पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३२८

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पाँचवाँ अध्याय युवकोंका समाजमें स्थान और भारत सामान्यत: उन समाजोमे, जहाँ स्थिरता आ गयी है और जहाँ विकासको गति, अत्यन्त मन्द है, वृद्धोकी सबसे अधिक प्रतिष्ठा होती है । ऐसे समाजमे वृद्धोका ही नेतृत्व होता है और उनका अनुभव ही समाजका मुख्य आधार होता है । चीन और भारतके समाज इसके उदाहरण है। हमारे पूर्वजोका कहना है कि वह सभा ही नही है जहाँ वृद्ध नही है । ऐसे समाज की शिक्षा प्रणालीमे लोक-परम्पराका वडा महत्त्व होता है । वहाँ शिक्षाके नये प्रकारोकी परखका प्रश्न ही नही उठता । जिनकी संस्कृति और जिनका इतिहास प्राचीन है, उनकी यही कथा है । जबतक समाजके अाधारभूत मौलिक सिद्धान्तोके परिवर्तन का प्रश्न नही उठता और जवतक समाज के आर्थिक ढाँचेमे क्रान्तिकारी परिवर्तन नही होता, तवतक यही अवस्था बनी रहती है। किन्तु जव समाजकी ऐसी अवस्था हो जाती है कि उसको जीवित रहनेके लिए अपनी पुरानी पद्धतिको वदलनेके लिए विवश होना पडता है, तब उसके सामाजिक और आध्यात्मिक मूल्य भी बदलने लगते है । नूतन समाजके प्रारम्भक प्राय युवक ही होते है, कम-से-कम उनके सहयोगके विना नूतन समाजकी प्रतिष्ठा नही होती। इसका कारण यह है कि युवकमे साहस, शौर्य, तेज और त्यागकी भावना प्रवल होती है । वह अभी ससारके कीचडमे नही फँसा है, इसलिए वह वस्तुस्थितिकी भी उपेक्षा कर आदर्शके लिए आत्म-वलिदान करनेके लिए उद्यत हो जाता है। इसका एक कारण यह भी है कि उसकी अभी कोई ऐसी दृष्टि नही बनी है जो उसको समाजकी नवीन आवश्यकताअोके समझनेसे रोके । इसके विपरीत इन आवश्यकतानोका उसे विशेप अनुभव होता है । अतीतसे नाता तोडनेमे उसे वह कठिनाई नही होती जो वृद्धोको होती है । जिस समाजमे ऐसी अवस्था उत्पन्न होने लगती है, वहाँ नये समाजका उपक्रम करनेके लिए युवकोका आन्दोलन प्रारम्भ हो जाता है और युवक अपनी सस्थाएँ वनाने लगते है । जवतक ऐसी अवस्था उत्पन्न नहीं हो जाती, तबतक किसी समाजमे युवक-अान्दोलनकी सृष्टि नहीं होती। युवक-आन्दोलनका होना, न होना इसपर भी आश्रित है कि उस जाति- विशेषका क्या स्वभाव है और उस समाजकी परम्परा क्या रही है। यदि लोग समयसे सुधार करनेके अभ्यस्त है और सकटकी अवस्थाको टालना जानते है तो युवक-आन्दोलन कदाचित् न भी हो । किन्तु जो जाति क्रान्तिप्रिय है और जहाँके समाज-नेता काफी दूरदर्शी नही है तथा अपने कट्टरपनके कारण समझौतेके लिए तैयार नही हो पाते, वहाँ युवक- आन्दोलन और सगठनका होना अनिवार्य हो जाता है । साधारणत समाजको नवयुवकोकी प्रसुप्त शक्तियोका उपयोग करनेकी आवश्यकता