पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३१८ राष्ट्रीयता और समाजवाद कारण संस्था वदनाम हो गयी थी। इस वर्ष इस संस्थाने मजदूर दलसे पुनः सम्बद्ध होनेकी प्रार्थना की, पर यह प्रार्थना अस्वीकृत हुई । इसी प्रकार हमारे देशमे भी गत युद्धके प्रारम्भ होनेपर स्टूडेण्ट्स फेडरेशनमे फूट पढ़ गयी थी। यहाँ राजनीतिक दलोसे सम्बद्ध विद्यार्थी-सस्थाएँ नही थी। विद्यार्थी- समाजकी एक ही प्रधान सस्था थी। परतन्त्र देशमे साम्राज्यवादका सफल विरोध करनेके लिए विविध वर्गोंका सयुक्त मोर्चा आवश्यक होता है । काग्रेस ही यह संयुक्त मोर्चा है । इसके भीतर रहकर ही भिन्न-भिन्न विचारधाराके दल संयुक्त मोर्चेको पुष्ट पीर सवल बनाते है । ऐसी अवस्थामे काग्रेसके भीतर रहनेवाले राजनीतिक दल अलग-अलग विद्यार्थी-संस्थानोका निर्माण नही करते । कांग्रेसके समान वह सब एक ही विद्यार्थी- सस्थामे रहकर काम करते है । किन्तु मुसलिम लीगकी घातक नीतिके कारण यहाँ साम्प्रदायिक विद्यार्थी-सस्थाएँ बनने लगी। लीगने यह कार्य प्रारम्भ किया और उसकी देखादेखी अन्य सम्प्रदायोने भी अपनी-अपनी अलग संस्था बना डाली । युद्धके पहले कम्युनिस्ट भी औरोके साथ एक ही सस्थामे काम करते थे । किन्तु, क्योकि वह अपनेको क्रान्तिका एक मात्र ठेकेदार समझते है, इसलिए जब कभी उनको क्रान्तिकी सम्भावना प्रतीत होती है, तब वह उन सब सस्थानोपर एकाधिकार प्राप्त करनेकी चेष्टा करते हैं, जिनका उपयोग वह समझते है कि क्रान्तिके लिए किया जा सकता है और यदि वह इसमे सफलताकी आशा नही रखते तो सस्थामे फूट डाल देते है और उसको दो टुकडोमें विभक्त कर देते है । इसी नीतिके अनुसार कम्युनिस्टोने नागपुरके अधिवेशनमे भेदकी ऐतिहासिक आवश्यकताको बताते हुए फेडरेशनको दो भागोंमे विभक्त कर दिया। कम्युनिस्ट और उनके हमराही एक अोर थे और दूसरी ओर थे राष्ट्रवादी विद्यार्थी जिनमे काग्रेस समाजवादी भी शामिल थे। अगस्त सन् ४२ के आन्दोलनके कारण राष्ट्रवादी विद्यार्थी जेलोमे बन्द कर दिये गये और क्योकि कम्युनिस्टोका उस समय 'जनयुद्ध' का नारा था और वह विदेशी साम्राज्यवादसे सहयोग कर रहे थे इसलिए वह जेलोके वाहर थे। इस परिस्थितिका उन्होने पूरा-पूरा लाभ उठाया, किन्तु यह लाभ चिरस्थायी न हो सका । अपनी देश-विद्रोही नीतिके कारण वह बहुत बदनाम हो गये और विद्यार्थी-समाजमे उनका प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगा। उनके दुर्भाग्यसे राष्ट्रवादी विद्याथियोने सन् ४४ में अपने संगठनको सुदृढ किया और स्टूडेण्ट्स काग्रेसको जन्म दिया । इसी प्रकार इंगलैण्डमे भी फेडरेशनका प्रभाव घटने लगा। विश्वविद्यालयोंके जिन विद्यार्थियोने युद्धमे भाग लिया उनकी दृष्टि नूतन अनुभवोके कारण अन्य विद्यार्थियोंकी अपेक्षा अधिक परिपक्व हो गयी और उनके नेतृत्वमे केम्ब्रिज, आक्सफोर्ड और लन्दनके विद्यार्थियोकी समाजवादी सोसाइटियाँ बनने लगी और इनका सम्बन्ध फेडरेशनसे न होकर स्थानीय मजदूर दलसे होने लगा। इसमे सन्देह नही कि इन स्थानोमें अन्य सस्थाएँ भी है, जो कम्युनिस्टोके प्रभावमे है और जो एस० एल० एफ० (S. L. F, ) से सम्बद्ध है । यदि इंग्लैण्डका मजदूर दल