पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२४२

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पटना अधिवेशन २२७ सोशलिस्ट पार्टी नही हो सकती चाहे इसके सामाजिक उद्देश्य सोशलिस्ट पार्टी जैसे ही क्यों न हो। किसी राजनीतिक दलकी कार्य प्रणालीकी उपेक्षा नही की जा सकती। उस दलका स्थान निर्णय करते समय इसकी विवेचना करनी ही होगी, क्योकि साध्य और साधन अन्योन्याश्रित है और एक दूसरेसे अलग नही किये जा सकते। साम्यवाद प्रजातन्त्रका हिमायती नहीं है और मानव-व्यक्तित्वके विकासके लिए आवश्यक मूल्योका आदर नहीं करता। यह उस वैधानिक प्रजातन्त्रकी खिल्ली उडाता है जिसकी रक्षाके लिए इसने विगत महायुद्धमे इतना जोर लगाया। इसके लिए नैतिक नियमोकी कोई उपयोगिता नही है और क्षणिक लाभके लिए सन्देहात्मक नैतिकताके उपायोका प्राश्रय लेनेमे भी इसे हिचक नहीं होती। इसके साथ ही साथ यह रूसकी वैदेशिक नीतिका पुछल्ला है और उसके लिए यह अपने ही राज्यकी प्रादेशिक एकताको छिन्न-भिन्न कर सकता है या अपने ही राज्यको पलट सकता है । इन कारणोंसे कम्युनिस्ट पार्टी उग्र वामपक्षी पार्टी नही हो सकती। ऐसी पार्टी तो सोशलिस्ट पार्टी ही है क्योकि इसे प्रजातन्त्रमे पूर्ण विश्वास है और इसने समाजमे क्रान्तिकारी आर्थिक परिवर्तन लाना अपना उद्देश्य बनाया है। इसके साथ ही साथ यह केवल विशुद्ध विधानवादी दल ही नहीं है । इसकी क्रान्तिकारी परम्परा और जनतामे इसके कार्य इस वातकी गारण्टी है कि यह अपनी क्रान्तिकारिताको नहीं छोडेगी। मेरी रायमे यहाँ इस धारणापर भी विचार करना आवश्यक है जिसके कारण लोग समझते है कि कम्युनिस्ट पार्टीके लिए इस देशमे आगे पानेका अधिक उपयुक्त अवसर है । जो लोग इस समस्यापर अधिक दूरतक नही सोचते, यह अधिकाश ऐसे ही लोगोका विश्वास है । चीनमे कम्युनिस्ट विजय ही इस भ्रान्त धारणाका कारण है । लोग यह भूल जाते है कि दोनो देणोकी परिस्थितियोमे महान् अन्तर है । सोलह वर्षके लम्बे युद्धके कारण चीनकी स्थितिमे लगातार अव्यवस्था रही है और इसकी आर्थिक व्यवस्था अस्तव्यस्त हो चुकी है। वास्तवमे पिछले चालीस वोसे वहाँ शान्ति नही रही है । इसके विपरीत भारतवर्पमे सदा शान्ति और सुरक्षा रही है और शासनतन्त्र कभी भङ्ग नही हुआ । युद्ध कभी भारतवर्पके प्रवेशद्वारोतक नहीं पहुँच सका और हमे मानव-जीव और सम्पत्तिका वह विनाश नही देखना पड़ा जो चीनमे आये दिन हुआ है । इसके साथ ही साथ चीनमे एक कम्युनिस्ट राज्य रहा है जो सदा अपनी सीमानोका विस्तार करता रहा और कोमिन- तागसे नेतृत्वके लिए प्रतिस्पर्धा करता रहा है । भारतवर्षमे कम्युनिस्ट पार्टी जनप्रभाव- शून्य पार्टी है । चीनकी तरह भारतवर्षकी आर्थिक दशा भी नहीं खराव हुई है और न उस तरहकी मुद्रास्फीति ही हुई है। हमारे देगका शासनप्रवन्ध भी उतना भ्रष्ट नहीं है और सेना तथा पुलिस भी नये राज्यके प्रति वफादार वनी हुई है । चीनके कम्युनिस्टोके पक्षमे एक और मुख्य बात यह थी कि वहाँके लोगोको दोमेसे एकको चुनना था-या तो कम्युनिस्ट पार्टीको चुने या कोमिनतांगको । इसके अलावे उनके सामने दूसरा उपाय नही, क्योकि दूसरे राजनीतिक दल जन समर्थन विहीन छोटे-छोटे दल है । चीनकी कम्युनिस्ट सरकार च्याग-काई-शेकके शासनसे नि सन्देह अच्छी है। उन्होने सामन्तवादी प्रथाको