समाजवादी क्रान्तिकी रूपरेखा १६३ फिरसे जिन्दा किया। लेनिनके उद्योगसे कम्युनिस्ट इंटरनेशनलकी स्थापना हुई और रूसकी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी कहलाने लगी। इस इतिहाससे हमको यह मालूम होता है कि कम्युनिज्म शब्दका कोई विशेष महत्त्व नहीं है । नाम रखते समय हमको यह विचार करना है कि जो नाम हम स्वीकार करे, वह समयकी माँगको ध्यानमे रखे और वह ऐसा न जिससे किसी प्रकारका भ्रम उत्पन्न हो । यदि कोई नाम बदनाम हो चुका है तो उसका परित्याग करना ही उचित है । जिस समय हमारी पार्टीका जन्म हुआ था, उस समय भारतके कम्युनिस्ट काग्रेसके विरोधी थे और इसलिए सन् १९३० के सत्याग्रह आन्दोलनमे उन्होने मजदूरोको उसमे शरीक होनेसे रोका था। अत: हमे अपनेको उनसे पृथक् करना आवश्यक था । हम इसके भी विरुद्ध थे कि हमारी पार्टी किसी बाहरी सस्थाके अधीन हो। हम किसी अन्तर्राष्ट्रीय सस्थामे शरीक होनेके विरुद्ध कभी भी न थे और आज भी नहीं है, किन्तु हम इसके लिए तैयार नही कि कोई बाहरी सस्था हमारा नियन्त्रण करे, विशेपकर जब उस सस्थामे एक ही देशका प्राधान्य हो। इसलिए हमारी पार्टीका नाम काग्रेस सोशलिस्ट पार्टी रखा गया। सोशल डेमोक्रेट वदनाम हो चुके थे, इसलिए इस नामको हम अपना नही सकते थे। पुन: 'डेमोक्रेट' शब्दके प्रयोगकी अब कोई आवश्यकता भी नहीं थी, क्योकि डेमोक्रैट शब्द अव उग्र राजनीतिका सूचक नही रह गया था। हमारे देशमे इसका कोई महत्त्व भी न था । हमारे विरोधियोने हमको सोशल फासिस्ट ( Social fascist ) आदि नामोसे पुकारा, किन्तु वही सन् ४२ की परीक्षामे खरे नहीं उतरे । उनकी नीति Revisionism कहलायेगी, क्योकि उन्होने, जहाँतक हमारे देशका सम्बन्ध है, लेनिनके साम्राज्य- वाद विरोधी युद्धके नारेको जन-युद्धके नारेमे परिवर्तित कर दिया और इस प्रकार माक्र्स- वादके क्रान्तिकारी तत्त्वका परित्याग किया । सन् ४२ के आचरणके कारण कम्युनिस्ट नाम हमारे यहाँ और भी वदनाम हो गया है । आज हमारे लिए नामका सवाल फिर उठ गया है। कहा जाता है कि 'काग्रेस' शब्द निकाल देना चाहिये, क्योकि इसके जोड़नेसे हमलोगोमे एक प्रकारसे यह भ्रम फैलता है कि काग्रेसने हमको स्वीकार कर लिया है । मैं नही समझता कि ऐसा भ्रम किसीको हुआ है; किन्तु यदि ऐसी आपत्ति की जाती है तो मुझको ऐसा करनेमे कोई एतराज नही है । इससे भी अधिक महत्त्वका प्रश्न यह है कि आज अपने उद्देश्यको स्पष्ट करनेके लिए समाजवादमे कोई विशेषण लगाना चाहिये या नही । मैं समझता हूँ कि ऊपर हम जिस प्रश्नका विवेचन कर चुके है, उससे 'प्रजातान्त्रिक समाजवाद' इस शब्दके प्रयोगकी आवश्यकता स्पष्ट हो चुकी होगी। 'Social democracy'न कह कर 'Democratic socialism कहना चाहिये । इससे मार्क्सका अभिप्राय ठीक-ठीक व्यक्त होता है तथा Democracy को छोड़कर सच्चे समाजवादको स्थापना नही हो सकती है, यह बात भी जाहिर हो जाती है। इसका यह अर्थ नहीं है कि आवश्यकता पड़नेपर मजदूर जमातका अधिनायकत्व थोड़े समयके लिए न स्थापित किया जाय । इसकी सदा
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