पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१९०

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युद्ध और जनता • १७७ Defencism ) कहकर की है । गवर्नमेण्टके साथ सहयोग कर हम उसके साम्राज्य- वादी हितोकी रक्षा करते है, देशकी नही । गुलामोका भी कोई देश होता है । इस तर्कका अर्थ तो यह हुआ कि चाहे युद्ध साम्राज्यवादी क्यों न हो जव युद्ध दरवाजेपर श्रा जावे तव सब विचार छोडकर और मतभेदको भुलाकर अपनी हुकूमतकी सहायता करो। यह न वैज्ञानिक ढगसे सोचते है, न साम्राज्यवादी, न राष्ट्रीय और न अन्तर्राष्ट्रीय । यह केवल अवसरवादिता है। ऐसे ही लोगोको लक्ष्य कर मार्क्सने एक 9199247 PET ET “I have sown dragons and have harvested fleas" "मैंने अग्निसर्पकी खेती की मगर हाथ लगे डस ।" यदि एक तीर नही काम करता तो दूसरा छोड़ो। किसी तरह काम निकालना चाहिये । जनतामें जिस तरहका प्रचार काम कर सके उस तरहका प्रचार होना चाहिये। मार्क्सवादी जनताको न देवताकी तरह पूजता है और न उसकी अवमानना करता है । वह जनतासे सीखता है और जनताको सिखाता है। लेकिन कम्युनिस्ट तो जनताको मिट्टीका लोदा समझते मालूम होते है । यह तो हिटलरका तरीका है। कमसे कम मुझे ऐसी आशा इनसे न थी। मैं समझता था कि और चाहे जो कुछ हो कम्युनिस्ट कमसे कम जनताको जान बूझकर वेवकूफ बनाना नही चाहेगे । जो जनता इतिहासको बनाती और विगाडती है उसके साथ मजाक करना ठीक नही है। उसका निरादर करना इतिहासके साथ विश्वासघात करना है । मैंने युद्धके सम्बन्धमे विविध पहलुअोकी विस्तारसे चर्चा इस कारण की है कि आज कम्युनिस्टोकी विचारपद्धतिकी मीमासा करना सबसे महत्वका क्रान्तिकारी कार्य हो गया है । यह ठीक है कि उनका प्रचार ऊसरमे वीज छीटनेके समान है। किन्तु पढे-लिखे लोग कभी-कभी अपनी प्रकाण्ड विद्वत्ता या अल्पज्ञानके कारण सीधी-सादी बात समझनेमे भी असमर्थ रह जाते है । पढे-लिखे लोगोकी दिमागी ऐय्याणी कभी-कभी नये-नये विवाद खड़ा करती है और अपनी वाक्चातुरीसे दूसरोको परास्त करना चाहती है । इसमे उनको खास मजा आता है। और जब ऐसी विचारधाराको रूस और तृतीय इण्टरनेशनलका सहारा मिल जाय तब तो कहना ही क्या है ? क्रान्तिके मार्गको परिष्कृत करनेके लिए इस विचार-पद्धतिके खोखलेपनको दिखाना निहायत जरूरी है। कम्युनिस्टोंकी कार्यपद्धति कम्युनिस्टोकी कार्य-पद्धति भी उतनी ही दूषित है । कम्युनिस्ट लोग अन्तर्राष्ट्रीय एकता तथा संयुक्त मोर्चेकी दुहाई देते है मगर हर जगह फूट पैदा करते नजर आते है । विद्यार्थी आन्दोलन तथा किसान-आन्दोलनका अनुभव तो यही बतलाता है । यह कोई आकस्मिक घटनाएँ नही है । हमारा कर्तव्य है कि इसका अनुसन्धान करे और समझे कि 'क्या कारण है कि जहाँ कही कम्युनिस्ट जाते है वहाँ संस्थानोको छिन्न-भिन्न कर देते है । उनके साथ संयुक्त मोर्चावन्दी बहुत दिन नही चलती । कम्युनिस्टोकी नीति है कि जब कभी वह कमजोर होते है या जब कभी उनको किसी खतरेका सामना करना पडता है तव वह संयुक्त मोर्चेका नारा बुलन्द करते है। इस प्रकार वह अपनी शक्ति और प्रभावको १२