पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२८९

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२७४ राष्ट्रीयता और समाजवाद जाता है, मनुष्योके शोषणका आर्थिक आधार ही खत्म हो जाता है । अवतक समाजके विकासमे एक आर्थिक प्रणालीके वाद जो दूसरी आर्थिक प्रणालियाँ कायम हुई उनमे राज सत्ता एक वर्गसे निकलकर दूसरे नये वर्गके हाथमे आती रही है, उत्पादनके साधनोंपर वर्ग-विशेषका अधिकार होता आया है। किन्तु समाजवादी प्रणालीमे इसके विपरीत उत्पादनके साधनोपर समाजका ही अधिकार होता है और शोपक और शोषित दोनो ही वर्ग नष्ट हो जाते है । समाजवादी समाजमें राज्यका-जो कि अवतक शासकवर्गद्वारा शासित-वर्गके दमनका हिसा-प्रधान अस्त्र रहा है- भी अस्तित्व न रहेगा। उस समय मनुष्य पहली बार पशुतुल्य जीवन त्यागकर मनुष्योचित जीवन शुरू करेगा। अवतक जिस प्रकार वह सामाजिक विकासकी शक्तियोका दास बनकर रहता पाया है अपनी उस विवशताके दायरेसे ऊपर उठकर अब वह वोधपूर्वक अपनी प्रगतिकी दिशाको निर्धारित और नियन्त्रित कर सकेगा। वर्ग-संघर्षकी आवश्यकता हमारा वर्ग-विहीन समाज स्थापित करनेका लक्ष्य वर्ग-संघर्षके साधनको अपनानेसे ही सिद्ध हो सकता है । आज समाजमे शोषक और शोषित वर्गोके वीच जो सघर्ष चल रहा है उसमे हमारा फर्ज शोषित जनतामें ऐसी चेतना पैदा करना है कि शोषित-वर्गोकी लड़ाई आर्थिक न रहकर राजनीतिक बन जाय । हमे शोषित-वर्गोके सदस्योके मनमे यह बात बैठा देनी है कि जवतक समाजकी प्रचलित व्यवस्था कायम है और उत्पादनके साधनोपर पूंजीपतियोका कब्जा है तबतक उनकी हालत नही सुधर सकती। वर्ग-चेतना क्या है ? शोषक वर्गों, यानी जमीदार और पूंजीपति, तथा शोषित वर्गो, यानी किसान, मजदूर और दूसरे सताये हुए तवकोके बीच संघर्ष तो आज भी जारी है । परन्तु आज उनकी यह लडाई आर्थिक लडाई मात्र है। कारखानोके मजदूर बड़ी तादादमे संगठित रूपमे मालिकोसे मोर्चा लेते है और अपनी इस लड़ाईमे कुर्वानी भी बहुत करते है । लेकिन उनकी यह लडाई मजदूरीको बढाने, कामके घण्टे घटाने, अपने साथियोपर किये अत्याचारोको दूर करने या इसी प्रकारकी दूसरी शिकायतोको रफा करानेके लिए होती है । यहाँपर ध्यान देनेकी बात यह है कि मजदूरोकी यह सारी लड़ाई वर्तमान व्यवस्थाके भीतर केवल अधिका- धिक सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए ही होती है । मालिकोका कारखानोपर जो अधिकार है उसको वे चुनौती नही देते । हमे मजदूरोको समझाना है कि समाजके मौजूदा आर्थिक ढाँचेको कायम रखते हुए केवल छोटे-मोटे अधिकारोके लिए लड़नेसे ही काम न चलेगा, बल्कि सारी मजदूर जमातको सगठित होकर एक ऐसी लड़ाई लड़नी पड़ेगी, जिसमे मौजूदा आर्थिक व्यवस्थाका ही अन्त हो जाय और एक ऐसी नयी आर्थिक प्रणालीकी स्थापना की