पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२६५

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२५० राष्ट्रीयता और समाजवाद चला तो इससे परस्पर सम्बन्धका एक नया ढंग निकल आयगा और इससे गाँववालोमें लोकतन्त्रकी वह भावना भर जायगी जिसकी इतनी आवश्यकता है । इस सम्बन्धका और एक पहलू है जिसका कृपिसे कोई सम्बन्ध न होनेपर भी बड़े महत्वका है । गाँवोकी अबतक इतनी उपेक्षा हुई है कि उन्हे सुधारने और एक वातावरण उत्पन्न करनेकी कोई चेष्टा नही की जायगी जिसमे गाँववाले अपनेको सुखी समझ सके तो गाँवोकी कोई उन्नति नही होगी । आजकी स्थिति यह है कि जो लोग शिक्षित हो लेते है वे गाँवोमे नहीं रहना चाहते। इससे गाँवोके कोई नेता नहीं होते और होते हैं तो वे ही पुराने ढगके आदमी । मैं समझता हूँ, यह बहुत ही अावश्यक है कि हमारे नवयुवक शिक्षा ग्रहण कर इस योग्य बने कि अपनी जनताकी सेवाके लिए गांवोमे रह सकें । हम देखते हैं, हमारे प्रान्तमे जनताको साक्षर बनानेके लिए एक बहुत बडा आन्दोलन चला है। पर अनुभव यह बतलाता है कि जो लोग आज साक्षर होते है वे कुछ समय बाद निरक्षर हो जाते है, कारण जहाँ वे रहते है वहाँ कोई सास्कृतिक वातावरण नही है । अतः यह जरूरी है कि ये स्कूल और पाठशालाएँ समाज-जीवनके केन्द्र बने । उनके साथ पुस्तकालय और वाचनालय हो, साथ ही थियेटर और आमोद-प्रमोदके उपयुक्त साधन गाँवमे हो । मैं केवल अर्थकी दृप्टिसे इसका विचार नहीं करता, बल्कि सामाजिक और सास्कृतिक दृष्टिसे भी इसे देखता हूँ । ग्रामका सारा दृश्य एक मनोहर चित्र बने। इसके लिए यह आवश्यक है कि ये सव सुधार तुरत और एक साथ किये जायें । अव कृषि-सम्बन्धी मजदूरको वातपर मैं आता हूँ। इन मजदूरोकी हालत बहुत ही खराव है । कानूनसे उनकी कोई कमसे कम मजदूरी नही निश्चित हुई है । वहुतसे स्थान मैं जानता हूँ जहाँ हमारा यह आन्दोलन नही पहुँचा है और नवीन जागरण नही उत्पन्न हुआ है वहाँ जमीदार इन मजदूरोको ४ या ५ आने प्रतिदिन देते है । कही-कही १० या १२ आने अथवा एक रुपये तककी मजदूरी वढी है, पर सर्वत्र नहीं। इसलिए मेरी यह सूचना है कि कृषि-सम्बन्धी मजदूरकी कमसे कम मजदूरी निश्चित करनेवाला कोई 'कम-से-कम मजदूरीका कानून' शीघ्र ही वन जाय । फिर जब नये सरकारी फार्म बन जायँ तब इन भूमिरहित मजदूरोको उन जमीनोपर वसनेको राजी किया जाय । तव भी उनकी आमदनीकी कमी पूरी करनेके लिए गृह-शिल्पके धन्धोकी आवश्यकता रहेगी ही। कृषि-सम्बन्धी मजदूरोका भाग्य तवतक सुधर नहीं सकता जबतक सरकार गृहशिल्पके धन्धे चलानेमे विशेष यत्नवान् नही होती। यदि यह काम सहयोगके आधार- पर हुआ तो मानवताके नाते यह भी एक विशेष लाभ होगा। पर कम-से-कम गृहशिल्पका उद्धार तो करना ही चाहिये । अनिवार्य गल्ला-वसूली योजना अन्न और सिविल सप्लाईके मिनिस्टरने २३ अप्रैलको प्रेस कान्फरेन्समे सरकारी खाद्य-नीतिका समर्थन किया और डा० लोहियाकी आलोचनाओंका जवाब देनेकी कोशिश