पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३७४

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छठा अध्याय हमारा आदर्श और उद्देश्य भारतीय समाजमे महान् परिवर्तन होनेवाले है । देशमे नवजीवन हिलोर ले रहा है। भारतकी अवरुद्ध जीवनशक्ति अव फिर वेगवती हो चली है। भारतका नया मानव अपने सपने सार्थक करनेको निकल पड़ा है। इस नवजीवन-प्रवाहको रोकनेका प्रयत्न निरर्थक है । इसे रोकनेका प्रयत्न सफल नही हो सकता । इस तरह सामाजिक शक्ति नष्ट करनेसे व्यक्तियो तथा समूहोको रोकना है । सामाजिक शक्तिकी दिशा निर्धारित करनी है, उसका नियन्त्रण करना है। पुराने आदर्शोसे आज पथनिर्देश नही हो पाता । पुरानी परम्परासे आज सहारा नही मिलता । आज नये नेतृत्वको आवश्यकता है । समाजवाद ही यह नया नेतृत्व प्रदान कर सकता है । जनताके विस्तृत तथा व्यापक हितके आधारपर निर्मित यह सम्पूर्ण सामाजिक सिद्धान्त ही हमारा पथप्रदर्शन कर सकता है । जनजागरण तथा जनक्रान्तिकी रीति ही समाजके समुचित विकासका साधन बन सकती है । समाजवादका सवाल केवल रोटीका सवाल नही है । समाजवाद मानव-स्वतन्त्रताकी कुंजी है । समाजवाद ही एक स्वतन्त्र सुखी समाजमे सम्पूर्ण स्वतन्त्र मनुष्यत्वको प्रतिष्ठित कर सकता है। समाजवाद ही श्रेणी-नैतिकता तथा मात्स्य-न्यायके वदले जनप्रधान नैतिकता तथा सामाजिक न्यायकी स्थापना कर सकता है। समाजवाद ही स्वतन्त्रता, समता और भ्रातृभावके आधारपर एक सुन्दर, सवल मानव-सस्कृतिकी सृष्टि कर सकता है। ऐसी सभ्यता तथा सस्कृतिकी स्थापना उत्पादनके साधनोपर सामाजिक स्वामित्व स्थापित करते ही नही हो जायेगी। इसके लिए पुनर्निर्माण कार्य ही समुचित रीतिसे करना होगा। मानव-प्रतिष्ठाको रक्षाके लिए नागरिक स्वतन्त्रता तथा उत्तरदायित्वपूर्ण प्रजातान्त्रिक राजनीतिक व्यवस्थाकी आवश्यकता होगी। सुन्दर और सम्पूर्ण मनुप्यत्वकी सृष्टि तभी हो सकती है जव साधन भी सुन्दर हो, मानवोचित हो । उद्देश्य और साधन परस्पर सम्वद्ध तथा परस्पर निर्भर होते है । दोनोका अपना-अपना महत्त्व है । इसके अतिरिक्त इतने कालके सामाजिक विकासके बाद जो मौलिक मानवीय सत्य प्रतिष्ठित हो गये है, उनपर जोर देना, उन्हे समाजके पुनर्निर्माणमे उचित स्थान दिलानेका प्रयत्न करना नितान्त आवश्यक है। इनकी अवहेलना करके सभ्य और सुन्दर सामाजिक जीवन नही चलाया जा सकता । श्रेणी नैतिकताके नामपर सभी पुराने आदर्शों और सिद्धान्तोका बहिष्कार उचित नही । समाजके दीर्घकालीन अनुभव तथा संचित ज्ञान- का निरादर अनुचित होगा। इसके विपरीत पुराने आदर्शों और प्राचीन संस्कृतिका अध्ययन आवश्यक है । हमारी नवीन सस्कृतिके निर्माणमे इनका बहुत वडा हाथ होगा।