पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२०१

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१८८ राष्ट्रीयता और समाजवाद स्थापनाको अपना लक्ष्य बनाया तो अत्युक्ति न होगी। किन्तु इन सब क्षेत्रोमें हमारा काम प्रचारात्मक रहा है, पर अव इस प्रकारके कार्यका उतना महत्त्व नहीं रह गया है । अगस्त-क्रान्तिके फलस्वरूप राष्ट्रीय और क्रान्तिकारी भावना देशके विविध वर्गामे व्याप्त हो गयी है । भारतकी स्वतन्त्रताका लक्ष्य सवने स्वीकार कर लिया है । आन्दोलन- का विस्तार तो हो गया है, किन्तु अव उसमे गम्भीरता लानेकी आवश्यकता है। यह कार्य व्याख्यानो द्वारा नही हो सकता । इसके लिए क्रान्तिकारी ढंगका रचनात्मक कार्य करनेकी आवश्यकता है। जिस प्रकार हमारे लिए यह जानना जरूरी है कि विना संघर्षके भारतको पूर्ण स्वतन्त्रता नहीं मिल सकती. उसी प्रकार यह समझना भी जरूरी है कि पुराने ढंगकी तैयारी हमको स्वतन्त्रता नही दिला सकती। गत अगस्त-क्रान्तिका इतिहास मनन करनेसे हमको अपनी दुर्बलता और त्रुटियाँ मालूम हो जायेंगी । हमको मालूम हो जायगा कि सफलताके लिए तैयारी और सगठनकी आवश्यकता है तथा क्रान्ति स्वतः सफल नही हुआ करती । यह ठीक है कि बहुजन समाजका क्रान्तिमे सम्मिलित होना क्रान्तिको वल देता है तथा इसी प्रकार क्रान्ति लोकतन्त्रके मागसे विचलित नही होती। किन्तु यह भी निर्विवाद है कि क्रान्तिका संगठन सुदृढ होनेसे ही तथा क्रान्तिके' संचालकोकी दृष्टि स्पष्ट तथा रचनात्मक होनेसे ही क्रान्ति सफल होती है तथा उसकी आधारशिला मजबूत होती है । आजकी अवस्थामे इस तैयारीमे प्रचारका वहुत निम्न स्थान है । आवश्यकता है क्रान्तिकारी मनोवृत्तिसे रचनात्मक और संगठनात्मक काम करनेकी । अतः प्रत्येक क्षेत्रमे कामके ढंगको वदलना आवश्यक है । वडी-वड़ी सभाएं करना तथा राष्ट्रीय पर्व मनाना ही अवतक हमारा काम रहा है । संस्थानोके पदोके लिए होड़ भी होता रहा है। किन्तु अव आवश्यकता इस वातकी है कि हम जगह-जगह गाँवोके समूहोको क्रान्तिका केन्द्र बनावे जहाँके लोग इस प्रकार सगठित हो कि विदेशी शक्तिको हटाकर अपनी शक्तिको जमा सके और ग्रामकी सस्थानो द्वारा राज-काज चला सके । मिदनापुर और सताराके उदाहरण हमारे सामने है । हमारा कर्तव्य है कि हम कुछ क्षेत्रोको चुनकर उनमे इस प्रकार काम करे, जिसमे वहाँके रहनेवाले नवीन शिक्षा ग्रहण कर लोकतन्त्रात्मक ढगसे अपने संगठनको चलावे तथा जीवनके कई विभागोमे यथा- सम्भव आत्मनिर्भर हो । इन क्षेत्रोमे प्रौढ़-शिक्षा और सहयोग ( Cooperation ) को उत्तेजन दिया जाय; ग्राम पचायतद्वारा सब झगडे तय किये जाय, किसान युवकोके स्वयंसेवकोके स्वयसेवक दलका सगठन कर आत्मरक्षाका विधान किया जाय; जमीदार, महाजन तथा पुलिसके अत्याचारोका विरोध करनेकी क्षमता पैदा की जाय , जनताकी राजनीतिक चेतनाकी सतहको ऊँचा किया जाय तथा अन्य सव आनुपगिक कार्य किये जायें जिनसे हमारे उद्देश्यकी पूर्ति हो । यदि केन्द्रमे क्रान्तिकी भावना न हो, तो यह सब कार्य निर्जीव हो जायेंगे। इसी प्रकार मजदूरोमे शुद्ध मजदूर आन्दोलनकी सतहसे ऊपर उठकर हमे मजदूरोको समय आने पर आम हडतालके लिए तैयार करना चाहिये । यह ठीक है कि इसका भी प्राधार एक सुदृढ मजदूर-आन्दोलन ही होगा, किन्तु हमारा कार्य केवल इस आधारको विस्तृत तथा गम्भीर करनेतक सीमित न होगा। यह तो सुधार-