पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३६५

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३५० राष्ट्रीयता और समाजवाद प्रकार एक ही लिपिद्वारा अन्तर्घान्तीय एकताकी भावना उत्पन्न करने और उसे अग्रसर करनेमे भी सहायता मिलेगी। हम सब जानते है कि भापा और लिपिमें कोई अविच्छेद सम्बन्ध नहीं है और इन दिनो जब रोमन लिपिके प्रयोगके लिए विश्वव्यापी आन्दोलन चल रहा है, मैं नही समझता कि इस देणकी भापायोके लिए एक ही लिपिकी मांग करना कोई वहुत बडी माँग करना है । यह तो बहुत ही सौम्य प्रस्ताव है, इसे स्वीकार करनेमे कोई हिचकिचाहट न होनी चाहिये । इसकी मुविधाएँ सुस्पष्ट है । हमारे लिए एक दूसरेकी भापायो और साहित्योका ज्ञान आवश्यक है, क्योकि इस प्रकार अन्तर्घान्तीय विरोध और दुर्भावना दूर करनेमे और राष्ट्रीयताको भावना उत्पन्न पीर विकसित करनेमें सहायता मिलेगी। हमलोग ऐसे युगमें है और संसारकी इस युगमें ऐसी अवस्था है कि हममेसे प्रत्येकके लिए पड़ोसी राष्ट्रोकी रहन-सहन, सस्कृति और जीवनक्रमकी यत्किचित् जानकारी प्राप्त करना भी यावश्यक है । तव अपने ही देशके विभिन्न प्रान्तोमे रहनेवाले अपने देशभाइयोके सांस्कृतिक जीवनको समझना कितना अधिक महत्त्वपूर्ण है यह सभी समझ सकते है । पारस्परिक सहानुभूति और सद्भावना बहुत सुगम हो जायगी, यदि हम विभिन्न प्रान्तीय भापायोके लिए एक ही लिपि स्वीकार कर ले । यह एक व्यापक सुधार है, पर इसका फल भी वहुत व्यापक होगा। सच तो यह है कि यदि हम यह सुधार प्रवर्तित नहीं करते तो राष्ट्रहितकी ही हम उपेक्षा करते है अथवा उसकी अोरसे आँखे वन्द किये हुए है । मेरी समझमे सव भापायोके लिए एक ही तिपिका प्रश्न वही महत्त्व रखता है जो सारे देशके लिए एक राष्ट्रभापाका प्रश्न । यह भी आवश्यक है कि सभी भारतीय नाणोके लिए एक ही वैज्ञानिक शब्दावली बनायी जाय । हमारी एकताके मार्गमे जितने कृत्रिम व्यवधान है, उन सवको ही हटानेके लिए हमे सन्नद्ध होना है । पुनरुज्जीवनवाद ( Revi- valism ) से हमारा काम नही चलेगा। हमे आगे देखना होगा और ऐसे सव परिवर्तन करने होगे जो स्वस्थ राष्ट्रीय जीवनके लिए नितान्त आवश्यक है । वर्गवाद और प्रान्तवादसे ऊपर उठनेका साहस और सुविचार हममे होना चाहिये और सब चीजोको विशाल दृष्टिसे देखते हुए दृढताके साथ राष्ट्रहितको नीतिको जानना चाहिये । कोई यह न समझे कि मैं भापाके आधारपर प्रान्तोके पुनस्सगठनके विरुद्ध हूँ । मैं उन लोगोमेसे हूँ जो यह मानते है कि देशके लिए संघीय विधान ( Federal Consti- tution ) सबसे अधिक व्यावहारिक होगा, क्योकि यह हमारे इतिहास एवं परम्पराके सर्वथा अनुकूल है । मानव-वुद्धिमे हमारी इतनी आस्था है कि उसके द्वारा हम अपने संघीय विधानमे ऐसी वातोका समावेश कर सकेगे कि देणकी एकता अक्षुण्ण रखी जा सके । साथ ही सवके लिए एक ही सामाजिक और आर्थिक नीति, सभी जातियो और धर्मोके लोगोंके लिए एक ही कानून, एक ही राष्ट्रभापा और एक ही राष्ट्रलिपि, ये सब ऐसे साधन है जिनके लिए राष्ट्रीय एकता स्थापित की जा सकती है । इससे बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण तो जनताके सभी वर्गोमे जनतन्त्रीय भावना भर देना है । सब प्रकारकी असमानताओंको दूर कर देना चाहिये और सभी वर्गोके लिए आत्म-विकासके समान अवसर मिलने चाहिये। यही नही, जो लोग सास्कृतिक दृप्टिसे पिछड़े हुए है उनका विशेष ध्यान रखना चाहिये,