पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१८७

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१७४ राष्ट्रीयता और समाजवाद पार्लमेण्टरी प्रजातन्त्रके पास इस समस्याका कोई तत्कालीन हल भी नहीं है, इसीलिए उसका ह्रास तथा फासिस्टवाद या समाजवादकी उन्नति हो रही है । फासिस्टवाद यद्यपि साम्राज्यवादकी एक विशेप अवस्था मात्र है तथापि उसने पूंजीपतियोके मुनाफेका काफी नियन्त्रण कर तथा अन्य उपायोका अवलम्वन कर जर्मनीसे वेकारीको दूर कर दिया है और लोगोको यह आश्वासन दिया है कि यद्यपि उनके रहन- सहनका दर्जा पहलेकी अपेक्षा गिर गया है तथापि उद्योगक्षेत्रकी अस्तव्यस्तताके कारण उनको समय-समयपर अकिंचनता, दरिद्रता और वेकारीका सामना न करना पड़ेगा । यह सच है कि मनुष्य केवल रोटीसे ही सन्तुष्ट नहीं होता, किन्तु जवतक रोटीका सवाल हल नहीं होता तवतक उसके लिए यही एक सवाल अहमियत रखता है । भूखे पेट भजन नही होता। किन्तु एक वार जव यह सवाल हल हो जाता है तव मनुप्यका ध्यान और सवालोंकी ओर जाता है। यही कारण है कि आज जर्मन लोग हिटलरके पीछे है। लडाईका संकट जवतक रहेगा तबतक उसके पीछे रहेंगे। हार ही जर्मनजातिको हिटलरके विरुद्ध कर सकती है या कोई ऐसा वाद हो जो आर्थिक निश्चितताके साथ-साथ मानवोचित आदर्शोकी भी पूर्ति करता हो । इसमें सन्देह नहीं कि नाजीवादको तात्कालिक सफलता ही मिल सकती है । उसका भविष्य उज्ज्वल नही है, क्योकि यह इस भूलमे पड़ गया है कि मनुष्यके केवल पेट होता है, मस्तिष्क और भाव नही होते । हिटलरकी नयी व्यवस्था यूरोपको आर्थिक चिन्तासे मुक्त करना चाहती है । वह यूरोपमे एक ऐसी आर्थिक पद्धति कायम करना चाहती है जिससे यूरोपवासी आये दिन पंजीवादके कटोसे बचे रहे । यही इसकी विशेषता है। दूसरी दृष्टियोसे जब आप इस व्यवस्थाकी परीक्षा करेगे तो इसमे दोप ही दोष दिखायी देंगे। हिटलरके मित्रराष्ट्र इटलीको औपनिवेशिक स्वराज्य ( Dominion Status ) मिल सकता है और अन्य छोटे-छोटे राष्ट्रोको देशी राज ( Home Rule ) दिया जायगा। प्रत्येक राष्ट्र यथासम्भव अन्नादिकी दृष्टिसे आत्मनिर्भर बनाया जायगा । कई उद्योग-प्रधान प्रदेश अपनी प्रधानता खो देंगे । हिटलरकी सेना सव राष्ट्रोकी रक्षा करेगी। यह सव तो होगा। किन्तु नाजीवादकी वर्वरता सारे यूरोपपर छा जायगी। पर जवतक मित्रराष्ट्र यूरोपके सामने ऐसी व्यवस्था न रखेंगे जिसके आधारपर आर्थिक निश्चितताकी याणा की जा सके तथा आये दिनके युद्धोसे छोटे राष्ट्रोंकी रक्षा हो सके तवतक स्वतन्त्रता और लोकतन्त्रकी कोरी वकवाससे यूरोपके राष्ट्रोको सन्तोप नही होगा । इंगलैण्ड जव अपने देगकी बेकारीको युद्धकी अवस्थामे भी पूरी तरहसे दूर नही कर सका है तब उसके नुस्खोंको दूसरे कैसे विश्वास करें ? छोटे राष्ट्र स्वभाग्य-निर्णयके सिद्धान्तको लेकर क्या करें ? सच बात तो यह है कि इसी सिद्धान्तके लागू करनेसे छोटे राष्ट्र मुसीवतमे पड़ गये है । यूरोपीय संघके वने विना यूरोपका कल्याण नहीं है । छोटे राष्ट्रोकी स्वतन्त्रता पड़ोसी शक्तिशाली राष्ट्रोको अपने युद्धके लोभको संवरण नहीं करने देती। यदि एक समुदायमे सव सम्मिलित हो और सबके समान अधिकार हो और सब एक दूसरेके साथ