पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२५४

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पटना अधिवेशन २३६ दिलाना है कि 'पार्टी' को अपने कर्तव्यका ज्ञान है और आवश्यकता पडनेपर उसे कार्यान्वित करनेकी शक्ति भी उसमे विद्यमान है । जहाँ हम एक ओर किसानो और मजदूरोके वर्ग-सघटनोका निर्माण करते है और अपनी सेवा तथा कठिन परिश्रमसे उनका विश्वास प्राप्त करते है, वहाँ हमे वुद्धिवादियोमे प्रविष्ट होकर उन्हे ‘पार्टी' के झण्डेके नीचे सघटित करना है। अर्थशास्त्र तथा सामाजिक विज्ञानके अध्येतानोको 'पार्टी' मे लाना है और अपनी नीति निर्धारित करने तथा समस्याओके अध्ययन करनेके लिए उनके परामर्श और पथप्रदर्शनको सदा प्राप्त करते रहना है । हममे कार्यकर्तामोका अभाव है और मै समझता हूँ कि यही हमारी मुख्य दुर्बलता है । हमे उच्च कोटिके कुशल कार्यकर्तामोकी आवश्यकता है, जिन्हे समस्यानोका उचित ज्ञान हो तथा पार्टी के कार्यकर्तामोको उत्पन्न करनेका जिनमे पर्याप्त उत्साह हो । समाजवादी नवयुवक सघ एक ऐसा सघटन है जिसे यदि उचित रूपये सघटित किया जाय तो वह पार्टीके लिए सदस्य तैयार कर सकता है। कार्यकर्तायोकी ट्रेनिंगके लिए श्रमिक विद्यालयोकी स्थापना होनी चाहिये जहाँ उन्हे केवल सैद्धान्तिक ज्ञान ही न प्राप्त कराया जाय, प्रत्युत उनकी कार्य-क्षमताका भी उचित विकास हो । यदि हमने उन सभीके लिए द्वार न खोले जो 'पार्टी' के विधान तथा उसके कार्यक्रममे विश्वास रखते है तो हम अपने कर्तव्यकी पूर्ति न कर सकेगे। हमे उन सभी मजदूर-सघो, किसान-पचायतो, समाजवादी नवयुवक संघो, सहयोग समितियो तथा इस प्रकारके अन्य सघटनोको 'पार्टी' से सम्बद्ध कर लेना चाहिये जो एक प्रस्तावद्वारा ‘पार्टी' की योजनायो और उसकी नीतिको स्वीकार करते है। कोई भी व्यक्ति जो सोशलिस्ट सिद्धान्तोको स्वीकार करता है तथा पार्टी' के अनुशासनको पालन करनेकी प्रतिज्ञा करता है उसे भी स्वीकार कर लेना चाहिये। वर्तमान अवस्थामे जव कि आर्थिक स्थिति खराब हो गयी है और सम्पन्न लोग भी मजदूरोमे सम्मिलित हो रहे है, हमे इनवर्गोके व्यक्तियोको 'पार्टी' मे लानेसे कोई विशेष खतरा नही है।' मध्यमवर्गीय लोगोको पार्टीमे लेनेसे कुछ खतरा तो अवश्य है, परन्तु थोडेसे विवेक और सावधानीसे हम उस खतरेको टाल सकते है । यह स्पष्ट है कि हम उन लोगोको जो सम्प्रदायवादी है या स्थिरस्वार्थोका प्रतिनिधित्व करते है नही ले सकते, जबतक हमे इस वातका पूर्ण विश्वास न हो जाय कि उनमे वास्तविक हृदय-परिवर्तन हुआ है और वे जीवनके समाजवादी-दर्शनको तहेदिलसे स्वीकार कर चुके है । पार्टीके प्रधान मन्त्रीने एक विद्वत्तापूर्ण मसविदा तैयार किया है जिसमे उन्होने पार्टीके विधानपर भली भाँति विचार किया है और एक प्रस्तावित विधान भी नये सिद्धान्तोके आधारपर तैयार किया गया है । मै इस तथ्यसे भी अनभिज नही हूँ कि इस प्रश्नपर तीव्र मतभेद है, किन्तु मैं यह जानता हूँ कि साधारणतया कुछ परिवर्तनकी आवश्यकताका अनुभव किया जा रहा है। कुछ लोग ईमानदारीके साथ यह समझते है कि समान रूपसे व्यक्तिगत सदस्योकी भर्ती खतरेसे खाली नही है और वे विधानमे किसी ऐसे परिवर्तनका तीव्र विरोध करते है जो अन्तमे पार्टीके क्रान्तिकारी स्वरूपको विनष्ट कर सकता है । यहाँ मैं इस समस्याके पक्ष-विपक्षका विस्तृत विवेचन नही करूँगा । परन्तु मै यह कहनेसे अपनेको रोक नही