पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२६४

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कृषिसुधार-समितिके सामने वयान २४६ यह अधिकार किसीको न हो कि उनसे वेगारी ले सके और न उनकी वेदखलियाँ हो सकें यह कहना तो कोई दलील नही है कि मुआवजेका बोझ जब काश्तकारको ढोना है तब सरकार उससे लगान ही लेती रहेगी, न कि मालगुजारी। हम लोकतन्द्रसे बँधे हुए है, अत. यह सर्वथा आवश्यक है कि मानवताका ध्यान रखा जाय और देहातोमे लोगोके जो परस्पर सम्बन्ध है उन्हे बदलकर एक नवीन लोकतन्त्रात्मक आधारपर स्थापित किया जाय । देहातोमे लोकतन्त्रात्मक चाल-ढाल, रहन-सहन चलाने तथा लोकतन्त्रको परम्परा स्थापित करनेके लिए सहयोग का होना नितान्त आवश्यक है । सहयोग ही ग्राम-जीवनका आधार होना चाहिये ताकि ग्रामीण जनता परस्पर सहयोग करना सीखे, सहयोगसे उत्पादन करे और सहयोगसे ही अपने उत्पादनका क्रय-विक्रय करे । ग्राम-पंचायत ग्रामकी राजनीतिक, अदालती और आर्थिक सघटन-सस्था मानी जाय । इस तरह सहयोग प्रारम्भ कराना मैं बहुत ही आवश्यक समझता हूँ। सामूहिक खेतीके मैं विरुद्ध हूँ, कारण देहातोमे इसकी सम्भावना नही देख पड़ती। इसका बड़ा विरोध होगा जैसा कि रूसके अनुभवसे प्रकट है । हम यह भी जानते है कि सभी कम्युनिस्टो और फोर्न इण्टरनेशनलके सदस्योने इसका परित्याग कर दिया है और यह निश्चय किया है कि जोर-जबर्दस्ती और हिंसासे काम लेनेके वजाय अधिक अच्छा तरीका यह है कि लोगोको समझा-बुझाकर, लाभ और सुविधा दिखाकर तथा प्रचार-कार्यके द्वारा लोगोको इस वातके लिए तैयार किया जाय कि वे एक रूप होकर सहयोगका अवलम्बन करे । कृषक अनुभवसे सीखते है । यदि पास-पडोसमे अच्छे प्रयोग-फार्म हो और कृषक यह देखे कि खेतीका यह टंग अधिक अच्छा है और इससे अधिक उपज होती है तो वे भी उसका अनुकरण करने लगेगे । इसमे अवश्य ही कुछ समय लगेगा और प्रारम्भ अभीसे कर देना चाहिये । मेरे विचारमे, यह काम सरकारी तौरपर बहुत अच्छा नही होता । पहली बात यह है कि हमलोगोमें वह उत्साह और वह सत्साहस नही है जो देहातोमे नव-जीवनका सचार करनेके लिए अत्यन्त आवश्यक है । हम व्यक्तिप्रधान लोग है, फिर भी ग्राम-पंचायत- का कुछ प्रभाव तो अब भी जनताके चित्तपर है । यदि इस पचायत-पद्धतिका पुनरुद्धार किया जाय, उसके उस पुराने ढंगपर नही बल्कि प्राजकी आवश्यकताअोको सामने रखकर एक नये ढगसे एक नवीन आधारपर यह काम हो तो मैं समझता हूँ कि लोग धीरे-धीरे उसे अपनायेगे। लगानकी वसूलीका काम ग्राम-पचायतके द्वारा ही होना चाहिये । दो-तीन गाँव मिलकर एक सहयोगी सस्था बना सकते है, कारण बहुतसे गाँव बहुत ही छोटे-छोटे है । सहयोगी खेत बनानेके सम्बन्धमे गाँवके जन-समाजका जनमत लिया जाय, यदि समाजके दो-तिहाईसे अधिक वालिग लोग सहयोगी खेतीके पक्षमे हो तो सहयोगी खेतीका प्रारम्भ करा दिया जाय । ऐसे खेतोको विशेष अवसर और विशेष सुविधाएँ दी जानी चाहिये, ताकि दूसरे लोग भी धीरे-धीरे इसका अनुकरण करने लगे। यदि इस तरह सहयोग