३८२ राष्ट्रीयता और समाजवाद तथापि उसमे महत्त्वाकाक्षा और आत्मोत्कर्पकी भावना प्रवल है। वह किस प्रकार कम्युनिस्ट दलके उत्कर्पको सहन कर सकता था ? और जव उसके लिए इस दलका विरोध करना आवश्यक हो गया, तव उसने रूसके विरुद्ध अपनेको सवल वनानेके लिए इंगलैण्ड ऐसे साम्राज्यवादी राष्ट्रसे मित्रता स्थापित की । यदि चीनका कम्युनिस्ट दल राष्ट्रीय आन्दोलनका सूत्र अपने हाथमे लेनेकी चेप्टा न करता और केवल सहायता देकर ही अपना सन्तोप कर लेता तो यह विरोध कदाचित अाज खड़ा न होता। पर सोवियत रूमसे ऐसी आशा रखना व्यर्थ है, क्योकि वास्तवमे वह राष्ट्रवादका विरोधी है और यदि वह किसी राष्ट्रको स्वाधीन होनेमे सहायता देता है तो केवल इसी विचारसे कि उससे साम्यवादपर आघात पहुँचेगा और यदि परिस्थिति अनुकूल हुई तो साम्यवादका प्रयोग करनेके लिए नवीन क्षेत्र भी हाथ लगेगा। हमको यह भी याद रखना चाहिये कि साम्यवादी- का विश्वास है कि किसी स्थानपर साम्यवादकी स्थिरताके लिए यह नितान्त आवश्यक है कि सर्वत्र साम्यवादका प्रचार हो और इसलिए उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति उसको साम्यवाद- की प्रतिष्ठाकी ओर ले जाती है । साथ-साथ यह भी है कि साम्यवादीके लिए साम्यवादका सिद्धान्त प्रधान है; और सव बाते गौण है । इन सिद्धान्तोके अनुसार और रूसकी परिस्थितिके अनुकूल सोवियत शासनको एशियाके सम्बन्धमे एक नवीन नीतिका अवलम्बन करना पड़ा और इस नीतिको सफल बनानेके लिए अनेक प्रकारके आयोजन भी करने पडे । सोवियत शासनने इस वातकी घोषणा की कि उसकी पद्धति और नीति जारकी गवर्नमेण्टकी पद्धति और नीतिसे सर्वथा विभिन्न है और वह उन अत्याचारोको नही होने देगा जो पुराने समयमे जारकी गवर्नमेण्ट- द्वारा प्रजापर किये जाते थे । उसने रूसके साम्राज्यके भीतर रहनेवाली जातियोंको यात्म-निर्णयका अधिकार दिया । जहाँ पुराने समयमे यूक्रेनियन, जार्जियन और पोलकी अल्प-संख्यक जातियोंकों पददलित किया जाता था, उनकी भाषा और सस्कृतिको वलपूर्वक मिटा देनेका उद्योग किया जाता था वहाँ सोवियत शासनने उनको इस वातकी स्वतन्त्रता दी कि वे अपनी भापा और संस्कृतिका पूर्णरूपसे विकास करे । सस्कृतिकी स्वतन्त्रता और आर्थिक सहयोग' इन दो सिद्धान्तोके अाधारपर सोवियत शासनने अल्प-संख्यक जातियोके जटिल प्रश्नको निपटानेका प्रयत्न किया। इस नीतिका फल यह हुआ कि जातिगत वैमनस्य, जो सस्कृतिके विरोधके कारण हुग्रा करता था, वहुत कम हो गया । जिन जातियोकी कोई साहित्यकी भापा न थी उन्होने अपनी वोलचालकी भापाको साहित्यकी भापा बनानेका प्रयत्न किया और इस प्रयत्नमे सोवियत शासनने उनकी पूरी सहायता की। इसके अतिरिक्त सोवियत शासनने एशियाके होकी स्वतन्त्रता स्वीकार की और उनकी स्वतन्त्रताकी रक्षा करनेका वचन दिया और एशियाके राष्ट्रोंको यूरोपके साम्राज्यवादका विरोध करनेके लिए सघटित किया। इसी नीतिके अनुसार सोवियत रूसने ब्रिटिश साम्राज्यवादको कमजोर करनेके लिए मिस्र और भारतको अलग करता हुया तुर्की, फारस १. लोकल कल्चरल सेल्फ डिटर्मिनेशन एण्ड इकनामिक कोआपरेशन Local cultural self-determination and economic co-operation.
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