पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१८९

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१७६ राष्ट्रीयता और समाजवाद उपनिवेशोकी गुलामीको कायम रखती है। मनुष्य रोटी, शान्ति और स्वतन्त्रता तीनों चाहता है । यह सब वाते सच्चे समाजवादकी स्थापनाद्वारा ही प्राप्त हो सकती है। मानवता ही समाजवादका आधार है। समाजवाद मनुष्यके व्यक्तित्वका सम्मान करता है और उसके विकासके लिए पूर्ण अवसर देता है । उत्पादनके साधन व्यक्तिकी मिलकियत न होकर सारे समाजकी मिलकियत बन जाते है और अर्थनीतिका संचालन व्यक्तियोंके मुनाफेके लिए न होकर सारे समाजके लाभके लिए होता है । समाजवादको स्थापनापर निश्चितताका लोप हो जाता है। साथ-साथ रहन-सहनका दर्जा भी ऊँचा होता जाता है । , ज्ञान और संस्कृति उच्च वर्गतक सीमित न रहकर सारे समाजके लिए सुलभ हो जाती है । रोजा लुक्सेम्बर्गके शब्दोमे 'समाजवाद रोटी-मक्खनका सवाल नहीं है किन्तु एक सास्कृतिक आन्दोलन है, एक विशाल तथा उन्नत ससारव्यापी विचार-पद्धति है ( Socialism is not a bread and butter problem, but a cultural movement, a great and proud worldideology. ) इसीलिए मार्क्सका कहना है कि मजदूरवर्ग- को रोटीकी अपेक्षा शौर्य, आत्मविश्वास, स्वतन्त्रता और आत्मसम्मानकी अधिक आवश्यकता है। समाजवाद ही सच्चे मानेमे लोकतन्त्रकी, स्थापना कर सकता है । आजका सीधा सवाल पूंजीवाद बनाम समाजवादका है । जबतक पूंजीवादका बोलवाला है तबतक युद्धोका होना अनिवार्य है । इसीलिए क्रान्तिकारी जमाते विश्वव्यापी पैमाने- पर पूंजीवादका विरोध करती है । इससे बचनेका तरीका यही है । युद्धमे सहयोग देकर हम साम्राज्यवादी हितोकी ही रक्षा करते है । कम्युनिस्ट दोस्त अन्तर्राष्ट्रीयताकी दुहाई देते है। इससे बढकर अन्तर्राष्ट्रीयता क्या हो सकती है ? लेनिनके शब्दोमे “केवल एक ही प्रकारकी व्यावहारिक अन्तर्राष्ट्रीयता है अर्थात् अपने ही देशमे क्रान्तिकारी आन्दोलनके विकासके लिए हार्दिक उद्योग करना और प्रत्येक देशके इसी प्रकारके आन्दोलनका समर्थन (प्रचार, सहानुभूति और सामानद्वारा) करना ।" इसको छोड़कर सब आत्मप्रवञ्चना है । 'देश-रक्षा'का पाखण्ड कम्युनिस्ट भाइयोने कुछ समयसे “जनताका युद्ध" का नारा छोड़कर देशभक्तिकी अपील करनी शुरू की है । यह युद्ध जनताका युद्ध है इस भ्रममे जनता नही पड़ी है, वह तो अपने नित्यके अनुभवसे युद्धके साम्राज्यवादी स्वरूपको देख रही है। केवल मुट्ठीभर कम्युनिस्ट इस धोखमे पड़े है या यो कहिये कि धोखेमे पडनेके लिए मजबूर है। किन्तु उनका प्रचार व्यर्थ सावित हो रहा है । वातावरण इस विचारके सर्वथा प्रतिकूल है । इसलिए कम्युनिस्टोने जनताके युद्धका जिक्र करना ही एक तरहसे बन्द कर दिया है । अब वह मातृभूमिको रक्षाके नामपर ब्रिटिश गवर्नमेण्टके साथ सहयोग करनेकी अपील करते है। उनका तर्क है कि शत्रु दरवाजेपर आ गया है; हम स्वतन्त्र रीतिसे उसका मुकाबला नहीं कर सकते; इसलिए राष्ट्रकी रक्षाके लिए हमको गवर्नमेण्टसे सहयोग करना चाहिये। इसी नीतिको निन्दा लेनिनने “मिथ्या देश-रक्षा" ( National