पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मानव-समाजका विकास २७३ प्रणालीमे जो सामन्तोका था वही स्थान वर्तमान आर्थिक प्रणालीमे पूंजीपतियोका हो जाता है। इसी प्रकार, गुलामो और कृपकदासोका स्थान मजदूर वर्ग लेता है । पूंजीपति और मजदूर ये आजकलके दो आधारभूत वर्ग है जिनमे आपसमे आज हमारी आँखोके सामने भीपण वर्ग-सघर्ष चल रहा है । आथिक युग ऊपर हमने सक्षेपमे यह दिखानेकी कोशिश की है कि आर्थिक उत्पादनकी शक्तियोके विकासके साथ-साथ किस प्रकार समाजकी आर्थिक प्रणालियों वदलती रही है और यह कि हर आर्थिक प्रणालीमे अपरिवर्तित रूपसे दो आधारभूत वर्ग यानी बुनियादी आर्थिक श्रेणियाँ मौजूद रही है । इन दोनो श्रेणियोके हित परस्पर एक दूसरेके विरुद्ध रहे है और प्रभुत्वशील ( dominant ) वर्ग दूसरे वर्गको दास बनाकर, उसकी श्रमशक्ति शोषण करके, अपने लिए जीवनकी सुविधाएँ प्राप्त करता रहा है । हमने देखा कि मनुष्य- समाजकी आदिम व्यवस्था सहयोगपर आधारित थी। उस समय सभी मिलकर जीविका- निर्वाहकी सामग्री एकत्र करते थे और सम्पत्तिपर सवका समान रूपसे अधिकार था । आगे चलकर व्यक्तिगत सम्पत्तिका उदय होनेपर, पहले दासता-प्रथा, फिर सामन्तशाही और अन्तमे पूंजीवादका जमाना आता है । इन तीनो युगोमे क्रमश. स्वामी और दास, सामन्त और कृपकदास और पूंजीपति और मजदूर यह परस्पर-विरोधी आधारभूत वर्ग पाये जाते है। यहॉपर यह वात ध्यान देनेकी है कि जिस ढगसे एक युगके बाद दूसरे युगके आनेकी वात कही गयी है, ठीक उसी प्रकार सभी देशोके इतिहासमे स्पष्ट रूपसे एक युगके वाद पूर्ण रूपसे दूसरा युग काम करता हुआ नजर नही आता । प्रायः ऐसा होता है कि नयी आर्थिक व्यवस्थाके आ जानेपर भी प्राचीन आर्थिक व्यवस्थाके बहुत कुछ अश दूसरी व्यवस्थाके भीतर भी पाये जाते है । उदाहरणके लिए अगर हम अपने ही देशको ले तो यहाँपर हमे किन्ही-किन्ही स्थानोमे गुलामीके जमानेकी यादगार भी मिलेगी, सामन्तशाही जमानेका आर्थिक ढाँचा दिखायी पडेगा (विशेषकर देशी रियासतोमे) और पूंजीवादी आर्थिक प्रणालीके युगमे तो हम रह ही रहे है । अत , जव हम किसी युगकी वात करते है तब हमारा मतलब उस समयकी उस समाजमे प्रचलित प्रधान आर्थिक प्रणालीसे होता है । वर्गविहीन समाज जब कोई समाजवादी वर्गरहित समाजकी स्थापना करनेकी बात करता है तो उसका मतलब इन्ही आर्थिक वर्गोसे होता है । समाजवाद एक ऐसे समाजकी स्थापना करना चाहता है जिसमे परस्पर-विरोधी शोपक और शोषित आर्थिक वर्ग मिट जाये और समाज सहयोगके आधारपर सगठित व्यक्तियोका सच्चा प्रजातन्त्र बने । जबतक समाजका ढाँचा इस प्रकारका बना रहेगा कि एक वर्ग दूसरेको दवाता रहेगा तवतक सामूहिक रूपसे समाजके सदस्योकी उन्नति नही हो सकती। समाजवादी समाजमे जब कि राजसत्ता फिर शोपित वर्गोके हाथमे आ जाती है और उत्पादनके साधनोपर सारे समाजका अधिकार हो १८