१६२ राष्ट्रीयता और समाजवाद अन्य प्रश्नोको थोड़े समयके लिए अभिभूत कर लिया तव कम्युनिस्टोकी भी आँखें खुली और उन्होने फासिज्मका सफल विरोध करनेके लिए राजनीतिक लोकतन्त्रकी रक्षाके नाम पर जगह-जगह संयुक्त मोर्चा बनाया । यही कारण है कि युद्धकालमे यूरोपके कम्युनिस्टोके प्रोग्राम राजनीतिक लोकतन्त्र तथा नागरिक स्वतन्त्रतापर ही जोर देते थे और उनमें समाजवादको स्थान न था तथा आज भी उनका सबसे अधिक जोर लोकतन्त्रपर ही है। किन्तु खेदकी बात है कि सोवियत रूसमे इस ओर कार्य नही हुआ है। यदि वहाँ राजनीतिक लोकतन्त्रको स्थापना हो जाती तो स्थितिमे महान् परिवर्तन हो जाता । फासिस्ट शक्तियोका विनाश इसी नारेके आधारपर हुअा है । यदि बहुजन इसी आधारपर फासिज्मका विरोध करनेके लिए संगठित हो सकता तो इस आधार की रक्षा करना हमारा कर्तव्य हो जाता है। पुनः मार्क्सने लोकतन्त्रका तथा प्रत्येकके व्यक्तित्वके पूर्ण विकासका कई जगह उल्लेख किया है और यह भी बताया है कि समाजवादको स्थापनासे ही यह उद्देश्य पूरा हो सकता है । आज मार्क्स की इस शिक्षापर विशेष जोर देनेकी जरूरत है । अत सहज रूपसे यह प्रश्न हमारी विचार-कोटिमे या जाता है कि यह कार्य कैसे पूरा हो सकता है । इस सम्बन्धमे विचारधाराके नामका प्रश्न आ जाता है । नामका भी अपना महत्त्व है । मार्क्स और एगल्सने जब 'कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो' लिखा था तव पुस्तकके नामका प्रश्न उनके सामने था । मैनिफेस्टोको भूमिकामे इस प्रश्नका विवेचन किया गया है और क्योकि उस समय काल्पनिक समाजवाद ( Utopian socialism ) का वडा प्रभाव था, इसलिए 'सोशलिस्ट' नाम रखना उचित न समझा गया । इसी कारण संस्थाका नाम भी कम्युनिस्ट लीग रखा गया । किन्तु सन् १८६५ के लगभग हम देखते हैं कि कम्युनिस्ट नामका परित्याग किया जाता है । सन् १८६३ मे लसाल ( I asalle ) ने जर्मनीमे एक सोशलिस्ट लेवर पार्टी स्थापित की थी और सन् १८६६ मे वावेल ( Babel ) और लिब्कनैक्ख्त ( Liebknecht ) ने एक दूसरी पार्टीकी स्थापना की थी, जिसका नाम 'सोशल डेमोक्रेटिकपार्टी' रखा गया । सन् १८७५ मे दोनो एकमे मिला दी गयो । इन पार्टियोके प्रतिष्ठापक मार्क्सवादी थे और इस समयसे माक्सिस्ट पार्टियोका नाम सर्वन यही रखा जाने लगा । नाममे यह परिवर्तन क्यो हुआ, यह विचारणीय है । काल्पनिक समाजवादका महत्त्व नष्ट हो चुका था, इसलिए सोशलिस्ट नामका प्रयोग करनेमे अव कोई खतरा नही था। उस समय समाजमे डेमोक्रेट राजनीतिक क्षेत्रमे सबसे उग्र समझे जाते थे और वह लोकप्रिय भी थे। अत: समाजवादियोको बताना था कि उनकी भी राजनीति उग्र है । इसलिए उन्होने इस नामको अपनाया, किन्तु अपनी विशेषताको भी नामसे व्यक्त करना था, इस कारण सोशल डेमोक्रैट नाम रखा गया । अर्थात् वह डेमोक्रेट जो सामाजिक प्रश्नोमें दिलचस्पी लेते है, जिनके उद्देश्यमे राजनीति और समाजनीति दोनोका समावेश है। रूसकी पार्टीका भी यही नाम था, किन्तु जब प्रथम महायुद्धमे रूसको छोड़कर अन्य देशोकी पार्टियोने वास्ले कान्फरेंस (सन् १९१२) के निश्चयके विरुद्ध अपने-अपने देशके पूंजीपतियोका युद्धमें साथ दिया, तव लेनिनने कम्युनिस्ट नामको
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