पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२६०

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सत्याग्रह और प्रजातन्त्र २४५ कानूनकी स्थापना होनी चाहिये, किन्तु इसके लिए नागरिक स्वतन्त्रताका बलिदान सामान्य अवस्थामे नही किया जा सकता। साम्प्रदायिक वलवोकी वात न्यारी है। उनको तुलना शान्तिमय प्रदर्शनों और हड़तालोसे करना उचित नही है । यदि सरकार स्वयं मजदूरोके हितोका ध्यान रखे तो हडतालो और प्रदर्शनोकी प्राय आवश्यकता ही न हो । किन्तु देखनेमे यही आता है कि अच्छीसे अच्छी सरकारपर भी कर्तव्यपालन करनेके लिए दबाव डालना पड़ता है । मिल-मालिकोसे तो न्यायकी आशा करना ही व्यर्थ है । अनुभव यही बताता है कि जो युनियने हाल की है और कमजोर है, उनको जिन्दा रहनेके लिए वडा संघर्ष करना पड़ता है । मालिकोसे अपनी छोटीसे-छोटी माँगको मनवानेके लिए भी हडतालकी धमकी देनी पडती है या सचमुच हडताल करनी पड़ती है । मालिक यूनियनको सदा बुरी दृष्टिसे देखते है और वे यही समझते है कि इनसे हमारे अधिकारोको खतरा है। हमारी रायमे प्रजातन्त्रके लिए कभी-कभी सत्याग्रहका सहारा लेना पड़ता है। विद्रोह कहकर उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। यदि हिंसाका प्रयोग रोकना है तो शान्तिमय सत्याग्रहके अधिकारको कभी भी नही छीनना चाहिये । अधिकारियोको अपने कर्तव्यका ज्ञान करानेके लिए और उनकी सुस्ती दूर करनेके लिए यह एक उत्तम उपाय है । हम विनयपूर्वक कहना चाहते है कि स्वराज्यके स्थापित होनेपर भी इसका अधिकार रहना चाहिये। किन्तु आज तो हम पूर्ण स्वराज्यका उपभोग भी नही कर रहे है । हम कोई ऐसा काम न करे जिससे हमारे विरोधियोको यह कहनेका अवसर मिले कि जिन कामोके लिए हम विदेशी शासनको निन्दा करते थे, उन्ही कामोको हम स्वयं कर रहे है। मालिक और मजदूरके आपसी झगड़ोको तय करनेके लिए अनिवार्य पचायतका प्रस्ताव रखा गया है । आजके युगमे लोग राज्यपर अधिकाधिक निर्भर रहना चाहते है । मालूम होता है कि प्रजातन्त्रके तरीकोपरसे लोगोका विश्वास उठता जाता है । हर वातके , लिए कानूनकी मांग की जाती है। किन्तु कानूनसे उद्योगके क्षेत्रमे शान्ति स्थापित नही हो सकती। उल्टे इससे झगड़ोके वढनेका अन्देशा है । इस अनिवार्य गुलामीसे वचनेके लिए मजदूर हिंसा करनेके लिए मजबूर हो जायगा । यदि अदालतका निर्णय मजदूरोको. पसन्द,न आया तव वे उस निर्णयका विरोध करेगे और सरकारके विरुद्ध हडताल करनेके लिए बाध्य होगे। हमको तो ऐसी व्यवस्था करनी चाहिये कि जिसमे मजदूर सहयोग करें, न कि विद्रोह । अमेरिकाके प्रेसीडेन्ट टू मैनने तो हद कर दिया। वह इतना आगे बढ गये कि उन्होने गत मईके महीनेमे काग्रेससे एक ऐसा असाधारण कानून बनवाना चाहा जिसका अर्थ मजदूरोको संगीनोके भयसे अपने कामपर बने रहनेके लिए मजबूर करना है । उन्होने अपने लिए ऐसे अधिकार चाहे, जो किसी प्रेसीडेण्टको कभी नही दिये गये । उनकी मांग यह है कि जब कभी कोई हड़ताल हो तो उनको किसी भी व्यवसायपर कब्जा करने तथा मसाधारण अवस्थाकी घोषणा करनेका पूरा अधिकार हो । ऐसी घोषणाके बाद वह मुनाफा जन्त कर सकें, प्राज्ञाका पालन न करनेपर मजदूर-नेतानोको जेल भेज सकें, मजदूरोके