पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३१६

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--चाहे वह मार्क्सवाद और पूंजीवादी विज्ञान ३०१ संख्या, नाप और तौलसे काम लिया । वह पहला व्यक्ति था जिसने यह उद्घोपित किया कि द्रव्य नही किन्तु श्रम सामाजिक सम्पत्तिका मूल है । इंग्लैण्डमे जहाँ प्रौद्योगिक क्रान्ति हो रही थी आर्थिक घटनाअोके विश्लेषणको प्रमुख स्थान दिया जा रहा था । फ्रासमे, जो राज्यक्रान्तिकी ओर अग्रसर हो रहा था, आर्थिक घटनाओके सामाजिक पहलूपर विचार हो रहा था । फ्रासके फिजियोक्रेट्स ( Phy- siocrats ) की आर्थिक पद्धतिका प्रारम्भ वितरण-परिक्रियासे होता है और यद्यपि फ्रासकी आर्थिक पद्धतिमे कृपिका प्रधान स्थान होनेसे फिजियोक्रेट्सकी पद्धति एडम स्मिथ ( Adam Smith ) से वहुत पिछड़ी हुई है तथापि इनके पास- प्रारम्भिक अवस्थामे ही क्यो न हो-समाजके वर्गीकरणका स्थान मौजूद था। क्वेसने ( Quesney ) ने समाजको वर्गोमे वॉटा था । ट! ( Turgot ) ने पूंजीपति तथा श्रमजीवी वर्गोको परस्परविरुद्ध वतताया था । नेकर ( Neeker ) के निवन्धोमे यह विचार निश्चित रूपसे पाया जाता है कि उत्पादनके साधनोके मालिक और अपने श्रमसे अपने जीवन निर्वाह करनेवाले श्रमजीवी वर्गके परस्पर सघर्पमे कानूनके सरक्षणमें पूंजीपति अपने अधिकारोके वलपर श्रमजीवीको दवाते है । ट! और नेकरमे वर्गीकरण और वर्गसंघर्षके विचार पाये जाते है और यह भी कि जव क्रान्ति होती है तो वर्गोके आन्तरिक विरोध और भी प्रकट हो जाते है, जिनके कारण सामाजिक विकासके क्रमका विशद रूप हमको मिलता है । वारनार ( Barnare ) की दृष्टिमे मानव-इतिहास वर्गसंघर्षका इतिहास है । यह दृष्टि ऐतिहासिक भौतिकवादके अत्यन्त सन्निकट है। वह इन्साइक्लोपीडिस्ट ( Encycloprdists ) के दर्शनका विरोधी था, क्योकि यह दर्शन ऐतिहासिक सत्यकी उपेक्षा कर महज कयासपर आश्रित था। यह दार्शनिक घटनाओकी परीक्षा न कर केवल कयाससे ही काम लेते थे। वारनार ( Barnare ) के अनुसार सामाजिक जीवनका सदा विकास होता रहता है। वह ऐसे नियमोकी सम्भावनासे इनकार करता है जो सदाकालीन हो और जो जीवनकी प्रत्येक अवस्थामे लागू हो सके । उसका कहना था कि कानून लोगोकी इच्छापर निर्भर नही करते, किन्तु किसी विशेप समाजके विकासको अवस्थापर निर्भर करते है । एक नियम जो अच्छा है वह दूसरे समय भिन्न अवस्थामे हानि पहुँचानेवाला भी हो सकता है । वारनार सामाजिक घटनायोका वर्ग आधार ढूंढता है, किन्तु वह समाजके वर्गीकरणके उत्पादनके सम्बन्धको नही बल्कि सम्पत्तिके सम्बन्धोको मूल कारण समझता है। उसके लिए समाजका सारा जीवन सम्पत्तिमे केन्द्रित है । वर्ग-सघर्ष उसके लिए सम्पत्तिके विविध प्रकारोका सघर्प है। इस दृष्टिसे वह मानव-इतिहासकी आलोचना करता है। उसके विचारमे प्रारम्भिक कालकी समानता सम्पत्तिके अभावके कारण थी। सम्पत्तिके विकासके साथ-साथ असमानताका जन्म होता है। किसान बडे जमीदारोके चगुलमे फँसता है । चल सम्पत्ति, जिसकी वृद्धि व्यापार व्यवसायके द्वारा होती है, पूंजीपतियोका आधार है । १. 'संघर्ष' २४ फरवरी, सन् १९४१ ई०