भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनका इतिहास २१ सन् १८९७ में उसकी मृत्यु हुई। मित्र, फारस और तुर्कीमे जो जागृति हुई उसकी आधार शिता रखनेवाला जमालुद्दीन ही समझा जाता है । सन् १९१२-१३ के वालकन युद्धने भारतमे भी 'पान इस्लामिज्मके' भावको प्रवल कर दिया। इस आन्दोलनका मुख्य अभिप्राय ही यूरोपीय जातियोका विरोध करना था। भारतके जो मुसलमान इस आन्दोलनसे प्रभावित हुए, वे अंग्रेजोके भी विरोधी हो गये । इन लोगोने मुसलिम लीगपर कब्जा कर लिया और उसकी नीति बदल दी। प्रारम्भमे लीगकी स्थापना काग्रेसका विरोध करनेके लिए हुई थी। सरकारका उद्देश्य इस वातको दिखलाना था कि मुसलमान केवल काग्नेससे अलग ही नहीं है, बल्कि गवर्नमेटके साथ है । मुसलिम लीगने अवतक राजनीतिक सुधारोके लिए कोई उद्योग नहीं किया था, पर सन् १९१३ मे लीगका उद्देश्य औपनिवेशिक स्वराज्यकी प्राप्ति हो गया । हिन्दू-मुसलमानोकी मैत्री वढने लगी। काग्रेस और लीगके वार्षिक अधिवेशन एक ही स्थानपर होने लगे। मुसलमान भी समझने लगे कि यदि हिन्दू-मुसलमान एक साथ मिलकर कार्य करे तो देशकी राजनीतिक उन्नति सुगमतासे हो सकती है । सर आगा खाँ सभापतिके पदसे अलग हो गये और लीगमे उन्नत विचारके लोगोका प्रभुत्व हो गया। सन् १९१५ मे गोखले और फीरोजशाहकी मृत्युसे नरम दलकी शक्ति क्षीण हो गयी । सन् १९१६ मे नरम दल और गरम दलमे मेल हो गया और लखनऊमे दोनो दलोका संयुक्त अधिवेशन हुआ। धीरे-धीरे कांग्रेसमें गरम दलका प्रभाव बढने लगा । सन् १९१६ मे लोकमान्य तिलक और श्रीमती एनीवेसेण्ट- ने अंपने-अपने होमरूल लीगकी स्थापना की । देशमे एक व्यापक आन्दोलन आरम्भ हो गया । सन् १९१४ मे योरोपीय महासमरका प्रारम्भ हुआ था । इसके कारण देशमें वहुत अशान्ति थी। विप्लववादियोके आन्दोलनकी भी गति तीव्र हो गयी थी। जर्मनी- की सहायतासे विप्लववादी इङ्गलैण्डके शासनको नष्ट करना चाहते थे । अमेरिकाकी गदर पार्टीकी अोरसे भेजे हुए वहुत-से सिख विप्लव करनेके लिए भारत पाये । वङ्गाल और पंजावमे जगह-जगह राजनीतिक डकैतियाँ और हत्याएँ होने लगी । क्रान्तिका दिन भी निश्चित हो गया । २१ फरवरी सन् १९१५को एक ही समय कई स्थानोमे विप्लव होना निश्चित हुआ था, पर सरकारको इसका पता चल जानेसे यह योजना असफल रही। सन् १९१५ मे सरकारने विप्लवका दमन करनेके लिए 'डिफेस ग्राफ इण्डिया ऐक्ट' पास किया और इसके अनुसार बहुतसे विप्लवकारी नजरवन्द कर लिये गये । होमरूलका आन्दोलन देहातोमे भी फैलने लगा । सन् १९१७ मे श्रीमती ऐनीवेसेण्ट नजरबन्द कर ली गयी । लखनऊ कांग्रेसके पहले ही वडी व्यवस्थापक सभाके १९ सदस्योने सुधारकी एक योजना प्रकाशित की थी। सन् १९१६मे काग्रेस और मुसलिम लीगकी अोरसे एक संयुक्त मॉग पेश की गयी। इसी अवसरपर हिन्दू-मूसलमानोने प्रतिनिधित्वके सम्बन्धमे एक समझौता कर लिया था जिसके अनुसार हिन्दुअोने कई प्रान्तोमे मुसलमानोको उनकी संख्यासे कही अधिक प्रतिनिधित्व देना स्वीकार किया था। यह समझौता 'लखनऊ पैक्ट'के नामसे प्रसिद्ध है । अमेरिकाको युद्धमे सम्मिलित करनेके लिए और भारतीयोको आश्वासन देनेके लिए भारत-सचिव माटेगूको २० अगस्त सन् १९१७ को पार्लमेटमें एक
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