पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३९४

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सातवाँ अध्याय सोवियत रूसकी एशिया-सम्बन्धी नीति सोवियत रूसकी एशिया-सम्बन्धी नीतिको भलीभाँति समझनेके लिए सन् १९१७ (वि० स० १६७४) की रूसकी राज्यक्रान्तिके प्रमुख नेता लेनिनके विचारोका थोडा-बहुत जानना आवश्यक है। यह प्रसिद्ध ही है कि लेनिन साम्यवादी और पूंजीवादका विरोधी था। वह समाजके ऊँच-नीचके भेदको मिटा देना चाहता था और जिन विविध श्रेणियो या वर्गोमे मानव-समाज आज विभक्त है उनको मिटाकर केवल श्रमजीवी-वर्गका आधिपत्य प्रतिष्ठित करना चाहता था । सोवियतकी शासन-पद्धति इस राज्यक्रान्तिका फल है, और सोवियत शासन-यन्त्रपर श्रमजीवियोका आधिपत्य और नियन्त्रण है । इस शासन- पद्धतिने लेनिनके विचारोको कार्यान्वित करनेका यथासाध्य प्रयत्न किया है । यह स्पष्ट ही है कि यूरोपके पूंजीवादी राष्ट्र इस प्रयोगको विफल करनेकी प्राणपणसे चेष्टा करेगे और उन्होने ऐसा किया भी । लेनिनको केवल आन्तरिक विरोधका ही सामना नहीं करना पड़ा, अपितु यूरोपीय राष्ट्रोके विरोधका भी मुकावला करना पडा । यूरोपके प्रधान राष्ट्रोने सोवियत रूससे राजनीतिक सम्बन्ध क्या, व्यापारिक सम्बन्ध भी, स्थापित रखना उचित न समझा और उन्होने सोवियत रूसको वदनाम करनेमे कोई तरीका उठा न रखा । सोवियत रूसकी कार्य-प्रणालीके सम्बन्धमे तरह-तरहकी मिथ्या, अनर्गल और कपोलकल्पित वातोके फैलानेका निन्द्य प्रयत्न किया गया । रूसका आर्थिक अवरोध किया गया। यहांतक की दवाई और बच्चोके लिए दूधका जाना भी बन्द कर दिया गया। डेनिकिन, ऐडमिरल कोलचक और रैगल आदि विरोधियोको हर प्रकारकी सहायता दी गयी । सन् १९२० ईसवी (विक्रम स० १९७७) मे पोलण्डनिवासियोको भी यूरोपके राष्ट्रोने रूसके विरुद्ध सहायता दी । स्वभावत लेनिनकी क्रोधाग्नि प्रज्वलित हो उठी और उसने इन पूंजीवादी राष्ट्रोको हर प्रकारसे क्षति पहुँचानेका निश्चय किया । जब यूरोपने सोवियतसे नाता तोडा तव लेनिनने विवश होकर एशियाकी ओर दृष्टिपात किया और सोवियत-शासनने अपना यह मन्तव्य प्रकट किया कि वह एशियाके देशोके साथ व्यापारिक तथा राजनीतिक सम्बन्ध स्थापित करेगा। बहुत अनुशीलन और मननके वाद लेनिन इस सिद्धान्तपर पहुंचा था कि वर्तमान युगका 'आर्थिक साम्राज्यवाद' पूंजीवादकी आखिरी मञ्जिल' है । उसने अपने इस विचारकी साङ्गोपाङ्ग विवेचना 'इम्पीरियलिज्म' नामक पुस्तकमे की है। उसने इस ग्रन्थमे अपना यह मत प्रकाशित किया है कि वर्तमान युगमे पूंजीवाद एक अन्धी गलीमे प्रवेश कर चुका है, जहाँ उसके लिए आगे जानेका मार्ग नही है, पूंजीवाद अपने कर्तव्यको ०१. इकनामिक इम्पीरियलिज्म ( Economic imperialism. )