पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१९७

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! .१८४ राष्ट्रीयता और समाजवाद करीव यही हालत गेहूँकी थी। हमारी गेहूँकी पैदावार काफी नहीं होती। इधर लड़ाईके लिए हिन्दुस्तानसे गल्ला बाहर भेजा गया और उधर वर्मापर जापानियोका कब्जा हो जानेकी वजहसे जापानसे चावलका पाना बन्द हो गया। लेकिन वर्मासे लोग भाग-भागकर लाखोकी संख्यामे हिन्दुस्तान चले आये है । इसके अलावा पावागमनकी कठिनाइयोके कारण खाद्य सामग्री एक स्थान से दूसरे स्थानको भेजना कठिन होता जा रहा है । तो ऐसी हालतमे गल्लेकी कमीका खतरा हमारे सामने पेश होता है और ऐसा मालूम होता है कि बाहरसे हम यह सामान नही मँगवा सकेगे; शायद देशके अन्दर भी एक जगहसे दूसरी जगह हम ये चीजे मुश्किलसे पहुंचा पावे । जव खाद्य सामग्री मांगसे कम पड़ जायगी तो दामका वढ जाना तो स्वाभाविक है । बाजार-भावको रोकनेकी कोशिश की जा रही है। उससे कुछ थोडा काम चलेगा मगर असली सवाल तो और गल्ला पैदा करनेका है। इसके दो उपाय है । एक तो यह कि गल्ले की खेती वढायी जाय और दूसरा यह कि खेतोकी उपज बढायी जाय । ऐसे तो हिन्दुस्तानकी जमीनका एक चौथाई हिस्सा अभी बेकार पड़ा है मगर वास्तवमें इस जमीनपर जल्द से जल्द जानवरोका चारा ही पैदा किया जा सकता है। गल्ला पैदा करनेके लिए तो इस जमीनको वहुतसारी चीजोकी जरूरत है। इस कारण खेती वढानेका सवाल तो टेढ़ा है। और गल्ला कैसे पैदा हो ? तव रही वात खेतीकी उपज बढ़ानेकी । यह हो सकता है। इसकी कोशिश सभी ओरसे की जा रही है । सरकार इसे अपने ढंगसे कर रही है । 'वही रफ्तार वेढगी जो पहले थी सो अव भी है' । काग्रेसने भी इस ओर अपनी शक्ति लगानी शुरू की है । ऐसा ख्याल है कि हर हिस्सेके लोग अपनी-अपनी जरूरतके लिए काफी गल्ला पैदा कर ले तो काम वन जाय । इसलिए किसानोसे अपील की जा रही है कि वह अधिक-से-अधिक अन्न पैदा करनेमे लग जायँ। बात बहुत दुरुस्त है । इस कठिन समस्याका आजकी हालतमे और कोई हल हो नही सकता । मगर जो तरीका अख्तियार किया जा रहा है वह निहायत ही नाकाफी है। उससे हमारा उद्देश्य नही हासिल होगा । लोगोको इसका ख्याल करना चाहिये कि जिससे वह अपील कर रहे है उसके दिल और दिमागपर इसका क्या असर पड़ेगा । आखिर यह भी कोई सोचता है कि एक किसान इस तरह जी-तोड़ परिश्रम करनेकी बात क्यो सोचे ? क्या इसलिए कि यह लड़ाई उसकी लडाई है और ब्रिटिश सरकारके जीत जानेपर उसका भाग्योदये होगा? यह तो उसकी अक्लमे नही अँटता । सरकारकी ओरसे जो व्यवहार उसके साथ किया जा रहा हे उसका अनुभव करते हुए ऐसी विचारधाराको उत्तेजना नही मिलती। तो क्या इसलिए कि शहरोके वसनेवालोंको वड़ी तकलीफ होगी? उन्होने उसके लिए क्या किया है या कर रहे है ? या इसलिए कि जो कुछ वह पैदा करे वह मालिकके लगान, महाजनके सूद और तरह-तरहकी माँगोको पूरा करनेमे खत्म हो जाय'