पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३१७

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३०२ राष्ट्रीयता और समाजवाद बड़े पैमानेकी जमीदारी सामन्तोका आधार है । सम्पत्ति-विहीन श्रमजीवी समाजसे वहिप्कृत है । वारनारका कहना है कि जवसे सम्पत्तिके नये प्रकार उत्पन्न होने लगते है, तभीसे राजनीतिक नियमोमें क्रान्तिकी तैयारी शुरु हो जाती है । सम्पत्तिका नया वितरण शक्तिको नये ढंगसे तक्सीम करता है। सेन्ट साइमन ( st Simon ) भी लगभग इन विचारोका माननेवाला था । वर्गविकामके नाथ-गाय वह विज्ञानको भी ऐतिहासिक विकासका कारण मानता था। यह भी सच है कि वह धर्मक प्रभावले मुक्त न हो सका तथापि वह बारनारके दृष्टिकोणको गहरा रंग देता है । वारनारकी तरह वर्ग-विभाजनके मूलमें वह अनिश्चित सम्पत्ति नहीं पाता, किन्तु उत्पादनके साधनोंके रूपमें ही सम्पत्तिको इसका मूल कारण समझता है । क्रान्तिके कारण पूंजीवादियोका सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण बदलने लगा था। वारनार पोर सेन्ट साइमन उनके प्रतिनिधि मात्र थे। क्रान्तिका प्रभाव फ्रांसतक ही सीमित न रहा, जर्मनीमे भी वर्गसंघर्पकी दृष्टिसे सामाजिक विकासको परीक्षा होने लगी। इंग्लण्डमें यह बात किसीसे छिपी न थी कि दो वर्गोके बीच राज्यशक्तिके लिए संघर्ष चल रहा है। सामाजिक दृष्टिकोणमे जो परिवर्तन हुया उसका प्रभाव विज्ञानपर नी पढा। प्रकृतिपर भी विकासका सिद्धान्त लागू किया गया । प्रौद्योगिक क्रान्तिके कारण ग्लैण्ड और फ्रासमें विज्ञानकी वृद्धि हुई और राजनीतिक प्रश्नोका तात्कालिक उत्तर देना पड़ा । जर्मनी आर्थिक क्षेत्रमें पिछडा हुआ था । राजनीतिक दृष्टिमे वह वढा हुअा था कि एकता अभीतक कायम नहीं हुई थी, अभी वहाँ क्रान्ति होनेको थी और पूंजीवादी-वर्ग आगे चलकर गजनीतिक दृष्टिसे कमजोर पाया गया। वहां अलबत्ता व्यावहारिक झुकाव न था वल्लिा अब भी आदर्शवाद- का जोर था । वहाँ विकास और क्रान्तिके नवीन विचार इस सूक्ष्म दार्गनिक रूपमें देखें और परखे गये । विकासके क्रमका अन्वेपण आगे चलकर जर्मनीमें भी हुया. किन्तु वही आदर्शवादी दर्शनके रूपमें, वारनारने द्वन्द्ववाद ( dialectic ) का जिक्र सरसरी तौरपर ही किया था, किन्तु जर्मनीके दार्शनिकोने उसको विकसित रूप दिया।' फ्रांसकी क्रान्तिके दिनोमें तथा उसके १० वर्षके वादके जमाने में पूंजीवादी सामाजिक और ऐतिहासिक विचार-पद्धति अपनी चोटीतक पहुँच गयी थी। यही वह जमाना था जव ऐतिहासिक भौतिकवादको मुख्य दलीलोकी चर्चा हवामे थी। इसी सिद्धान्तको विकसित कर मार्क्सने पीछेसे अपनी पद्धति गठित की थी। इसलिए यह जरूरी था कि हम दिखलाते कि पूंजीवादी विचारशैली सदासे ऐसी वांझ और वेवम न थी जैसा कि वह आज हो गयी है। एक समय था जब वह अपने अन्वेपणमे सामाजिक विकासके मौलिक नियमके करीब पहुंच गयी थी। मार्क्सने इस वातको स्वयं स्वीकार किया था । सन् १८५२ में उसने वेडमयरको लिखा था- "याधुनिक समाजमें वर्गोके अस्तित्व तथा वर्ग-संघर्षकी खोजका श्रेय मुझको नहीं है । मुझसे बहुत पहले पूंजीवादी इतिहास-लेखकोने इस वर्ग-संघर्पके ऐतिहासिक विकासका १. 'संघर्ष' ३ मार्च, सन् १९४१ ई०