पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१९

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राष्ट्रीयता और समाजवाद व्यवसायोके लिए जो पदार्थ विशेष रूपसे उपयोगी है उनकी पैदावार संसारके जिस किसी भू-भागमे प्रचुरतासे होती है उस भू-भागपर आधिपत्य प्राप्त करनेके लिए ये प्रौद्योगिक राष्ट्र प्रयत्न करते है । यह वात प्रसिद्ध ही है कि कोयला, लोहा और तेलके कारण कितने ही गुट बने है और कितने ही युद्ध हुए है । उद्योग-व्यवसायकी वृद्धिका एक फल यह भी हुआ है कि प्रत्येक राष्ट्रकी पूंजी बहुत अधिक वढ गयी है । यह पूंजी यहाँतक बढ़ गयी है कि उसके एक भागको अपने ही देशमे बहुत मुनाफेके साथ नहीं लगाया जा सकता । जो पूंजी यदि फ्रासमे नयी रेलोके निर्माणमे लगायी जाय तो मुश्किलसे दो या तीन प्रतिशत मुनाफा मिलेगा, उसी पूंजीको यदि नये देशोमे लगाया जाय तो १० से २० प्रतिशत तक मुनाफा मिल सकता है । यही कारण है कि प्रौद्योगिक राष्ट्रोकी बहुत बड़ी पूँजी विदेशोमे लगी हुई है। इन विविध आर्थिक कारणोसे साम्राज्यवादका जन्म हुआ और उसी साम्राज्यवादका विरोध करनेके लिए भारत तथा एशियाके अन्य देशोमे राष्ट्रीयताका जन्म हुआ। चूंकि भारतका अंग्रेजी शिक्षित समुदाय ही अग्रेजी साहित्यके द्वारा यूरोपकी विचारधारा और इतिहाससे सबसे पहले परिचित हुआ था, इसलिए इसी वर्गने राष्ट्रीय अान्दोलनका सूत्रपात किया । जहाँ अंग्रेजी शिक्षाके प्रारम्भ होनेके पहले जमीन्दार और अन्छे और ऊँचे खानदानके लोग-जैसे नवाव और सरदार-समाजका नेतृत्व करते थे, वहाँ अंग्रेजी- शिक्षाके प्रतापसे धीरे-धीरे मध्यम श्रेणीके अग्रेजी शिक्षित वर्गका प्रभाव बढ़ने लगा। यद्यपि कुछ अग्रेज शासकोने मध्यम श्रेणीके बढते हुए प्रभावको रोकनेका प्रयत्न किया; तथापि वे प्रवाहके विरुद्ध जानेमे असफल हुए । पुराने खानदानोका प्रभाव दिनोदिन घटता गया और धीरे-धीरे मध्यम श्रेणीके लोगोने समाजका नेतृत्व ग्रहण करना शुरू किया। जहाँ अग्रेजी शिक्षाका अधिक प्रचार था वहाँ भारतीयोकी समितियाँ कायम होने लगी। इन समितियोका उद्देश्य जनताकी शिकायतोको दूर करानेके लिए समय-समयपर सरकारको प्रार्थना-पत्र देना था। लोकमतको शिक्षित करनेके लिए इनकी स्थापना नहीं हुई थी। सन् १८५१ में कलकत्तेमे 'ब्रिटिश-इण्डियन-एसोसियेशन' और सन् १८५३में 'बम्बई-एसोसियेशन' और 'मद्रास-एसोसियेशन'की स्थापना हुई । सन् १८७० मे पूना- सार्वजनिक सभा कायम हुई । सन् १८७६ मे कलकत्तेमे श्री सुरेन्द्रनाथ वनर्जी और श्री आनन्दमोहन वोसके उद्योगसे 'इण्डियन एसोसियेशन' कायम हुआ । सन् १८८४ मे 'मद्रास एसोसियेशन'का स्थान महाजन-सभाने लिया । 'वम्बई एसोसियेशन' कुछ वर्ष काम करके वन्द हो गया था; परन्तु सन् १८८५ मे श्री वदरुद्दीन तैयवजी, श्री फिरोजशाह मेहता और श्री काशीनाथ त्र्यम्बक तैलङ्गके प्रयत्नसे 'बम्बई प्रेसीडेन्सी एसोसियेशन'के नामसे उसका फिरसे उद्धार हुआ । 'इण्डियन एसोसियेशन' और 'ब्रिटिश इण्डियन एसोसियेशन'के उद्देश्योमें वडा अन्तर था। 'इण्डियन एसोसियेशन' लोकमतकी शिक्षापर वहुत जोर देता था। इसके संस्थापकोने इङ्गलैण्डमे शिक्षा प्राप्त की थी और वहाँ रहकर उन्होने राजनीतिक आन्दोलनके महत्त्वको भलीभॉति समझ लिया था। वे सरकारके पास आवेदन-पत्र भेजकर ही सन्तुष्ट नही रहते थे। वे भारतमे वैध उपायो द्वारा औप-