पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२२० राष्ट्रीयता और समाजवाद असम्भव हो जाता है । मैं जीवन-प्रवाहको बढानेवाली सस्कृतिका ही उपासक हूँ, मध्य- युगीन सस्कृति गुलामीका उपासक नही । भारतकी प्राचीन संस्कृतिका अाधार विश्व- बन्धुत्व, श्रेष्ठ गुणोको ग्रहण करना और दुर्गुणोका परित्याग करना है। इसी सस्कृतिकी हमें रक्षा करनी है । स्थिति वदलनेपर जीवनके नये मूल्य अपनाने होते है । वर्तमान युग जनतन्त्र और समाजवादका युग है। रूस और पूर्वी यूरोपके देणोमे समाजवादी अान्दोलनको लगभग पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है । आज इगलैण्डकी स्थिति भी यही है । वहाँ मजदूर दलकी सरकार है । पाजसे ५० वर्ष पूर्व समाजवादके आन्दोलनको मूर्खता कहा जाता था। आज दुनियाके लगभग सभी देशोमे नवीन रास्ते अपनाये जा रहे है । अधिकाण देशोमे समाजवादी दलोके सहयोगके विना शासन चलाना असम्भव हो गया है। समाजवादका एकमात्र शक्तिशाली विरोधी अमेरिका अाज विश्वके लिए अभिशाप बन रहा है । हमारे देशमे काग्रेससे समाजवादकी आशा की जाती थी, किन्तु अव यह अाशा धूलमें मिल गयी है । काग्रेसकी प्रतिमाएँ अत्यधिक मुन्दर है, लेकिन कोरी प्रतिज्ञासे काम नही चलता । हमे प्रत्येक सगठनके सामाजिक आधारको देखना होगा । आज यह स्पष्ट हो गया है कि काग्रेसका सामाजिक अाधार पूँजीवाद है । अत. उससे समाजवादकी स्थापना नहीं हो सकती। आज जमीदारी समाप्त हो जानेके बाद यदि जमीदार एक पार्टी बनावे और पूंजीवादको समाप्त करनेका नारा लगाव तो क्या हम उनके नारेपर विश्वास कर सकते है ? ऐसे लोगोसे पूंजीवादके नाशकी आणा नहीं की जा सकती। काग्रेस अाज निर्जीव हो गयी है । आन्दोलन और नवीन आदर्णोके विरुद्ध वह जनताके मार्गमे रोड़े अटका रही है। वर्तमान स्थितिमे काग्रेस सरकारका नियन्त्रण करनेके बजाय काग्रेस स्वय सरकारसे नियन्त्रित होती है। पिछले चुनावोमे जमीदारो और पूंजीपतियोने खुले दिलसे काग्रेसकी मदद की है । वे धीरे-धीरे काग्रेसमे घुम रहे है । वे जानते है कि उन्हे अन्यत्र शरण नहीं मिल सकती । काग्रेस उनके प्रभावमे आती जा रही है । अव ऐसे लोगोसे किसान-मजदूर राज्यकी स्थापना कैसे हो सकती है ? स्वस्थ विरोधी दलके अभावमे शासन निरंकुश और भ्रष्ट हो जाता है । जनतन्त्रको सफल वनानेके लिए हमे नयी परम्परा कायम करनी होगी। सोशलिस्ट पार्टीने काग्रेससे अलग होकर और विरोधी दलकी तरह कार्य करनेका निश्चय कर देशका अत्यधिक उपकार किया है । विभिन्न साम्प्रदायिक दल अपने रूप बदलकर काग्रेसमे शामिल हो रहे है । काग्रेसके छोटे-छोटे उग्र दल समाजवादी पार्टीमे सम्मिलित हो रहे है । काग्रेस अव राष्ट्रीय संस्था नही रह गयी है। यह एक सवसे बड़ा और पुराना राजनीतिक दल अवश्य है । काग्रेसमे भी कुछ समाजवादी है, किन्तु अल्पसख्यक होनेके कारण उनकी वात वहाँ नही सुनी जाती। राष्ट्र-निर्माणके लिए सर्वाधिक आवश्यक चीज जनताका सहयोग है। गरीव जनता-किसान-मजदूर- भी त्याग कर सकती है। किन्तु यह तभी सम्भव है जव उसे नवीन सामाजिक ढांचे में उचित स्थान प्राप्त हो । रूसकी राज्यक्रान्तिके वाद वहाँकी