पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२२२

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हमने कांग्रेस क्यो छोड़ी २०६ किसान-मजदूर राज्य स्थापित करेगी। इस घोपणाके साथ सन् ४२ के जन-आन्दोलनका श्रीगणेश हुआ था। यद्यपि काग्नेसने धीरे-धीरे किसानोके अधिकारोको स्वीकार किया और वह उनको अपने प्रभावक्षेत्रमे लायी तथापि मजदूरोके लिए काग्रेस उतना नहीं लडी । यही कारण है कि काग्रेसके सामाजिक आधारमे मजदूरोका वह स्थान नही है । पिछले चुनावमे मजदूरोने भी काग्रेसका साथ दिया, किन्तु इसका कारण यह है कि मजदूर भी आजादी चाहता था। वर्गकी हैसियतसे वह तव भी काग्रेससे अलग-सा था । शोषित वर्गोके साथ महात्माजी तथा अन्य काग्रेसजनोकी जो सहानुभूति थी उसके कारण मजदूर भी एक अस्पष्ट रूपसे काग्रेसकी ओर आकर्पित होता था, किन्तु उसने काग्रेसको उस तरह नही अपनाया जिस तरह किसानवर्गने अपनाया था। अब हिन्दुस्तान आजाद हो गया है । सर्वत्र काग्रेसकी गवर्नमेण्ट शासनारूढ है । काग्रेसका कार्य अव पूरा हो गया है। जब कोई आन्दोलन सफल हो जाता है उसके नेताअोके हाथोमे अधिकार आता है तब उसमे एक प्रकारकी जडता आ जाती है । जो आन्दोलन पहले सजीव था और निरन्तर विकसित होता रहता था वह अब धीरे-धीरे निश्चित रूप धारण करने लगता है और उसमे विकासकी गुंजाइश गायव होने लगती है । गवर्नमेण्टका संस्थापर अधिकार वढने लगता है और सस्था धीरे-धीरे अपने स्वतन्त्र अस्तित्व और महत्त्वको खोने लगती है। क्योकि काग्रेसका ध्येय अव पूरा हो गया है इसलिए वह अव गवर्नमेण्टकी इच्छाकी पूर्तिमान करने लगी है। प्रश्न यह है कि क्या काग्रेस आज अपनी आर्थिक नीतिको इस प्रकार बदल सकती है कि हम कह सके कि यह नीति समाजवादके आधारपर आश्रित है । यह कार्य अब दुष्कर क्या असम्भव हो गया है। काग्रेसका निरन्तर विकास होता आया है, किन्तु लक्ष्यके शुद्ध राजनीतिक होनेके कारण इसका प्लेटफार्म काफी चौडा रहा है । इस विकासका कारण यह था कि काग्रेस एक आन्दोलन था । इस आन्दोलनसे प्रभावित होकर काग्रेसमे नये-नये समूह और वर्ग सदा आते रहे है । आन्दोलनकी मर्यादा गवर्नमेण्टकी आवश्यकताअोसे सीमित न थी। गवर्नमेण्ट सदा स्थिरता चाहती है। वह परिवर्तनोसे घवरा है। उसकी चाल सदा मन्द होती है, जन-आन्दोलनका स्वागत करनेके वजाय वह उसका रोक-थाम करती है और उसका उत्तर सदा यही होता है कि जब हम जनताके हितोकी रक्षा करनेको तैयार है तो आन्दोलनकी क्या आवश्यकता है । जनताका हित किसमे है इसका अन्तिम निर्णायक वही वनना चाहते है । काग्रेस गवर्नमेण्टकी मनोवृत्ति भी ऐसी ही बन गयी है। इसमे कोई आश्चर्य करनेका कारण नही है । यह स्वाभाविक है, क्योकि कांग्रेसकी कोई ऐसी स्पष्ट और विशद अर्थनीति न थी जो नीचेसे आयी होती, इसलिए काग्रेसमे भी वही जड़ता पाती जाती है । यह ठीक है कि काग्रेसमे काफी असन्तोप है और यह असन्तोप इसी कारणसे है कि काग्रेस अबतक एक आन्दोलन थी न कि एक पार्टी। विविध विचारधाराएँ जो अवतक काग्रेसमे रहकर काम करती थी अव एक साथ काम करनेमे दिक्कत महसूस करती है। स्वतन्त्रता पानेके वाद आर्थिक प्रश्न सफाईसे सामने आने लगे है और वह उत्तर चाहते १४