पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२४०

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पटना अधिवेशन २२५ उसका संकल्प एक वर्गविहीन समाजकी स्थापना करना है। काग्रेसके अध्यक्षने यह भविष्यवाणी भी की है कि अगले पांच वर्षोंमे रक्तहीन क्रान्तिके द्वारा देश समाजवादी राज्यकी प्राप्ति कर लेगा। किन्तु व्यवहारमे काग्रेसके ये सारे दावे झूठे सावित हो रहे है और जनताको एक नवीन दिशाकी प्रेरणा प्रदान करनेमे वह असफल रही है । जान पड़ता है कि जनतामे अब उसे विश्वास नही रहा । जन-आन्दोलनोको नया वाना पहनाने और पुन दीक्षित करनेके लिए स्वयं जन-आन्दोलनको अपेक्षा उसका विश्वास कानूनोमे अधिक दिखायी देता है । इसने कोई महत्वपूर्ण कार्य नही किये है और न कोई महत्त्वका सामाजिक परिवर्तन उपस्थित किया है । यह सच है कि विभाजन-जनित कुछ समस्याप्रोको, जिनका उसे अकस्मात् सामना करना पड़ा, उसने कुशलतापूर्वक हल करनेकी चेप्टा की है । उसने कुछ दूषित और प्रतिक्रियावादी शक्तियोको रोका है जिससे उसे पराभूत हो जानेका भय था। किन्तु ये शक्तियाँ वारवार सिर उठानेका प्रयत्न कर रही है और यद्यपि इस समय वे दब गयी है, तथापि हम अपनेको धोखा देगे, यदि हम यह विश्वास कर बैठे कि उनका सदाके लिए विनाश हो चुका है । उनकी नीवे अव भी सुरक्षित है और वे प्रवृत्तियाँ और विचार जिनसे इन शक्तियोको वल मिलता है अब भी अपरिपक्व युवकोके चित्तको आकर्षित कर रहे है । यह निश्चित है कि वे वार-बार नये वानोमे प्रकट होती रहेगी, जवतक हम इस विपको सामाजिक जीवनसे निकाल फेकनेके लिए कुछ ठोस कार्य नही करते । इस विपका निवारण करनेके लिए एक शक्तिशाली सास्कृतिक आन्दोलनकी आवश्यकता है जो मध्ययुगीन अन्धविश्वासके स्थानपर ज्ञान और वुद्धिवादकी प्रतिष्ठा करे । इन प्रतिक्रियावादी शक्तियोको काग्रेसमे सम्मिलित होनेका निमन्त्रण देकर खतम नहीं किया जा सकता । यह सोचना कि यदि ये अपना अलग सगठन समाप्त कर काग्रेसमे मिल जायें तो इससेकाग्रेसकी शक्तिमे वृद्धि होगी और वह दृढ होगी, समस्याको आवश्यकता- से अधिक आसान समझ लेना है । मेरा यह निश्चित विचार है कि यह प्रक्रिया आरम्भ होनेपर काग्रेस और अधिक विकारग्रस्त हो जायगी । मुख्य प्रश्न तो यह है कि क्या काग्रेस अपने नये उद्देश्योकी पूर्तिके विपयमे सच्ची है ? सरदार पटेलका कहना है कि वर्तमान सरकार उद्योगधन्धोके राष्ट्रीयकरणकी योजना कार्यान्वित करनेमे असमर्थ है । यही वास्तविक सत्य है, इसके अलावे अन्य बाते पाखण्ड और कपटाचार है; और ऐसी दशामे यह साफ है कि सरकार किसी भी आर्थिक व्यवस्थाकी स्थापनाके लिए कोई समुचित प्रयत्न नही करेगी। उसने वस्तुस्थितिको यथावत् बनाये रखनेका निश्चय किया है, और धनी तथा सुविधाप्राप्त वर्गोको इससे डरनेकी कोई आवश्यकता नही । अत. पूंजीपतियोकी अपने भविष्यको चिन्ता या तो वटी है या प्रसिद्ध काग्रेसी नेताअोके परस्पर-विरोधी और भ्रामक वक्तव्योसे उत्पन्न हुई है। प्रकट सत्य तो यह है कि कांग्रेस एक सरक्षणशील शक्ति हो गयी है और केवल शुभ घोपणाअोसे उसके स्वरूपको नही बदला जा सकता। वर्गविहीन समाजकी स्थापना हवाई वातोसे नही हो सकती। समाजवादी उद्देश्योकी घोषणाएँ केवल काग्रेसके वास्तविक रूपको ऊपरसे ढंकनेमे ही सहायक हो सकती है । उसकी कथनी और करनीका अन्तर बुद्धिमानोको धोखा नही दे सकता। यह सोचना १५