पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३२३

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३०८ । राष्ट्रीयता और समाजवाद "श्रम एक प्रक्रिया है जिसमे प्रकृति और मनुष्य दोनों हिस्सा लेते है । इस प्रक्रियामें मनुष्य स्वतः उन भौतिक प्रतिक्रियानोका जो उसके और प्रकृतिके वीच होती है प्रारम्भक होता है और वह उनका नियन्त्रण और नियमन करता है । वह स्वयं प्रकृतिकी एक शक्ति है पर वह अपनेको प्रकृतिके विरुद्ध खडा करता है। वह अपने हाथ-पैर हिलाता है तथा दिमाग को सक्रिय बनाता है, जिसमे वह अपनी प्राश्यकताअोके अनुरूप प्रकृतिके उत्पादकोको आत्मसात् कर सके । वाह्य ससारपर इस प्रकार क्रिया कर और उनको बदलकर वह अपने स्वभावको भी बदलता है । वह अपनी प्रसुप्त शक्तियोकी वृद्धि करता है और उनको अपने अधीन कर स्वेच्छाके अनुसार काम करनेके लिए विवश करता है ।" इन दो अवतरणो से यह स्पष्ट है कि मार्क्सवाद नियतिवाद ( Deter minism ) नही है । यह कहना कि मनुष्य प्रकृतिको बदलता है, अपने स्वभावको बदलता है और अपनी प्रसुप्त शक्तियोका विकास करता है, इस कथनका उल्टा है कि मनुष्य घड़ीकी मुइयो- की तरह अवश है । साथ-ही-साथ यह कहना कि मनुप्य यह सव तभी कर सकता है जब वह प्रकृतिपर सक्रिय प्रतिक्रिया करता है, यह कहना कि वह परिस्थितियोको उसी हदतक बना सकता है, जिस हदतक परिस्थितियाँ मनुष्यको बनाती है, यह माननेके वरावर है कि. नियतिवादमे भी सत्यका अश है। मार्क्सवाद नियतिवादके महत्त्वपूर्ण और यथार्थ अंशका ग्रहण करता है । सक्षेपमे इतिहासका जो वाद मार्क्स एगल्सका है वह एक आकारमे नियतिवादी है, किन्तु केवल इस शर्तपर कि वह साथ-ही-साथ अनियतिवादी भी है, अर्थात् वह आध्यात्मिक और यान्त्रिक प्रश्नका सर्वथा अतिक्रमण करता है और विरोध विकासद्वारा वस्तुत भीतिक हो जाता है। यही वात आर्थिक आकारोके लिए भी सच है । मार्क्स एंगल्सने यथार्थ देखा कि समस्त सामाजिक क्रियाके लिए आर्थिक क्रियाका पूर्व होना नितान्त आवश्यक है, किन्तु उन्होने एक क्षणके लिए भी इसका प्रतिषेध करनेकी कल्पना नहीं की थी कि अन्य क्रियात्रोका सद्भाव है और अन्तिम परिणामके उत्पादनमे यह भी हेतु है । इसके विपक्षमे उन्होने देखा कि आर्थिक क्रियाका एक मुख्य उद्देश्य यह है कि ऐसी योग्यता प्रतिपादित की जाय जिससे आर्थिक क्रियाकी आवश्यकता चाहे अल्पकालके लिए ही क्यो न हो, न रहे । उन्होने यह भी देखा कि आर्थिक क्रियाओका महत्त्व इसमे है कि वह आर्थिक क्रियाप्रोसे इतर क्रियायोकी विविधता और इयत्ताको उत्तरोत्तर बढाती जाती है तथा सामाजिक और राजनीतिक चेष्टाएँ और प्रयत्न बहुधा आर्थिक परिवर्तनको उत्तेजन देकर आर्थिक क्रियाअोके विकासको उत्तेजित करते है और उनके स्वरूपको निश्चित करते है । सक्षेपमे मार्क्स एगल्सका वाद न शुद्ध आर्थिक है और न आर्थिकसे भिन्न है । यह दोनो है और इसलिए द्वन्द्वात्मक ( Dialectical ) है एंगल्सने स्पष्ट रूपसे नियतिवादका प्रत्याख्यान किया है। मार्क्स और एंगल्सने स्पष्ट रूपसे इसका प्रतिपेध किया है कि उन्होने कभी भी यह कहा है कि ऐतिहासिक महत्त्वके सम्बन्ध और शक्तियाँ केवल आर्थिक होती है । जिस वादकी यह प्रतिज्ञा है