पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३०७

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२६२ राष्ट्रीयता और समाजवाद हो सकता है जव जनता उससे प्रभावित हो और उसे अपनावे । जो सिद्धान्त जनताकी आवश्यकताओंकी पूर्ति करता है वही कार्यमे परिणत होता है । सर्वहारा मजदूरका लोप किये विना मार्क्सवादी-दर्शनका सिद्धान्त कार्यरूपमे परिणत नहीं होता और मजदूर सिद्धान्तको कार्यरूपमे परिणत किये बिना अपना निस्तार नही कर सकता । मजदूरवर्गका महत्त्व पूंजीवादी समाजमें मजदूर इस ऐतिहासिक कार्यको सम्पन्न करता है। समाजवादी क्रान्तिका वही अग्रणी है। किसी मजदूर या मजदूरवर्गका तात्कालिक उद्देश्य क्या है इससे कोई सम्बन्ध नहीं है । सामयिक पूंजीवादी समाजके सगठनमे उसका जो स्थान है वह उसको इस इतिहास-निर्दिष्ट कार्यके करनेके लिए कभी-न-कभी विवश करेगा । जव मजदूरवर्ग अपने कप्टको केवल कप्टके रूपमे नही देखता है, बल्कि उसका क्रान्तिकारी पहलू भी पहचानने लगता है उसी क्षणसे इतिहासको प्रगति मिलती है और मजदूरवर्ग चेतना- पूर्वक क्रान्तिके कार्यमे लग जाता है । क्रान्ति इतिहासके विकासके क्रमको वदल नही देती, किन्तु उसकी गतिको तीव्र कर देती है । मासके शब्दोमे क्रान्ति इतिहासकी रेलगाड़ी ( locomotive of history ) है। वह केवल इतिहासकी रफ्तारको तेज कर देती है। जो लोग किसी सामाजिक व्यवस्थाकी खूबियोको सुरक्षित रखकर महज उनकी वुराइयोको दूर करना चाहते है वह भूल करते है । यह बुरा पहलू ही सघर्पको जन्म देकर इतिहासका निर्माण करता है । जो पूँजीवादी पद्धति दौलत पैदा करती है वही गरीवी और वेकारीको भी जन्म देती है । जिस मात्रामे पूंजीपतिकी वृद्धि होती है उसी मात्रामे परिणामस्वरूप मजदूरवर्गकी भी वृद्धि होती है । इसलिए अच्छे पहलूको कायम रखकर बुरे पहलूको दूर करनेकी चेष्टा निरर्थक है । इस प्रकार हम एक ऊँचे दर्जेकी सामाजिक व्यवस्थाको जन्म नही दे सकते। इस तरह तो सामन्तशाहीका नाग और पूँजीवादी पद्धतिका जन्म कदापि न हुआ होता । यह तो इतिहासको निस्सार बनानेका ढग है । मार्क्सने जनताको खोयी हुई मानवताको फिरसे पानेका उपाय ही नही बताया, किन्तु उसको इस कार्यके लिए तैयार भी किया। पुराने दार्शनिकोने जहाँ वस्तुस्थितिके वनानेकी चेप्टा की थी वहाँ मार्सका दर्शन समाजकी रूपरेखाको वदलनेका शास्त्र है । मानवताके लिए मार्क्स सदा लडता रहा और इसके लिए उसने अनेक कप्ट भी सहे । जो जनताको मानवतासे वचित रखते है उनके प्रति मार्क्सका क्रोध सात्विक क्रोध है । मेहगिने मार्क्सको दूसरा प्रोमेथियस वताया है। प्रोमेथियस पश्चिमी दर्शनकी जन्त्रीका सर्वोत्कृष्ट और सन्त शहीद हो गया है। प्रोमेथियस न इन्द्रके वज्रसे डरता था, न उसे धमकियोकी परवाह थी। वह तामाम देवतायोको तिरस्कारकी दृष्टिसे देखता था । मुसीवत वर्दाश्त कर लेना उसे मंजूर था, लेकिन किसी हालतमे वह देवताओंकी गुलामी नही कर सकता था। कार्ल मार्क्सने मानवताको पुनः प्रतिष्ठित करनेके प्रयत्नोको नही छोड़ा। उसने