पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१८६

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युद्ध और जनता १७३ आती है। किन्तु इसे युद्धकी आवश्यकतानो और अमेरिकाकी महती शक्तिने इङ्गलैण्डको अमेरिकाके आश्रित होनेके लिए विवश किया है। एटलांटिक घोषणा ( Atlantic Charter ) एक गुटकी नीतिको निर्धारित करता है और हिटलरकी नयी व्यवस्था ( New Order ) और जापानका सम्मिलित समृद्धि कार्यक्रम ( Co-prosperity Programme ) दूसरे गुटकी नीति जाहिर करता है। इनमे कोई विशेष अन्तर नही है । एटलाटिक घोपणामें केवल उन्हीके लिए स्वभाग्य निर्णयका सिद्धान्त माना गया है जिनको हिटलरने आक्रान्त किया है। इङ्गलैण्डके साम्राज्य और उसके उपनिवेशोको यह सिद्धान्त लागू नही होता । अमेरिका भी इस घोषणाद्वारा अपने साम्राज्यवादी हितोका परित्याग नहीं करता। ऐसी अवस्थामे कौन विश्वास कर सकता है कि यह लड़ाई लोकतन्त्र और आजादीके लिए लड़ी जा रही है ? पराये धनपर तो सभी लक्ष्मीनारायण होते है । यूरोपके आक्रान्त और विजित राष्ट्रोके लिए स्वभाग्य निर्णयके सिद्धान्तको मानना इङ्गलैण्डके लिए कोई वडी बात नही है । इङ्गलैण्डके अधीन यह राष्ट्र कभी नही रहे है । इङ्गलैण्ड यूरोपपर अपना प्रभुत्व शक्ति-सन्तुलनकी नीतिको वर्तकर ही कायम रख सकता है। छोटे राष्ट्रोको स्वभाग्य निर्णयका अधिकार देकर सन्तुलन कायम होता है। पिछले महायुद्धके बाद भी कई प्रदेशोको स्वभाग्य निर्णयका अधिकार देकर और उनको जर्मनीसे स्वतन्त्र कर जर्मनीकी शक्तिको क्षीण किया गया था। इसी उद्देश्यसे आज भी यूरोपके आक्रान्त राष्ट्रोकी स्वाधीनता स्वीकार की गयी है। यदि एक महान् आदर्शकी पूर्तिका स्वांग भी रचा जा सके और साथ-साथ अपना उद्देष्य भी सिद्ध होता हो तो इससे बढ़कर क्या हो सकता है ? किन्तु यदि इस आदर्शके अनुसार भारत, वर्मा, सिहल तथा अफ्रिकाके उपनिवेशोमे काम किया जाय तभी ब्रिटेनकी सचाई सावित हो सकती है । अन्यथा यह मक्कारी ही समझी जायगी। हिटलरकी नयी व्यवस्था हिटलरकी नयी व्यवस्था भी धोखेकी चीज है । नाजीवाद तथा फासिस्टवाद एक वर्वरवस्तु है । वह मानव स्वतन्त्रताको पददलित करता है । मनुप्यके व्यक्तित्वकी उनकी नजरोमे कोई कीमत नही है। उसके लिए कोई सामाजिक या आध्यात्मिक आदर्श ( spiritual values ) नहीं है, किन्तु हिटलरने अपने देशकी वेकारीको दूर कर दिया है। उसका खयाल है कि यदि वह यूरोपसे बेकारी और आर्थिक अनिश्चितता ( Economic insecurity )को दूर कर सके तो यूरोपमे उसका प्रभुत्व कायम हो सकता है। उद्योग-व्यवसायके क्षेत्रमे जो आर्थिक संकट बार-बार उपस्थित होते रहते है और जिससे अस्तव्यस्तता होती रहती है उसके कारण जनतामे आर्थिक अनिश्चितता- का भाव उत्पन्न हो गया है। इसी अनिश्चितताके कारण जर्मनीका निम्न-मध्यम-वर्ग नाजीवादका आधार बना । इस अनिश्चितताको नाजीवादने फिलहाल तो दूर कर दिया है यद्यपि ऐसा करनेके लिए नाजीवादने रहन-सहनका दर्जा काफी गिरा दिया है।