पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२३०

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कुछ गम्भीर प्रश्न २१७ अधिनायकवादकी ओर झुक रही है। उनका यह दावा है कि वर्तमान शासन-व्यवस्था विल्कुल ठीक है और उसका समर्थन करना चाहिये । राष्ट्रीय सरकारके नामपर जनतासे यह अपील की जाती है कि वह इसको समझदारी और न्यायका ठेकेदार मानकर इसपर विश्वास करे । हमारे शासक आज अपनी आलोचना बर्दाश्त नही कर सकते । उन्हें अपने निर्णयपर अत्यधिक भरोसा है, बल्कि मैं कह सकता हूँ कि वर्तमान संकट कालमे किसीकी सहायताके विना ही सामना करनेका उनको अत्यधिक गर्व है । जनतामें आतंक है लेकिन मुझे सबसे अधिक दुःख यह देखकर हुअा है कि आज अधिकाश जनतापर काग्रेसके अधिकारियोका आतक वैठ गया है। जो काग्रेसजन-कानेस और सरकार, दोनोमे उच्च पदपर, है, उनसे जनता बहुत डरती है । सम्भवत वह काग्रेसजनोसे अधिक भय खाती है, क्योकि वे अपने असीम अधिकागेसे उसे हानि पहुँचाना चाहते है । स्वतन्त्रता- प्राप्तिके पूर्व का प्यार अाज भय और घृणामे वदल गया है । इस भयका क्षेत्र बहुत विस्तृत हो गया है और जनताकी गतिविधि पगु हो गयी है । महात्माजीकी शिक्षाप्रोका सार था निर्भयता । लेकिन आज तो उनके तथाकथित अनुयायी ही जनतामे भय उत्पन्न करनेके उत्तरदायी हो रहे है । और जहाँ निर्भयता नही वहाँ प्रजातन्त्र कभी सफल नही हो सकता । सीधी-सादी बात तो यह है कि आज जनता स्वतन्त्रताकी प्राभाका अनुभव नहीं करती। फलत. राजनीतिक असफलता सामने है, जो क्रमश राजनीतिक असन्तोप और उदासीनतामे परिणत होती जा रही है। इन सारी बातोका एक ही कारण है कि आज काग्रेसकी राजनीति गन्दी हो गयी है। अव राजनीति अधिकार और धन-प्राप्तिका एक साधन मात्र बन गयी है । काग्रेसकी राजनीति अाज पहलेकी तरह जनताको नये सत्योका दर्शन करानेके लिए संघर्प नही करती, ससारको पहलेसे अच्छा बनानेके लिए अव वह प्रयत्न नही कर रही है। काग्रेसजनोकी सामाजिक चेतना मन्द पड गयी है और ऐसा लगता है कि काग्रेसकी आत्माको लकवा मार गया है और यह इसलिए हुआ है कि काग्रेस अाज अान्दोलन नही रह गयी । जनताको अब पहलेकी तरह इससे प्रेरणा नही मिलती। इससे केवल उन्ही लोगोको प्रेरणा मिलती है जो इसकी सेवायोके वलपर मन्त्रियो और सभा सचिवोके पदपर पहुँच गये है और यह भी इसलिए क्योकि उनको भ्रम है कि वे जनताकी सेवा कर रहे है । इसलिए या तो काग्रेसको खत्म हो जाना चाहिये या उसे अपना कायाकल्प करना चाहिये । देशका सबसे बडा राजनीतिक संगठन होनेके कारण इसका उत्तरदायित्व भी महान् है । उसका कर्तव्य है कि यह जनतामे गौरव और निर्भयताकी नयी भावना भरे और एक नयी दिशाका निर्देश करे । आजकी यह सबसे बडी आवश्यकता है। यदि जनताको यह नया प्रकाश मिला तो उसकी शक्तिका रुद्ध स्रोत मुक्त होकर वह उठेगा और एक नये समाजके निर्माणके लिए शक्तिशाली सघटित प्रयत्नकी सम्भावना उपस्थित हो जायगी। लेकिन आजकी स्थितिसे तो निराशा ही होती है । यह वातावरण हमारे उन सभी सामाजिक तथा आध्यात्मिक मूल्योको नष्ट कर देगा, जिनको अपना लक्ष्य बनाकर