पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३३२

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विद्यार्थियोका राजनीतिमे स्थान ३१७ 'स्टूडेण्ट्स काग्रेस' और 'स्टूडेण्ट्स फेडरेशन' है । पहली राष्ट्रीय काग्रेसको समर्थक है और इसका विद्यार्थी-समाजपर सबसे अधिक प्रभाव है । दूसरी कम्युनिस्टोके प्रभावमे है, किन्तु कम्युनिस्टोकी राष्ट्र-विरोधी नीति और अवसरवादिताके कारण उसका प्रभाव विलुप्त हो गया है । सम्प्रदायवाद हमारे देशका एक विशेष रोग है । इसलिए साम्प्रदायिक राजनीतिक संस्थानोके साथ-साथ विद्यार्थियोकी भी साम्प्रदायिक सस्थाएँ सगठित हो गयी है, किन्तु इनका सगठन क्षीण और दुर्वल है । इन सस्थागोमे लीगी विद्यार्थियोकी सस्थाकी प्रधानता है, पर यह भी अभीतक समुचित रूपसे सगठित नही हो पायी है। राष्ट्रीय मुसलिम विद्यार्थियोकी भी अपनी सस्था हे । यह लीगी विद्यार्थियोकी संस्थाका जवाव है । अन्य साम्प्रदायिक सस्थाएँ काग्रेसके विरद नही है, किन्तु साम्प्रदायिक प्रश्नोके सम्बन्धमे उनकी दृष्टि सकुचित है, राष्ट्रीय नही है । इस प्रकार केवल लीगी और कम्युनिस्ट विद्यार्थियोकी सस्थाएँ काग्रेस-विरोधी है । इस समय लोग, कम्युनिस्ट पार्टी और डा० अम्बेडकरकी शिड्यूल्ड कास्ट पार्टीका गठ बन्धन-सा हो गया है । इस सयुक्त मोर्चेका एकमात्र आधार काग्रेसका विरोध करना है, अन्यथा इन विविध दलोके उद्देश्य और उनकी कार्यप्रणाली असमान है । सयुक्त मोर्चेका यह एक नवीन, विकृत और निकृष्ट रूप है। यूरोपके देशोमे राजनीतिक दलोसे सम्बद्ध विद्यार्थियोकी संस्थाएँ होती है। किन्तु प्रत्येक दलसे सम्बद्ध विद्यार्थी-सस्थाका होना आवश्यक नही है । प्रायः कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट ही अपने विद्यार्थी सदस्योके लाभके लिए ऐसी सस्था बनाते है । अन्य दलोमे इस ओर उपेक्षाका भाव देखा जाता है । जहाँ कही कम्युनिस्ट बहुत कमजोर होते है, वहाँ अन्य किसी विद्यार्थी-सस्थामे घुस जाते है और धीरे-धीरे विविध ढगसे उसको अपने अधिकारमे ले आते है । ऐसा इग्लैण्डमे भी हुआ । वहाँके मजदूर दलकी ओरसे सन् १६३० के लगभग विश्वविद्यालयोके उन विद्यार्थियोके लिए, जो मजदूर दलकी राजनीति स्वीकार करते थे, युनिवर्सिटी लेवर फेडरेशन नामकी एक सस्था स्थापित की गयी थी। किन्तु मजदूर दलने इस सस्थामे काफी दिलचस्पी नही ली और इस कारण कम्युनिस्टोको उसपर अधिकार जमानेका सुयोग मिला । गत महायुद्धके प्रारम्भ होनेपर कम्युनिस्टोके प्रभावसे इस संस्थाने सन् १९४० मे जर्मनीके विरुद्ध युद्ध प्रारम्भ करनेकी नीतिको निन्दा की और जर्मनीसे सुलह करनेकी मॉग पेश की । उस समय आर्थर ग्रीनउड फेडरेशनके सभापति थे । ज्यो ही उनका ध्यान उक्त प्रस्तावकी ओर आकृप्ट किया गया, त्यो ही उन्होने अपने पदसे इस्तीफा दे दिया । इसपर सम्मेलनने यह घोपित किया कि मिस्टर ग्रीनउड तथा मजदूर नेता युद्धका समर्थन कर समाजवाद तथा मजदूर वर्गके हितोके साथ दगा कर रहे है। इस सम्मेलनके बाद ही मजदूर दलसे फेडरेशनका सम्बन्ध विच्छिन्न हो गया । गत सम्मेलनमे उसका नाम 'स्टूडेण्ट लेवर फेडरेशन' रखा गया । नाम बदलनेका कारण यह वताया गया कि विश्वविद्यालयोके अतिरिक्त ट्रेनिङ्ग कालेजोके विद्यार्थियोको भी सम्मिलित करना है किन्तु वास्तविक कारण यह था कि अपनी युद्धकालीन नीतिके