३८० राष्ट्रीयता और समाजवाद पूरा कर चुका है। अब इसके बाद साम्यवादकी स्थापना निर्विवाद और अवश्यम्भावी है । साम्यवादियोका मत था कि साम्यवादकी प्रतिष्ठा उन्ही देशोमे हो सकती है, जहाँ व्यवसायके द्वारा पूंजीवादका प्रसार पर्याप्त परिमाणमे हो चुका हो । इसके अतिरिक्त राष्ट्रीयताके क्षेत्रमे वे केवल यूरोपके ही अधीन राष्ट्रोको स्वतन्त्र करानेकी इच्छा रखते थे। अफ्रीका और एशियाके राष्ट्रोको वे उपेक्षा-भावसे देखते थे। इन महाद्वीपोके परतन्त्र राष्ट्रोको स्वतन्त्र करानेकी उनको फिक्र न थी। पर इन सव विषयोमे लेनिनका विचार कुछ दूसरा ही था । लेनिनका कहना था कि आज संसारमें विविध देशोके आर्थिक जीवनका परस्पर इतना घनिष्ठ सम्बन्ध हो गया है कि पुरानी प्रथाके साम्यवादियोका यह कहना कि पूंजीवाद-प्रधान देशोमे ही साम्यवादका प्रयोग सफल हो सकता है, गलत है । उसका मत था कि आज उन्ही देशोमें साम्यवादका प्रसार सुलभ है, जहाँ साम्राज्यवादकी शक्ति बहुत प्रवल नही है । इसी कारण रूसमे सबसे पहले यह प्रयोग सफल हो सका, क्योंकि रूस साम्राज्यवादी प्रधान राष्ट्रोमे सवसे निम्न श्रेणीका राष्ट्र था। उसका यह भी कहना था कि यदि दो सवल साम्राज्यवादी राष्ट्रोमे परस्पर युद्ध हो, तो जो राष्ट्र इस युद्धमे परास्त और विताडित होगा उस क्षीण और दुर्बल राष्ट्रमे भी साम्यवादका प्रयोग चलाया जा सकता है । जब साम्यवादके कट्टर विरोधी साम्राज्यवादी राष्ट्र है जव यह सिद्धान्त स्थिर हुआ कि जहाँ साम्राज्यवाद निर्वल होगा वहाँ साम्यवादका प्रवेश सुलभ हो जायगा, तव साम्राज्यवादको आघात पहुँचाना और उसको ध्वंस करनेका उद्योग करना रूसके साम्यवादीके लिए आवश्यक हो गया । यूरोपके साम्रज्यवादी राष्ट्रोकी शक्तिका मुख्य स्रोत एशिया और अफ्रीकाके वे देश है जो आज उनके अधीन है। इन्ही अधीन देशोके आर्थिक जीवनपर प्रभुत्व पाकर आज वे परिपुष्ट हो रहे है । उनका व्यवसाय इन्ही अधीन देशोकी बदौलत चलता है। ये देश उनके व्यवसायके लिए एक मण्डी है और उनको कच्चा माल देते है, जिस सामग्रीका उपयोग कर ये राष्ट्र अपनी तिजारत चलाते है। यदि साम्राज्यवादका अन्त करना है तो एशिया और अफ्रीकाके राष्ट्रीय आन्दोलनोकी सहायता करना सोवियत रूसका कर्तव्य हो जाता है । आज एशियाके कई राष्ट्रोमे जागृतिके चिह्न दीख पड़ते है। उनमे एक नवीन जीवनका संचार हो रहा है । वे आत्म-गौरवको पहचानने लगे है और अपने देशको स्वतन्त्र देखना चाहते है । इन राष्ट्रीय आन्दोलनोकी शक्ति क्रमशः वढती ही जाती है । सोवियत रूसने इन आन्दोलनोको उत्तेजित करनेकी नीति निर्धारित की। जहाँ पुरानी प्रथाके साम्यवादी एशियाकी उपेक्षा करते थे वहाँ रूसके साम्यवादियोको एशियाकी ओर अधिक ध्यान देना पड़ा और उन्होने एशियामे साम्राज्यवादके विरुद्ध प्रचारका कार्य प्रारम्भ किया और एक ऐसा संघ सगठित किया जो साम्राज्यवादका विरोध करे । आर्थिक साम्राज्यवाद ससारके लिए भयानक है—इस वातको पहले थोडेसे विद्वान् ही पहचानते थे । एशियाके लोग तो प्राय यह भी नही जानते थे कि साम्राज्यवाद क्या चीज है, पर लेनिनने एशियाके लोगोको इसकी भीपणता बतलायी और उनको सतर्क कर दिया। आगे चलकर लेनिनने एशियाके स्वतन्त्र राष्ट्रोके साथ जो सन्धियाँ की, उन् सन्धिपत्रोमे साम्राज्यवादका उल्लेख
पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३९५
दिखावट