युद्ध और जनता १८५. और वह बेचारा हाथ टटोलता रह जाय ? ऐसी हालतमें उसके हृदयमें उत्साह कैसे पैदा हो सकता है ? यह बात सही है कि गल्लेकी महँगीका फायदा उठानेके लिए किसान कुछ-न-कुछ ज्यादा गल्ला पैदा करनेकी ओर जरूर झुकेगे, मगर इस तरह जो पैदावार बढ़ेगी उससे देशका काम थोडे ही चलेगा । पैदावार काफी बढानी होगी और उसके लिए किसानोको अपनी जान लगा देनी होगी। यह उद्देश्य कैसे हासिल होगा ? सरकार और उसके गुमाश्तोके तरीके तो ऐसे है कि उससे परेशान होकर किसान अपनी जगहसे टससे मस न हो तो कोई आश्चर्यकी बात न होगी अन्देशा तो है कि इस दुर्व्यवहारसे यह गल्लेकी समस्या और भी जटिल न हो जाय, किसान विल्कुल ही विगड न खड़ा हो । चीजोका दाम यो ही बढ गया है, जमीदारो, महाजनो तथा साहूकारोका पुराना रवैया फिर शुरू हो गया है और ऊपरसे सरकारकी पोरसे लडाईमे मदद करनेकी माँग आकर दवाती है । यह तो परेशानी और तवाहीका रास्ता है । अगर हमलोग चाहते है कि यह मसला सही तरीकेसे तय हो और किसान उत्साहके साथ इस काममे शामिल हो तो हमे उनके हौसले वढानेका उपाय करना होगा । हमे वह सारी बाते करनी होगी जिससे किसानकी खेतीसे और ज्यादा दिलचस्पी हो, जिससे उसके दिलमे अपने खेतकी उपज बढानेकी परेशानी पैदा हो । पुराने रीतिरिवाजो रिश्ते-नाते, नियमो तथा कानूनोका वोझ जबतक उसके ऊपर लदा रहेगा तबतक उससे कोई उम्मीद नही की जा सकती। यही तो समाजवादी कितने वर्पोसे कहते आ रहे है । इसके लिए यह जरूरी है कि कमसे कम फैजपुर काग्रेसमे जो किसान-सम्बन्धी कार्यक्रम कबूल किया गया था उसपर अमल किया जाय । किसानोको जमीदारो, महाजनो तथा साहूकारोकी ज्यादतीसे नजात दिलायी जाय, कर्ज तथा सूदखोरीसे उन्हे बचाया जाय, लगानमे कमी की जाय, वेदखलीका तरीका खत्म किया जाय, किसी न किसी शवलमे जमीनमे किसानोकी मिल्कियत मान ली जाय और खेतीकी तरक्कीके लिए जरूरी इन्तजाम जल्दसे जल्द किये जायें । तब कही यह मामला कावूमे पा सकता है । वरना हमलोग यो ही हाथ-पैर पीटते रह जायेगे । रूस तथा चीनका उदाहरण आखिर हमे तो अपने देशकी वेकारी और गरीबी दूर करनी ही है, देशको स्वतन्त्र करना है, अपनी स्वतन्त्रताकी रक्षा करनी है और तत्काल लड़ाईकी परेशानियोका सामना करना है । यह सव कैसे होगा? यह सव कीन करेगा? अगर हम चाहते है कि हमारे देशकी जनता जोश और हिम्मतके साथ इस काममे पडे तो हमे सामाजिक क्रान्तिके कार्य- क्रमको तत्काल अपनाना पड़ेगा, उसी तरह जैसे चीनको अपनाना पड़ा है। आखिर हमसे रोज कहा जाता है कि हम रूस और चीनके आदर्शका अनुकरण करे; जिस वहादुरीसे रूसी और चीनी अपनी आजादीके लिए लड़ रहे हैं उसी तरह लडनेको हम भी तैयार हो जायँ। मगर अपने लोगोमे यह जोश और हिम्मत पैदा करनेके लिए रूस और चीनमें
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