पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३८९

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३७४ राष्ट्रीयता और समाजवाद अव राष्ट्रभापामे होगा । अतः जिनको उन विपयोकी शिक्षा लेनी है वह वहां जा सकते है। इसकी सुविधा अवश्य होनी चाहिये किन्तु संस्कृत विश्वविद्यालयका एक विशेप लक्ष्य है जिसकी पूर्ति अन्य विश्वविद्यालयोमे नहीं हो रही है । एक प्रकारसे यह विद्यालय भी है और प्राच्य विद्याके अन्वेपणका एक प्रतिष्ठान भी है । ज्ञान-रागि अनन्त है, उसकी सीमा नहीं है । इधर अनेक नवीन शास्त्रोकी प्रतिष्ठा हुई है और ज्ञानका विस्तार इतना बढ़ गया है कि विना अन्तर्राष्ट्रीय सहयोगके गवेपणाका कार्य दुष्कर हो गया है । ज्ञानके सदृश दूसरी पवित्र वस्तु नही है । अत. विदेशियोसे उसके लेनेमे संकोच नही होना चाहिये । प्राचीन कलमें भी हमने स्वाध्याय और प्रवचनमे कृपणता नहीं दिखायी थी। आज भी हमको उसी उदार बुद्धि तथा व्यापक दृप्टिसे काम लेना चाहिये । इसीमे हमारा मगल है । इसी प्रकार भारतकी सर्वतोमुखी प्रतिभाका उन्नयन होगा। सस्कृतका आदर और सम्मान अधिकाधिक बढता जायगा । ससारके प्रत्येक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में सस्कृतकी शिक्षाका समुचित प्रवन्ध किया गया है । पाश्चात्य जगत्के विद्वान् गवेपणाके कार्यमे हमसे कही आगे बढे हुए है, उनमे ज्ञानकी पिपासा है; जहाँसे ज्ञान मिल सकता है वहाँस लेनेमे उनको तनिक भी संकोच नहीं होता। हममें या तो मिथ्या गर्व और चित्तोद्रेक है अथवा आत्मावसाद है । दोनोका परिहार कर संस्कृतवाङमयके संरक्षण और प्रचारमे हमको प्राणपणसे लग जाना चाहिये । जो विद्यार्थी अपनी शिक्षा समाप्त कर उपाधि ले रहे है उनका इस विषयमे विशेप उत्तरदायित्व है । मैं जानता हूँ कि किस विषम परिस्थितिमें आप स्नातक अपना पठन-पाठन करते है । प्रवाहके विरुद्ध होते हुए भी आप संस्कृत विद्याकी रक्षामे जो लगे हुए है यह स्तुत्य है । अापके जीविकानिर्वाहके लिए कुछ अन्य वृत्तियोका द्वार अब खुल जाना चाहिये । केवल पौरोहित्य और अध्यापनकी प्रवृत्तियाँ पर्याप्त नहीं है । इस दृष्टिसे अापको कतिपय अन्य परीक्षायोमे सम्मिलित होनेकी मुविधा प्रदान करनी चाहिये । इस दृप्टिसे भी पाठशालाओं- की पाठन-विधिमे परिवर्तन करना आवश्यक प्रतीत होता है। पाठ्य-ग्रन्थावली संशोधन समितिने अपने निश्चयोमे इस वातका भी ध्यान रखा है। आपकी आर्थिक अवस्थाको सुधारना तथा आपको देशकी आवश्यकतानोकी पूर्तिके लिए समर्थ बनाना समाजका कर्तव्य है। इतने विद्यार्थियोंको विविध उपाधि और पदवियोसे विभूपित होते देखकर मुझे प्रसन्नता होती है । मै आपका शुभचिन्तन करता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि आप समाजमे अपनी योग्यताके अनुरूप स्थान पाकर शीघ्र कार्यमे नियुक्त हो जायेंगे और जो प्रतिज्ञाएँ अाज अापने स्वीकार की है उनकी सदा रक्षा करेगे। जिस युगमे हम रह रहे है उसकी अपनी विशेषता है। हमारी सभ्यतापर आधुनिक विज्ञानका गहरा प्रभाव पड़ा है । आज सकुचित विचार-धारासे हमारा कल्याण नही हो सकता है। हमारी दृष्टि साम्प्रदायिक और प्रान्तीय न होकर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय होनी चाहिये। हममें इन हीन प्रवृत्तियोंसे ऊपर उठनेका सत्साहस और सद्विवेक होना चाहिये । प्राचीन संस्कृतिके उत्कृष्ट अंशोकी रक्षा करते हुए हमको आधुनिक युगके