पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२८७

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२७२ राष्ट्रीयता और समाजवाद छोटे पैमानेके व्यक्तिगत उत्पादनके स्थानपर बड़े पैमानेके सामूहिक उत्पादनका वीज वृद्धि करनेके उपाय सोच निकाले जाते है और एक समय आता है जब भाप और विजलीसे काम होने लगता है और बडे पैमानेपर माल तैयार करनेवाले आधुनिक ढगके कारखाने तैयार हो जाते है । कुटीरशिल्प प्रणालीके स्थानपर बडे पैमानेपर कारखानोंद्वारा विकसित यन्त्रोका सहारा लेकर उत्पादन करनेकी जो नयी प्रणाली प्रचलित हुई उसने प्रौद्योगिक अवस्थाप्रोमे एक क्रान्ति उत्पन्न कर दी, जिसे इतिहासकागेने औद्योगिक क्रान्ति कहकर पुकारा हे । यह औद्योगिक क्रान्ति १८ वी शताब्दीके उत्तरार्धमे पहले-पहल यूरोपमें और यूरोपमे भी सबसे पहले इगलैण्डमे हुई। इगलैण्डमे प्रौद्योगिक क्रान्तिके सर्वप्रथम घटित होनेके कई कारण है । भापसे चलने- वाले यन्त्रोके लिए लोहे और कोयलेकी आवश्यकता थी, इंगलैण्डमें ये दोनो ही खनिज- पदार्थ पास-पास और बहुतायतसे मिलते है । इसी प्रकार समुद्री मार्गपर इंग्लण्डकी सुविधापूर्ण भौगोलिक स्थिति, वहाँको जलवायु, कुशल कारीगरोकी मौज्दगी, पूर्वके साथ इंगलैण्डका व्यापार आदि कारणोने इंगलैण्डमे औद्योगिक क्रान्तिको पहले जन्म दिया। पूर्वके साथ और विशेषकर हिन्दुस्तान और हिन्द महासागरके माथ इगलण्डका जो व्यापार होता था उसकी बदौलत इंगलैण्डके पूंजीपतियोके पास काफी पूंजी इकट्ठी हो गयी थी जिसके कारण इंगलैण्डमे वे अपने व्यवसायको उत्तरोत्तर बढानेमे समर्थ हुए । पूंजीपति और मजदूर सामन्तवादी युगके वाद पूंजीवादका जमाना आता है। उत्पादनकी शक्तियोंके आगे विकासके मार्गमे सामन्तशाही आर्थिक प्रणालीमे स्कावट हो चली थी। समाजमें व्यापार बढ रहा था, पर सामन्तशाही ढांचेमे उसके फैलावके लिए गुजाइश बहुत कम थी । समूचे राष्ट्र छोटे-छोटे भूखण्डोमे बँटे हुए थे, जिनका मालिक कोई सामन्त हुआ करता था। व्यापारके लिए आवश्यक कच्चे मालपर इन सामन्तोका अधिकार था । कारखानोमे जाकर काम करनेके लिए किसान स्वतन्त्र न थे, क्योकि वे कृषकदास होनेके नाते अपने मालिकोके खेतपर वेगार करनेके लिए वाध्य थे। जगह-जगह थोडी-थोड़ी दूरपर व्यापारियोसे उनके मालपर चुगी वसूल की जाती थी । ऐसी हालतमे व्यापार किस तरह पनप सकता था ? इधर कृपक-दासतामे फंसे होनेके कारण किसानोका भी बुरा हाल था। फलस्वरूप, जैसा कि हम आगे देखेगे, एक बड़ी प्रजातान्त्रिक क्रान्ति हुई जिसने समाजका ढाँचा ही बदल दिया । इस क्रान्तिके परिणामस्वरूप सामन्तवादके स्थानपर पूँजीवादकी स्थापना हुई । पूंजीवादी आर्थिक प्रणालीकी विशेषता यह है कि उत्पादन, विनिमय और वितरणके साधनो, यानी जमीन, मिलो, कारखानों, वैको आदिपर चन्द पूंजीपतियोका कब्जा हो जाता है और समाजका बहुतसंख्यक वर्ग मजदूर बन जाता है । मजदूरवर्ग उत्पादनके साधनोसे वञ्चित रहनेके कारण उत्पादनके साधनोके मालिकों अर्थात् पूंजीपतियोके हाथ अपनी श्रमशक्ति बेचकर और बदलेमे मजदूरी प्राप्त कर जीवन निर्वाह करता है । गुलामी-प्रथाके युगमे जो स्थान मालिकोंका था और सामन्तशाही