पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३२२

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मावर्स और नियतिवाद ३०७ ? पूर्तिके अतिरिक्त इनको पैसा नही देना चाहिये और इनको अवकाश भी नही मिलना चाहिये। किन्तु यह वाद भयावह हो जाता है जब यह मर्यादाका उल्लंघन करता है। पहले तो इस वादसे अत्याचार करनेवालो और प्रजाका शोपण करनेवालोको अच्छा वहाना मिल जाता है, फिर इससे दूसरा प्रश्न उत्पन्न होता है । इसका इलाज क्या है फाएरवाख ( Feuerbach ) पर मार्क्सका जो तीसरा वाद ( thesis ) उसका इसी प्रश्नसे सम्बन्ध है। "परिस्थितियोके वदलने और शिक्षाके बारेमे जो भौतिकवाद है वह भूल जाता है कि मनुष्य परिस्थितियोको वदलता है और यह कि शिक्षककी स्वयं शिक्षा होनी चाहिये।"- -मार्क्स यहां राबर्ट प्रोवन ( Rebert Owen ) से सकेत है । उनका यह दावा था कि "समुचित उपायोंका अवलम्ब लेकर अच्छे-से-अच्छा और बुरे-से-बुरा मानव-चरित्र समाज या ससारको पेश किया जा सकता है ।" उनका यह भी कहना था कि यह उपाय विद्यमान है और यदि वह लोग जिनका समाज मे प्रभाव है चाहे तो इनका उपयोग कर सकते हैं। किन्तु इससे यह परिणाम निकलता था कि यह प्रभावशाली लोग इन उपायोसे काम नही लेते और न लेगे। इनका स्वभाव और चारित्र्य ही ऐसा बन गया है जो इनको दूसरी श्रोर ले जाता है। इससे यह पहेली निकली कि रावर्ट प्रोवनका 'चारित्य' कहाँसे पाया, यदि वह उन्ही परिस्थितियो और शिक्षा के फल है । यदि उनका स्थान उस वर्गमे है जो प्रभाव रखता है, तो उनका स्वभाव और उनकी प्रवृत्ति दूसरोसे भिन्न क्यो है और यदि वह उस वर्गके है, जिसके स्वभावको बदलनेकी जरूरत है, तो उन्होने ऐसे स्वभावको कहाँसे पाया, जिसको पुष्ट करनेकी आवश्यकता है, न कि बदलने की ? मार्क्सने इसका यह हल निकाला कि मनुष्य और परिस्थितियाँ दोनो परिवर्तनशील और अस्थिर है तथा दोनोका सदा अन्योन्य सक्रिय विरोध होता रहता है और इससे वृद्धि- विकास होता है- "इतिहासकी प्रत्येक मजिलपर हम एक भौतिक परिणाम पाते है । यह उत्पादक शक्तियोका जोड है; यह व्यक्तियोका प्रकृतिके साथ सम्बन्ध तथा व्यक्तियोका अन्योन्य सम्बन्ध है, जिसका इतिहासने निर्माण किया है । यह सम्बन्ध क्रमागत है । यह भौतिक परिणाम उत्पादक शक्तियोका समूह, पूंजीके विविध रूप तथा विविध अवस्थाएँ है । एक ओर प्रत्येक नयी पीढी इस समूहमे परिवर्तन करती है और दूसरी ओर यह समूह उस पीढीके जीवनको अवस्था निर्धारित करता है तथा उमको निश्चित और विप स्वभाव प्रदान करता है । जिस प्रकार मनुष्य परिस्थितियोको बनाता है उसी प्रकार परिस्थितियां मनुप्यको बनाती है ।"-( German Idcology ) मार्क्सके कैपिटल ( Capital, Vol. I, Chap. viipp_156-7 ) मे भी इन परस्पर-विरोधी सम्बन्धका इसी प्रकार उल्लेख है