पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३३

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२० राष्ट्रीयता और समाजवाद ईसाइयोका युद्ध था । इस युद्धमे ब्रिटिश सरकारने ईसाइयोका साथ दिया । हिन्दुस्तानके मुसलमानोकी सहानुभूति रवभावत तुर्कीसे थी ; क्योकि तुर्कीका गुस्तान संसारको मुसलमानोका खलीफा था और तुर्की इस्वामकी तलवार समझा जाता था । हिन्दुस्तान के मुसलमानोंने जख्मी तुर्कोकी सेवाके लिए बहुत-सा धन एकत्र किया और एक मिशन भी कुस्तुन्तुनिया भेजा । यहाँ वे तुर्कीके राष्ट्रवादी युवको सम्पर्कमे आये । सन् १९०८ मे तुर्कीमे क्रान्ति हुई थी। इस त्रान्तिके नेता वे राष्ट्रवादी युवक तुर्कशे जिन्होंने फ्रांस या इङ्गलैण्डमे शिक्षा पायी थी। हिन्दुस्तानी मिगनके सदस्योंने उनसे यह मवक मीना कि ब्रिटिश परराष्ट्र-नीतिका एक उद्देश्य इस्लामकी ताकतको कमजोर करना है। उन्होंने यह बतलाया कि अग्रेजोके कारण मुसलमानोकी अवस्था बहुत शोचनीय हो गयी है। मिस्र अंग्रेजोके कब्जेमे है। फारसके सम्बन्धम अग्रेजोने उससे समजीता कर लिया है कि उत्तरी फारसमे रूसका और दक्षिणी फारसमे अग्रेजोंका प्रभाव नहगा। मरक्कोके सम्बन्धमे भी अंग्रेजोंने फ्रांससे तस्फिया कर लिया है। अबतक हिन्दुस्तानके मुसलमानोका खयाल था कि इङ्गलैण्ड तुर्कीका मित्र है, क्योकि सन् १८५४ और १८७७ मे इङ्गलण्डने रूसके विरुद्ध उसकी सहायता की थी, लेकिन सन् १९१२-१३ मे जो व्यवहार मलेरने तुर्कीके साथ किया उससे उनकी यह धारणा दूर हो गयी । उस समय उस्लाम-जगत्मे एक जागृति हो रही थी और सब मुसलमानोको एक मूत्रमे ग्रथित कर देनेको चेप्टा की जा रही थी। इस आन्दोलनको ‘पान इस्लामिज्म' कहते हैं । यूरोपके राष्ट्रोके याक्रमणने इस्लामकी रक्षा करनेके लिए ही इस आन्दोलनका जन्म हुआ था । नय्यद जमालुद्दीन अफगानी इस आन्दोलनका जन्मदाता समझा जाता । इसका जन्म सन् १८३८ में हुअा था। इसका वाल्यकाल अफगानिस्तानमें व्यतीत हुा । बुखारामें इसने शिक्षा प्राप्त की। वह अपने समयमें इस्लाम-जगत्का एक प्रसिद्ध दार्शनिक और पण्डित समझा जाता था। उसने कुछ दिनोतक कैरोके अलग्रजहर नामक विश्वविद्यालयमे अध्यापकका काम किया था। मिस्रके नवयुवकोपर उसका बहुत वडा प्रभाव था। उसने नवयुवकोमे राष्ट्रीयताका प्रचार किया। उसके धार्मिक विचार बड़े उदार थे। वह गासन और धर्ममे सुधार करनेका पक्षपाती था। अरबीपाशा, जिसने सन् १८८२ मे विटेगियोके विरुद्ध मित्रमे आन्दोलन किया था, जमालुद्दीनका भक्त था । अधिकारिवर्ग जमालुद्दीनपर शक करता था । इसलिए सन् १८७६ मे वह मिस्रसे निकाल दिया गया। वह कुछ समयतक भारतवर्षमे भी रहा । फारसके शाह नसीरुद्दीनके निमन्त्रणपर वह फारस गया । वहाँ भी उसने प्रभावशाली लोगोमे नवीन विचार फैलाये । जमालुद्दीनकी सलाहसे तुर्कीके सुलतान अब्दुल हमीदने खिलाफतकी सस्थाका पुनरज्जीवन किया और इस प्रकार यूरोपीय शक्तियोके विरुद्ध इस्लाम-जगत्की सहानुभूति प्राप्त की। खिलाफत का पुराना गौरव नष्ट हो गया था। अब्दुल हमीदने इसके गौरवको फिरसे प्रतिष्ठित कर अपनी शक्ति वढायी । सुलतानके दूत जगह-जगह खिलाफतका प्रचार करते फिरते थे। धीरे-धीरे मुलतान खलीफा स्वीकार किये जाने लगे और मुसलमान तुर्कीको इस्लामकी तलवार समझने लगे । जमालुद्दीन सन् १८६२में कुस्तुन्तुनियामे वस गया और वही