पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२५५

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२४० राष्ट्रीयता और समाजवाद सकता कि पार्टीमे एक ऐसी प्रवृत्ति लक्षित होती है जो पार्टीको अपने लिए सुरक्षित रखनेकी उत्कट इच्छासे नवागन्तुकोके लिए उसका दरवाजा मजबूतीसे वन्द रखना चाहती है । यह एक अवाछनीय प्रवृत्ति है जिसका उन्मूलन पार्टीकी उन्नतिके लिए आवश्यक है। नवीन रक्तकी प्राप्ति सदा वाछनीय है । पार्टीको थोड़ेसे लोगोकी निधि बननेके लिए नहीं छोड़ा जा सकता और प्रत्येक सच्चे समाजवादीको पार्टीमे सम्मिलित होनेका अधिकार है। इस प्रकारका संकुचित दृष्टिकोण समाजवादी उद्देश्यके प्रति विश्वासघात होगा। यह नितान्त अहम्मन्यता और अहंकारकी प्रवृत्ति है जिसमे वस्तुस्थितिके ज्ञानका खेदजनक अभाव दिखायी देता है । यह प्रकट सत्य है कि जवतक पार्टी सार्वजनिक स्वरूप नही धारण करती, वह अपने उद्देश्योकी पूर्ति नही कर सकती। पार्टीके पुनस्सगठनकी आवश्यकता है । उसकी विभिन्न शाखाअोके कार्योमे कोई सन्तोषजनक समन्वय नही है। विभिन्न शाखाअोके कार्योकी देखरेख करने तथा उन्हे अधिक सक्रिय बनानेके लिए उचित निरीक्षणकी व्यवस्था होनी चाहिये । पार्टी सम्बन्धी कार्योंके नये केन्द्र खोलने पडेगे और किसान पंचायतोको सुसगठित दृढ करना होगा। इस सम्बन्धमे हमलोगोको रचनात्मक कार्यपर विशेष जोर देना है । विस्तृत क्षेत्रमे केवल प्रचार-कार्यकी अपेक्षा कुछ चुने हुए क्षेत्रोमे ठोस कार्य अधिक वाछनीय है । हमलोग प्रचार-कार्यमे अभ्यस्त हो गये है, किन्तु अब इससे काम नही चलेगा। देहातोमे भी राजनीतिक चेतना उत्पन्न हो गयी है, किन्तु अवतक वहाँ कोई ऐसा सगठन नही है जो सघर्प-कालमे उनको पथ-प्रदर्शन और कार्य-निर्देशका केन्द्र बना सके । ऐसे सजीव केन्द्रोका निर्माण करना है, जहाँ नवीन सामाजिक जीवनका दर्शन हो सके । देहातोंमे नवजीवनका सचार करनेके लिए सहकारिताका विशेप महत्त्व है और अगर हमारे साथी इस ओर अधिक आकृष्ट है तो यह हमारे लिए परम सन्तोषका विषय होगा । यदि हम जनताके समक्ष निस्वार्थ और रचनात्मक कार्योद्वारा समाजवादी नीतिको कार्यान्वित करनेके लिए अपनी सच्चाई और योग्यताका प्रमाण पेश कर सके तो हम उसमे नया जीवन डाल सकते है और एक नया विश्वास उत्पन्न कर सकते है । यद्यपि हमारा सन्देश सुननेके लिए काफी सख्यामे लोग एकत्र होते है, हमे उन लोगोको यह विश्वास दिलाना है कि हम अधिकारारूढ होनेपर उनके साथ विश्वासघात नही करेगे। हम ठोस कार्यद्वारा ही जनताको आश्वस्त कर सकते है, न कि प्रचारद्वारा । अगर हम पार्टी-सघटनको अधिक व्यापक बना सके और जनताका सद्भाव प्राप्त कर सके तो उससे हमारी काफी शक्ति- वृद्धि होगी और हम निश्चित रूपसे चुनावमे विजय प्राप्त करेगे । जनतामे कार्य करना हमारी मुख्य चिन्ता होनी चाहिये । पार्टीको सामाजिक संघर्पोका प्रतीक होना चाहिये तथा उसमे साधारण जनताको आवश्यकताएँ, इच्छाएँ और आकाक्षाएँ अभिव्यक्त होनी चाहिये । हमारी बातोकी सही कसौटी हमारा कार्य है । प्रात्म-तुष्टि खतरनाक होती है । अपनी सभाग्रोमे विशाल जनसमूहको देखकर हमे भ्रममे नही पड़ना चाहिये । जनताका काग्रेसमे विश्वास नही रहा है और वह यही देखनेके लिए हमारे पास आती है कि क्या हम उसे कोई अच्छी चीज दे सकते है। वे हमारे पास इसलिए आते है कि .