पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३२९

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३१४ राष्ट्रीयता और समाजवाद नही पडती । वृद्ध होनेपर वह पुरानी पीढीका स्थान लेते हैं । किन्तु जव किसी समाजके जीवन-मरणका प्रश्न उपस्थित हो जाता है, जैसा कि युद्ध के समय होता है, तव युवकोकी प्रसुप्त शक्तियोका उपयोग किये बिना संकट टल नहीं सकता। जव कभी कोई आकस्मिक संकट आ जाता है अथवा समाजको नवीन दृष्टिकी आवश्यकता होती है, तव युवकोके शक्ति-भण्डारका उपयोग करना ही पड़ता है । अाज पुराने युगका अन्त हो रहा है और हम एक नवीन युगमें प्रवेश कर रहे है, सारे संसारका यही हाल है । यह संक्रमण-काल हे । युद्धके पश्चात् जीवनके मूल्य सर्वत्र वदल रहे है । पुरानी सस्थाएँ जीर्ण-शीर्ण हो रही है और उनके आधारभूत विचारोपरसे लोगोकी आस्था उठती जा रही है । समाजको एक नये दर्शनकी आवश्यकता है, जो उसका पथ- प्रदर्शक हो। उद्देश्यकी आवश्यकता यो तो प्रत्येक समाज नवीन परिस्थितिके अनुकूल अपना आचरण और व्यवहार बदलनेका प्रयत्न करता है, किन्तु जवतक किसी महान् उद्देश्यकी गम्भीर अनुभूति नहीं होती, तवतक समाजमे सामञ्जस्य और स्थिरता नही पाती और उसकी समग्रता नष्ट होने लगती है । इस नवीन दर्शनमे नवयुवकोकी ही प्रास्था होती है । उन्होने ही इन नवीन मूल्योकी सृष्टि की है और उन्हीको उनके अनुसार जीवन व्यतीत करना है । यही कारण है कि हम सर्वत्र देखते है कि नवयुवक समाजका नेतृत्व करने आगे आ रहे है । नव समाजमे, जिसका इतिहास पुराना नहीं है, नवयुवकोका स्वागत होता है और वह शीघ्र ही अधिकारारूढ हो जाते है, किन्तु पुरातन समाजमे वृद्धोका वही पुराना स्थान अव भी चला आता है । उसमे युवकके अधिकार स्वीकार नही किये जाते । इसलिए नवयुगके लानेमे देर होती है । युवकोको अपनी कल्पनाके वलसे नयी नीति बनानेका अवसर नही मिलता। अतः उनका असन्तोप वढता है और वह अपनी शक्तियों- का सदुपयोग रचनात्मक कार्यमे न कर, टीकाटिप्पणी और आलोचनामे ही उन्हे नष्ट कर देते है । इससे समाजका अहित ही होता है । यह ठीक है कि पुरानी परम्पराको रक्षाके लिए वृद्धोका रहना भी आवश्यक है, किन्तु उनको यह स्वीकार करना चाहिये कि अब समय आ गया है जब उन्हे युवकोको जिम्मेदारी- के पदोपर बैठाना चाहिये । अपने देशमे यह बात अभीतक पूरी तरह नही मानी गयी है, किन्तु जवतक हम युवकों- का अधिकार स्वीकार न करेगे, तबतक नये समाजकी रचनाका काम सफल न होगा। वर्माके मन्त्रिमण्डलमे प्राय युवक ही है और आगसानकी अवस्था केवल बत्तीस वर्षकी थी। किन्तु हमारे यहाँके केन्द्रीय मन्त्रिमण्डलमे एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जिसे युवक कहा जा सकता है । काग्रेसकी वकिंग कमेटीका भी यही हाल है । पण्डित जवाहरलालने अपने सभापतित्वमे तीन-चार युवकोको स्थान दिया था, किन्तु उनके हट जानेके बाद वे लोग भी हटा दिये गये । हमारे पुराने नेतानोको युवकोके साथ मिलकर काम करनेमे.