पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२८६

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मानव-समाजका विकास २७१ सामन्त और कृषकदास धीरे-धीरे उत्पादक शक्तियोका विकास होता गया, दास-प्रथाके जमानेमे श्रमका जो विभाजन अस्तित्वमे आया था वह और भी फैलता और जड पकडता गया । खेती और व्यापारकी वृद्धि होती गयी। इन सवका स्वाभाविक परिणाम यह हुआ कि दासताकी प्रथाका भी स्वरूप बदला । अव वह सामन्तवादी युग पा जाता है जव कि वडे-बडे सामन्त योद्धाओं और पुरोहितोका समाजमे वोलवाला था। खेतीकी सारी जमीनपर इन्ही मठाधीशो या सामन्त सरदारोका कब्जा हुआ करता था और किसानोका वहुसख्यक समुदाय उनको अपना मालिक मानकर और वदलेमे उन्हे भूमि-कर प्रदान करके जमीनको जोतता था । पुरानी दासता-प्रथा जिसमे स्वामी अपने दासके शरीर और आत्माका मालिक हुआ करता था अब मिट गयी और उसका स्थान कृपकदास ( serfdom ) ने लिया । कृपकदासताके अनुसार किसानकी जमीन और किसानपर भी सिद्धान्तत स्थानीय सामन्तका अधिकार समझा जाता था । इन किसानोको सामन्तकी जमीनपर वेगार भी करनी पडती थी। इस समय समाजमे सामन्त ( feudal lords ) और कृपक ( serf ) ये दो आधारभूत वर्ग थे और जैसा कि हम आगे चलकर देखेगे इन दोनो बुनियादी तवकोमे जोरोकी कशमकश जारी थी। औद्योगिक क्रान्ति इसी जमानेमे व्यापारियोका वर्ग भी बढ रहा था । इस समयतक वस्तुप्रोका विनिमय काफी मात्रामे होने लगा था। इस विनिमयके वर्तमान माध्यम, सिक्कोका भी प्रचार हो चला था। प्राचीनकालमे जव कि सिक्कोका प्रचलन न था और गाय, घोडे आदि जानवर या कुछ कीमती वस्तुएँ विनिमयके माध्यमका काम करती थी तो उस हालतमे व्यापारके फैलावके लिए गुजाइश बहुत कम थी। सिक्कोका चलन हो जानेके वादसे व्यापार तेजीसे बढ चला । प्रारम्भमे राजधानीमे और वादको अन्य प्रमुख केन्द्रोमे इन व्यापारियो और व्यवसायिकोके सघ ( guild ) बन गये । इन व्यापार-सघोका काम वस्तुओकी कीमत निर्धारित करना, व्यापारियोके वीच अवाछनीय प्रतिस्पर्धाको रोकना, व्यापारकी दशाओका निरीक्षण तथा नियन्त्रण करना और व्यापारियोके आर्थिक झगडोका निपटारा करना आदि होता था। सामन्तशाही जमानेमे उत्पत्ति व्यक्तिगत रूपसे गृह उद्योगधन्धोके जरिये ही होती थी। छोटे-छोटे औद्योगिक केन्द्रोमे फैले हुए अपनी अपनी दूकानके अनेक मालिक होते थे। वे अपने परिवारवालो और उन लोगोकी सहायतासे जो काम सीखना चाहते थे अपना कारोबार चलाते थे । मालिकको खुद भी पूरा परिश्रम करना पडता था । पर ज्यो-ज्यो व्यापार बढता गया त्यो त्यो प्रौद्योगिक क्रान्तिके लिए पूर्वावस्था तैयार होती गयी। आरम्भमे बढती हुई मांगको पूरा करनेके लिए कुछ मालिकोने थोडे मजदूरोसे अपने घरपर मजदूरीपर काम लेना शुरू किया-उस ढगपर जिस ढगपर आज वनारसके रेशमके व्यवसायमे बहुतसे जुलाहे एक मालिकके कारखानेमे इकट्ठे होकर काम करते है।