पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२८

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भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनका इतिहास १५ इस दलके कई नेता धार्मिक प्रवृत्तिके थे और वे अपने देशके उज्ज्वल भविष्यमे पूर्ण विश्वास रखते थे। उन्होने ' रचनात्मक कार्य प्रारम्भ कर दिया। देणी कारखाने जगह-जगह खुलने लगे । राष्ट्रीय पक्षके समाचार-पत्र प्रकाशित होने लगे और आन्दोलनने एक तीव्र रूप धारण किया । सन् १९०६ की कलकत्ता-काग्रेसमें श्री दादाभाई नौरोजीने 'औपनिवेशक शासन' इन शब्दोका प्रयोग न कर पहले-पहल स्वराज शब्दका प्रयोग किया था। धीरे-धीरे यह एक मन्त्र हो गया । लोकमान्यका कहना था कि स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम उसको प्राप्त करेगे । इस समय एक ऐसी घटना हुई जिससे सारा संसार विशेपकर एशियाके देश प्रभावित हुए। ८ फरवरी, १९०४ को रूस-जापानका युद्ध प्रारम्भ हुआ । इस युद्धमे जापानने रूस ऐसे वलशाली यूरोपीय राष्ट्रको पराजित किया। अवतक वार-वार विताडित होनेके कारण एशियावासियोकी यह धारणा हो गयी थी कि वे यूरोपके राष्ट्रोका मुकाविला नही कर सकते । एशियाके करीब-करीब सव राष्ट्र यूरोपके साम्राज्यवादियोके आतकसे त्रस्त थे । जापान ऐसे छोटे देशने यूरोपके एक विशाल राष्ट्रपर विजय प्राप्त की - इस घटनाने भारत आदि देशोको अत्यन्त प्रभावित किया । एशियावासी यूरोपकी शक्तिका रहस्य समझ गये । उन्हे मालूम हुआ कि यदि हम भी यूरोपका अनुकरण कर शक्तिका संचय करे तो उससे अवश्य टक्कर ले सकते है । उनको अपने ऊपर विश्वास हुआ और मायाका परदा हट गया। इसी समयसे एशियाके पददलित और दुर्वल देशोमे राष्ट्रीयताकी एक नयी लहर प्रवाहित हुई और स्वाभिमानकी रेखा लक्षित होने लगी। चीनने अपने घरका सुधार करना शुरू किया। यूरोपीय पद्धतिके अनुसार सन् १९०५ मे सेनाकी शिक्षा आरम्भ हुई। नवीन शिक्षाका आयोजन किया गया । शासन-प्रणालीमे आवश्यक परिवर्तन करनेके विचारसे अमेरिका, जापान और यूरोपके देशोमे शासन-विधानोका अध्ययन करनेके लिए एक कमीशन नियुक्त हुआ । सन् १९०८ मे एक घोषणा की गयी कि ६ वर्पके उपरान्त प्रतिनिधि सत्तात्मक शासनकी स्थापना की जावेगी और इस वीचमें देशको इन सुधारोके लिए तैयार किया जायगा । सन् १९०६ मे फारसके शाहको शासन- विधान बदलना पड़ा जिसके अनुसार एक मजलिसकी स्थापना करनेकी घोपणा की गयी। इसको बहुतसे अधिकार दिये गये । फारसका राष्ट्रीय दल यूरोपीय शक्तियोसे अपने देशकी रक्षा करना चाहता था और शासनमें सुधार करनेकी उसकी उत्कट अभिलापा थी । सन् १९०५मे रूसमे क्रान्ति हुई और जारको शासनमे सुधार और ड्यूमाकी स्थापना करनी पड़ी । सन् १९०८ मे तुर्क युवकोने तुर्कीमे एक क्रान्ति की जिसका फल यह हुआ कि सुलतान अब्दुल हमीद पदच्युत किये गये । जापान उस समय एशियाके दुर्वल राष्ट्रोका संरक्षक समझा जाता था। सब जगह शासन-सुधारकी चर्चा प्रारम्भ हो गयी । जहाँ स्वेच्छाचारी राजा थे वहाँ वैध शासनकी स्थापनाका उद्योग किया गया । यूरोपकी राष्ट्रीयताका सर्वत्र प्रचार होने लगा। विदेशियोसे अपने देशको वचानेकी भावना काम करने लगी। भारत भी इन व्यापक प्रभावोसे वच न सका । यहाँ भी इन नवीन विचारोका उपक्रम हुआ। क्षेत्र तैयार हो चुका था । जापानकी विजयसे देशभक्तोको