पटना अधिवेशन २२१ सरकारने विदेशी सहायताके बिना केवल जनतासे आश्चर्यजनक उन्नति कर डाली। रूसकी जनता समझती थी कि उसके परिश्रमसे चन्द व्यक्ति ही मौज न करेगे । राष्ट्रकी सम्पत्तिको उत्पन्न करनेवाला किसान-मजदूर सब कुछ कर सकता है । इसके लिए उसका राज्य कायम होना जरूरी है । जनतामे विश्वास खोना आत्मविश्वास खोना है । आकस्मिक परिवर्तन सम्भव भले ही न हो, किन्तु पुराने ढाँचेके रहते थोडा परिवर्तन भी नही हो सकता । काग्रेसका सामाजिक आधार उसे आगे नहीं बढ़ने देता। इतना ही नही, वह तो आपको पीछेकी ओर खीच रहा है । सरकारने पूंजीपतियोको १० वर्पतक निर्विघ्न शोषणका पट्टा दे दिया है । उसके बाद राष्ट्रीयकरण करनेकी वाते व्यर्थ है। समाजवादके विना वेकारीकी समस्याका हल भी सम्भव नही है । भारतमे समाजवादी पार्टी ही समाजवादकी स्थापना कर सकती है । एक बात और है । हमे राज्य और सरकारके अन्तरको भली भांति समझ लेना चाहिये । उपर्युक्त दोनो चीजे पृथक् है । राज्य स्थायी होता है, किन्तु सरकार बदलती रहती है। उसका बदलना जरूरी होता है । उसे हम वदलेगे भी। जो लोग सन् ४२ की प्रतिज्ञा पूरी करना चाहते हैं उनको मै सोशलिस्ट पार्टीमे सम्मिलित होनेके लिए निमन्त्रण देता । हम केवल पुरानी पूंजीके आधारपर अपना कार्य नही चलाना चाहते । उच्च आदर्शोमे विश्वास करनेवाले सभी शिक्षित व्यक्तियोका हम स्वागत करते है। पार्टीका संचालन पूर्णत जनतन्त्रात्मक ढगसे होगा । पटना अधिवेशन साथियो, यह बहुत ही खेदका विषय है कि हमारे मनोनीत सभापति श्री यूसुफ मेहरअली साहब अपनी वीमारीके कारण इस ऐतिहासिक महत्त्वके अधिवेशनकी सदारत करने नही आ सके । इस मौकेपर हमारे विचार विमर्शका पथ-प्रदर्शन तथा हमारे कार्योका संचालन करनेके लिए हमे उनकी सख्त जरूरत थी। उनके परिपक्व तथा सतुलित विचार, समाजवादी आदर्शोके प्रति उनकी अटल निप्ठा, उनकी जवरदस्त संगठन शक्ति और उनका मोहक व्यक्तित्व-इन सभी गुणोने मिलकर भारतवर्पकी राजनीतिमे उनका एक विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान बना दिया है । यह हमारा दुर्भाग्य है कि निरन्तर अस्वस्थताके कारण वे अपनी वहुमूल्य सेवाएँ पार्टीको समर्पित करनेमे असमर्थ है । फिर भी बड़ी ही उत्सुकतासे हम आशा करते है, और यही हमारी शुभकामना है कि वे शीघ्र ही स्वस्थ हो जायेगे और इस देशमे समाजवादी लक्ष्यकी स्थापनामे बहुमूल्य देन दे सकेगे । उनकी अनुपस्थितिमे मुझे उनका स्थान ग्रहण करनेके लिए कहा गया है । दूसरी १. 'संघर्ष २३.अगस्त, १९४८ ई० २. सभापतिके पदसे दिया गया भाषण (१९४६) ।
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