मिला । रूसका भी यही आदेश था । इस नीतिपर अमल करनेमे ब्रिटेनकी भी रक्षा थी। इस जानकारीके बाद क्या यह सम्भव नही है कि जिस प्रकार सन् १९१४ के युद्धमे कितने ही साम्यवादियोने अपने देशकी रक्षाके नामपर युद्धको साम्राज्यवादी कहना स्वीकार नही किया उसी प्रकार हैरी पालिट भी इगलैण्डकी रक्षाके प्रश्नसे प्रभावित होकर सोवियत ब्सके नाम पर इस युद्धको जनताका युद्ध कहते है । महायुद्धका स्वरूप आज हैरी पालिटके फतवेको पाकर कम्युनिस्ट इसे जनताका युद्ध कहने लगे है। इसमे स्वामी सहजानन्दजी भी कम्युनिस्टोके साथ है। स्वामीजी किसान सभाके फूटमे ही नहीं, लड़ाईके मामलेमे भी पूरी तरह इनके साथ है। हम यह मानते है कि