जनतन्त्रको रक्षाके लिए विरोधी दलकी आवश्यकता २०७ किसी धर्मविशेषसे सम्बद्ध न करना चाहता हो, जो गवर्नमेण्टकी आलोचना केवल आलोचनाकी दृष्टिसे न करे तथा जिसकी आलोचना रचना और निर्माणके हितमे हो न कि ध्वंसके लिए। जनतन्त्रका अभ्यास नहीं हम इस अत्यन्त आवश्यक कार्यको पूरा करना चाहते है। हम इस वातको कहनेके लिए क्षमा चाहते है कि इस कार्यकी पूर्ति हमारे ही द्वारा हो सकती है। दुर्भाग्यवश जनतन्त्रकी कोई परम्परा हमारे देशमे नही है तथा साम्प्रदायिकताका इस समय प्राधान्य है । हम जनतन्त्रके अभ्यस्त नही है । इस कारण रचनात्मक विरोधके अभावमे अधिनायकत्वकी मनोवृत्तिका पनपना सुगम है । केवल साम्प्रदायिकताका विरोध करनेसे जनतन्त्रकी स्थापना नही होती। इस सम्बन्धमे मैं कहूँगा कि क्या ही अच्छा होता यदि माननीय पुलिस-सचिव हमारे गृहसचिव होते । कल तथा अपने वजट भाषणमे उन्होने जिन सिद्धान्तोका निरूपण किया है और जिस प्रकार जनतन्त्रकी प्रगतिके लिए जनतन्त्रकी आवश्यकता प्रतिपादित की है, उससे हम पूर्णत सहमत है । हम आशा करते है कि यह नीति केवल उनकी व्यक्तिगत राय ही न होगी, बल्कि गवर्नमेण्टकी स्थिर नीति होगी। यदि ऐसा है तो हम आशा कर सकते है कि रचनात्मक विरोधी दल गवर्नमेण्टका पूरक होगा और अपने महत्त्वपूर्ण कार्यमे सफलता प्राप्त करेगा । सम्पत्तिके उत्तराधिकारी वियोग सदा दुखदायी होता है । इस विछोहका हमको कोई कम दु ख नही है । हमको इससे मार्मिक पीड़ा पहुँची है, किन्तु सस्थाओ तथा व्यक्तियोके जीवनमे ऐसे अवसर आते है, जब उनको अपने आदर्शों और उद्देश्योकी पूर्तिके लिए अपनी प्रियसे प्रिय वस्तुका भी त्याग करना पड़ता है । हम सन्तप्त हृदयसे अपना पुराना घर छोड़ रहे है। किन्तु जो अपनी पैतृक सम्पत्ति है, उससे हम दस्तवरदार नहीं हो रहे है । यह सम्पत्ति भौतिक नही है । यह आदर्शो तथा पवित्र उद्देश्योकी सम्पत्ति है । इस सम्पत्तिका उत्तराधिकारी न केवल ज्येष्ठ पुत्र होता है और न इस सम्पत्तिका समविभाग ही होता है । धार्मिक समुदायोका पर्सनल ला अर्थात् व्यक्तिगत विधान उसपर लागू नही होता । इस सम्पत्तिका दायाद वही हो सकता है, जो अपने आचरण और विश्वाससे अपनेको उसका अधिकारी सिद्ध करे। इसमे मिथ्या गर्व नही है । हम अपनी सीमानो को जानते है । हम अपनी कमजोरियोसे भी परिचित है । किन्तु हम यह कहना चाहते है कि हम इसका अधिकारी वननेका प्रयत्न करेगे । विद्वेषकी भावना नहीं ब्रिटिश पार्लमेण्ट तथा अन्य व्यवस्थापिकाओका इतिहास बताता है कि ऐसे अवसरपर लोग त्यागपत्र भी नही देते । हम चाहते तो इधरसे उठकर किसी दूसरी ओर वैठ जाते । किन्तु हमने ऐसा करना उचित नही समझा । ऐसा हो सकता है कि आपके आशीर्वादसे निकट भविष्यमे हम इस विशाल भवनके किसी कोनेमे अपनी कुटीका निर्माण कर सके
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