पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३१२

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वर्गसंघर्पकी अनिवार्यता २९७ एक कारण तो यह है कि सामन्तवादी वर्गके ही अनेक सदस्योने पूंजीवादी उद्योगधन्धोमें अपनी पूंजी लगा रखी है । हमारे प्रान्तके ही कई ऐसे जमीदार मिलेगे जिनकी आमदनी जमीदारीके अलावा उद्योगधन्धोसे, भी होती है । ऐसे पूंजीपतियोंका जमीदारी प्रथाका समर्थन करना स्वाभाविक ही है । दूसरी वात ध्यान देनेकी यह है कि मौजूदा जमानेमें स्वयं पूंजीवादी प्रथाके खिलाफ मजदूरोका आन्दोलन भी शुरू हो जाता है । पूंजीवादी प्रथाके ह्रास और सामाजिक क्रान्तिके इस युगमे पूंजीपति वर्ग यह देखता है कि सामन्त- शाही आर्थिक प्रभुत्व मिटानेका अर्थ होता है उत्पादनके साधनोमे व्यक्तिगत सम्पत्तिका अन्त करनेके आत्मघातक सिद्धान्तको स्वीकार कर लेना , अगर पूँजीपतियोने जमीदारोकी सम्पत्ति छीनी जानेमे मदद दी तो उनकी सम्पत्ति भी खतरेमे पड़ जा सकती है । ऐसी हालतमे उत्पादनके साधनोपर व्यक्तिगत सम्पत्ति और उससे उत्पन्न होनेवाले सामाजिक शोषणको बनाये रखनेवाले पूंजीपति-वर्ग और सामन्तवादी-वर्ग दोनो एक हो जाते है । पूंजीपति-वर्ग प्रजासत्तात्मक क्रान्तिका नेतृत्व करनेके स्थानमे उसका विरोध करनेको तैयार हो जाता है। श्रमजीवी वर्गका महत्व ऐसी स्थितिमेपूंजीवादी वर्गके खिलाफ लडकर भी शोपित वर्ग प्रजासत्तात्मक क्रान्तिको सफल बनाते है । क्रान्तिको सफल बनानेका काम अव श्रमजीवीवर्ग दूसरे गोपितोके साथ मिलकर करता है । पहले कह पाये है कि कृपकवर्गके पास ऐसी विचारधारा नहीं होती कि वह पुरानी व्यवस्थाका अन्त करके नयी व्यवस्था कायम करनेमे नेतृत्व ग्रहण कर सके । • यद्यपि वह सामन्तशाही और पूँजीशाहीके दुहरे शोपणके वोझसे दवकर पहलेकी अपेक्षा भी अधिक क्रान्तिकारीवन जाता है, लेकिन फिर भी उसकी खास माँग जमीनकी ही होती है। उसको इस बातसे कोई प्रयोजन नहीं होता कि राजशक्ति किस वर्गके हाथमे जाती है । जो वर्ग किसानोकी इस आधारभूत मॉगकी पूर्ति करनेके लिए तैयार हो उसीके पीछे किसान हो लेते है । फ्रासमे जो प्रजासत्तात्मक क्रान्ति हुई उसमे उसने पूँजीपतियोका नेतृत्व स्वीकार किया। रूसकी राज्यक्रान्ति इसके विपरीत श्रमजीवी वर्गके नेतृत्वमे हुई। श्रमजीवी वर्गका उद्देश्य पूंजीवादी व्यवस्थाका ही अन्त करना होता है । पूँजीवादी प्रणालीका अन्त करनेके सिलसिलेमे स्वभावत मजदूरवर्गको सामन्तवादी शोषणका अन्त करनेका कार्यक्रम भी रखना होगा। क्रान्तिकारी बुद्धिजीवी वर्गका महत्त्व उपनिवेशोमे प्रजासत्तात्मक क्रान्तिके कार्यक्रमको सफल बनानेमे बुद्धिजीवीवर्गके क्रान्तिकारी तवके ( revolutionary intelligentia ) का विशेष महत्त्व होता है । ऊपर हम कह पाये है कि औपनिवेशिक देशोमे प्रजासत्तात्मक क्रान्ति श्रमजीवी- वर्गकी प्रधानतामे सफल होती है, किन्तु उपनिवेशोका मजदूर पूंजीवादी देशोके मजदूरोकी तरह शिक्षित नहीं होता। उसे बने हुए पूँजीवादी देशोके मजदूरोंकी तरह कई पीढ़ियाँ नही गुजर चुकी होती, उसका उतना व्यापक सगठन नही होता, विदेशी